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Blog / 30 Jan 2020

(आर्थिक मुद्दे) अमेरिका-चीन व्यापार समझौता (USA-China Trade Deal)

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(आर्थिक मुद्दे) अमेरिका-चीन व्यापार समझौता (USA-China Trade Deal)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): अशोक सज्जनहार (पूर्व राजनयिक), निमिष कुमार (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

पिछले क़रीब डेढ़ साल से अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के थमने के आसार बन रहे हैं। हाल ही में, दोनों देशों के बीच पहले दौर के व्यापारिक समझौते पर सहमति बनी है। इसके तहत, चीन द्वारा अमरीका से किए जाने वाले आयात में 2 साल में 200 अरब डालर की वृद्धि की जाएगी। इसमें उत्पाद और सेवाओं की ख़रीद शामिल होंगी। दूसरी तरफ, अमेरिका चीन से किए जाने वाले अपने आयात पर लगाए गए शुल्क में कुछ कटौती करेगा।

पहले दौर के इस व्यापारिक संधि के कुछ प्रमुख बिंदु

व्यापार समझौते के इस पहले दौर में अमेरिका ने कई चीनी उत्पादों पर शुल्क में कटौती की है और इसके बदले चीन ने अमेरिका से उसके उत्पादों और सेवाओं की अतिरिक्त ख़रीद का वादा किया है।

अमेरिका की क्या जिम्मेदारी होगी-

  • चीन से आयात होने वाले मोबाइल, खिलौने और लैपटॉप समेत तमाम सामानों पर अमेरिका ने आने वाले समय में भारी टैरिफ लगाने की योजना बनाई थी। लेकिन इस पहले दौर के समझौते के बाद अब अमेरिका यह टैरिफ नहीं लगाएगा।
  • अमेरिका द्वारा 120 बिलियन डॉलर के मूल्य वाले चीनी सामानों पर टैरिफ दर आधा यानी 7.5 फ़ीसदी कर दिया जाएगा।
  • अमेरिका ने चीन को जो ‘करेंसी मैनिपुलेटर’ की संज्ञा दे रखी थी, अब वह हटा दी गयी है, 13 जनवरी 2020 को यानी समझौते से दो दिन पहले।

चीन की क्या ज़िम्मेदारी होगी-

  • दो सालों के दौरान चीन को 200 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं की ख़रीद करनी होगी। इसमें अमेरिका से 52.4 अरब डॉलर की ऊर्जा और 32 अरब डॉलर के कृषि उत्पादों की खरीद भी शामिल है।
  • साथ ही, चीन ने वादा किया है कि वो नकली अमेरिकी सामानों की बिक्री पर रोक लगाएगा, अमेरिकी बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन नहीं करेगा। चीन और यूएस इस बात के लिए भी सहमत हुए हैं कि अगर किसी पक्ष को लगता है कि दूसरा पक्ष मुद्रा की विनिमय दरों में हेरफेर कर रहे हैं, तो अंतर्ऱाष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जांच-निगरानी की जा सकती है।
  • चीन सहमत हुआ कि तकनीक के जबरन हस्तांतरण की स्थितियां पैदा ना होने दी जायेंगी।

व्यापार युद्ध यानी ट्रेड वॉर क्या है?

जब एक देश किसी दूसरे देश से आयातित वस्तुओं पर बदले की भावना से टैक्स या टैरिफ बढ़ा देता है तो इसे ट्रेड वॉर कहा जाता है। ट्रेड वॉर संरक्षणवाद का नतीज़ा होता है जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाधित होता है।

  • आमतौर पर संरक्षणवाद के तहत घरेलू व्यापार और नौकरियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने और व्यापार घाटे को सही करने के लिहाज़ से कदम उठाये जाते हैं।
  • इसके लिए एक देश दूसरे देश से आने वाले समान पर टैरिफ या टैक्स लगा देता है या उसे बढ़ा देता है। इससे आयात होने वाली चीजों की कीमत बढ़ जाती हैं, जिससे वे घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाती। इससे उनकी बिक्री घट जाती है।
  • मौजूदा वक़्त में, अमेरिका और चीन के बीच यही स्थिति देखी जा रही थी।

कहाँ तक सही है ट्रेड वॉर?

ट्रेड वॉर को लेकर विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रेड वॉर घरेलू व्यापार के लिहाज़ से ठीक होता है और इसका लाभ मिलता है। वहीँ इसके आलोचकों का दावा है कि लॉन्ग टर्म में, ट्रेड वॉर घरेलू कंपनियों और उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुंचाता है।

लाभ

  • घरेलू कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाता है।
  • घरेलू सामानों की मांग में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • घरेलू रोजगार अवसरों में बढ़ोत्तरी होती है।
  • व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलती है।
  • ऐसे देश जो अनैतिक व्यापार करते हैं, उनको जवाब देने का एक अच्छा तरीका है।

नुकसान

  • लागत और मुद्रास्फीति में बढ़ोत्तरी होती है।
  • उपभोक्ताओं के सामने विकल्पों की कमी हो जाती है।
  • अंतराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक वृद्धि को धीमा कर देता है।
  • दो देशों के बीच राजनयिक और सांस्कृतिक संबंध को रोकता है।
  • जब दो देशों में ट्रेड वॉर छिड़ता है तो उसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ता है।

ट्रेड वॉर के लिए टैरिफ और नॉन टैरिफ दोनों तरीके अपनाते हैं देश

ट्रेड वार में देश एक दूसरे के खिलाफ कई रास्ते अपनाते हैं। मसलन, आयात पर टैरिफ बढ़ाने, आयात-निर्यात का कोटा तय करने और कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने जैसे कदम शामिल होते हैं। इसके अलावा उत्पादों की गुणवत्ता के नए मानक तय करने जैसे कदम भी उठाये जाते हैं। चीन पर कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने का आरोप लगता रहा है।

क्यों छिड़ा था यह व्यापार युद्ध?

इस व्यापार युद्ध की बुनियाद 2018 में तब पड़ी जब अमेरिका ने चीन को ‘आर्थिक आक्रमणकारी’ घोषित करते हुए चीनी उत्पादों पर भारी टैरिफ लगा दिया था।

  • अमेरिका और चीन के बीच एक बड़ा व्यापार घाटा था। 2018 में साज सामान का व्यापार घाटे का आंकड़ा अमेरिका के लिए 419 डालर था। व्यापारिक घाटे का अमरीका की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा था जिसमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा था, साथ ही रोजगार अवसरों पर भी असर पड़ रहा था।
  • चीन पर अमेरिकी आरोप था कि वह अमेरिकी सामानों की नकल और साइबर चोरी के माध्यम से अमेरिका के बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन कर रहा था।
  • अमेरिका की नजर में चीन जबरन टेक्नोलॉजी हस्तांतरण की नीति अपना रहा था। इसका मतलब जब अमेरिकी कंपनियां चीनी कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से चीन में निवेश करती थीं, तो चीन अमेरिकी कंपनियों को इस बात के लिए मजबूर करता था कि वह अपनी टेक्नोलॉजी चीनी कंपनियों को हस्तांतरित करें।

व्यापार समझौते के क्या फायदे हैं?

इससे विश्व व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और व्यापार एवं निवेश में वृद्धि होगी।अमेरिका और भारत के बीच में जो आंशिक व्यापार युद्ध चल रहा है, उसके सुलझने की उम्मीद बढ़ गई है।

समझौते में अभी भी कौन सी चुनौतियाँ बाकी हैं?

इस पहले चरण के समझौते में सारे विवादित बिंदुओं पर आपसी सहमति नहीं बन पाई है यानी यह समझौता अभी आंशिक ही है।

  • चीन की सरकार अपने यहां उद्योगों को जो मदद देती है, उस मदद के औचित्य पर भी अभी बात होनी बाकी है।
  • चीन के समक्ष जो लक्ष्य रखे गये हैं, वह उसकी क्षमता के मुताबिक ज्यादा लग रहे हैं। ऐसे में चीन इन लक्ष्यों को पा लेगा, इस बारे में कहना थोड़ा मुश्किल है।
  • कुल मिलाकर यह समझौते से बड़ी चुनौती इसके पालन के वक्त देखने में आयेगी।