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Blog / 10 Apr 2019

(आर्थिक मुद्दे) गरीबी - दशक दर दशक (Poverty : Trends in Past Decades)

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(आर्थिक मुद्दे) गरीबी - दशक दर दशक (Poverty : Trends in Past Decades)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): प्रो.अरुण कुमार (प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय - JNU), परंजय गुहा ठाकुरता (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों 25 मार्च को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने न्यूनतम आय योजना को लागू करने का वादा किया। कांग्रेस अध्यक्ष ने ऐलान किया कि अगर कांग्रेस इस बार सत्ता में वापस आती है तो भारत के पांच करोड़ सबसे ग़रीब परिवारों को सालाना 72,000 रुपये दिया जाएगा।

क्यों ज़रूरी है ये योजना?

दुनिया के अलग अलग हिस्सों में आर्थिक असमानता पर शोध करने वाली संस्था वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब के सह-निदेशक और वरिष्ठ अर्थशास्त्री लूकस चांसेल ने इस योजना को सराहते हुए इसे एक परिवर्तनकारी कदम बताया है।

  • भारत में सबसे अमीर वर्ग की बढ़ती आर्थिक क्षमता पर नज़र डालें तो भारत के 1 फीसदी लोगों की आय साल 1980 से 2019 के बीच छह फीसदी से बढ़कर 21 फीसदी हुई है। इस आधार पर चांसेल कहते हैं कि आर्थिक असमानता कम करने के लिहाज़ से ये योजना काफी कारगर साबित हो सकती है।
  • इकॉनोमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, एक वरिष्ठ फ्रांसीसी अर्थशास्त्री गाय सॉरमन कहते हैं, "अर्थशास्त्रियों के बीच न्यूनतम आय गारंटी योजना के तहत नकदी दिया जाना ग़रीबी दूर करने का सबसे प्रभावी तरीका है।

इस योजना की लागत कितनी होगी?

'न्याय' योजना के लिए अगर ख़र्च की बात की जाए तो इसमें क़रीब तीन लाख साठ हज़ार करोड़ रुपए के ख़र्च का अनुमान लगाया जा रहा है।

  • अगर साल 2019-20 के बजट को देखें तो यह लगभग 27.84 लाख करोड़ रुपए का होगा।
  • यानी इस लिहाज़ से इस योजना के लिए बजट से लगभग 13 प्रतिशत चाहिए होगा।
  • जीडीपी के हिसाब से यह लगभग दो प्रतिशत बनता है।

योजना के समर्थकों ने क्या उपाय सुझाए हैं?

कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस योजना के लिए धन आपूर्ति की राह सुझाई है।

  • 2.5 करोड़ रुपये से अधिक की जायदाद वाले परिवारों पर कुल 2% टैक्स लगाकर 2.3 लाख करोड़ रुपये वसूला जा सकता है। यह केवल शीर्ष 0.1% परिवारों को प्रभावित करेगा और 99.9% घर इससे अछूते रहेंगे।
  • दो करोड़ रुपये से अधिक की जमीन और घर पर 2% टैक्स लगाने के बाद 2.6 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा। ये भी केवल शीर्ष 1 फीसदी परिवारों को ही प्रभावित करेगा।
  • केवल 20 प्रतिशत का स्लैब अगर शीर्ष 0.1% आबादी के लिए एक बना दिया जाए, तो इससे 1.36 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 0.6% उत्पन्न किया जा सकता है। इसका मतलब है 50 लाख से अधिक आय वाले व्यक्तियों के लिए 30% के मौजूदा टैक्स स्तर से बढ़ाकर 50% का मार्जिनल इनकम टैक्स ब्रैकेट जोड़ा जाए।

आलोचकों का क्या कहना है?

कई अर्थशास्त्रियों ने इस तरह की योजनाओं की प्रकृति पर सवाल उठाया है।

  • उनका कहना है कि किसी देश को आगे बढ़ने के लिए ज़्यादा काम करने की ज़रूरत होती है। लेकिन इसकी जगह अगर लोगों को घर बैठे फ्री में आय होने लगे तो वो काम क्यों करेंगे।
  • कुछ विशेषज्ञ इस स्कीम के अमलीकरण लेकर अपनी चिंताएं ज़ाहिर करते हैं। उनका मानना है कि इस स्कीम की आलोचना इसके आर्थिक भार को लेकर नहीं है। बल्कि इसके अमलीकरण और आर्थिक संसाधनों के बेहतर उपयोग के दूसरे बेहतर तरीकों को लेकर है।
  • इसके अलावा इस स्कीम को अमल में लाने के लिए ये तय करना बहुत मुश्किल होगा कि ग़रीब कौन है और कौन नहीं। क्योंकि जो व्यक्ति 2011 में ग़रीब था तो वो अभी भी उतना ही ग़रीब हो ये निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में उन लोगों को तय करना मुश्किल होगा जो इस योजना से लाभांवित होंगे।
  • इसके बाद अगली समस्या ये होगी कि इस पैसे को किस तरह से पंक्ति में खड़े आख़िरी व्यक्ति तक पहुंचाया जाएगा।
  • कुछ अर्थशास्त्री इस योजना की आधार पर आलोचना कर रहे हैं कि इसके लिए इतना पैसा कहाँ से आएगा। उनका कहना है कि अगर इसे लागू किया गया तो हमारा राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.14% से बढ़कर 6-7 % के स्तर तक पहुँच सकता है।
  • इसके चलते शहरी और ग्रामीण ग़रीबों को दी जा रही सभी किस्म की सब्सिडी में या तो कटौती करनी होगी या उन्हें बंद करना पड़ेगा।
  • इसके कारण महंगाई में भी भारी इज़ाफ़ा होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

पार्शियल बेसिक इनकम जैसी है ये व्यवस्था

'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' का सुझाव लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाय स्टैंडिंग ने दिया था। बेसिक इनकम अर्थ नेटवर्क के अनुसार 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' स्कीम के तहत सरकार देश के हर नागरिक को बिना शर्त एक तयशुदा रकम देती है। अगर ये सुविधा कुछ खास तबकों जैसे कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को ही दिया जाय तो इसे 'पार्शियल बेसिक इनकम' कहते हैं।

2016-17 के आर्थिक सर्वे में इस तरह की बात हो चुकी है

गौरतलब है कि साल 2016-17 के आर्थिक सर्वे में भी 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' स्कीम की सिफारिश की गई थी। इस आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी यूबीआई पर 40 से अधिक पेजों का एक खाका तैयार किया गया था।

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सल बेसिक इनकम भारत में व्याप्त गरीबी का एक संभव समाधान हो सकता है। चूंकि कल्याणकारी योजनाएं उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रही हैं, इस वजह से यूबीआई को सार्थक कदम बताया गया था।