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Blog / 10 May 2019

(आर्थिक मुद्दे) वित्तीय क्षेत्र : बढ़ता NPA और प्रभाव (Financial Sector: Rising NPA and It's Effect)

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(आर्थिक मुद्दे) वित्तीय क्षेत्र : बढ़ता NPA और प्रभाव (Financial Sector: Rising NPA and It's Effect)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): अनिल कुमार उपाध्याय (बैंकिंग मामलो के जानकार), शिशिर सिन्हा (वरिष्ठ पत्रकार हिन्दू बिज़नेस लाइन)

वित्तीय प्रणाली क्या होती है?

किसी भी अर्थव्यवस्था में, वित्तीय प्रणाली के ज़रिये उस अर्थव्यवस्था में होने वाले बचतों को जुटाकर अंतिम उधारकर्ताओं या निवेशकों तक कारगर रूप से पहुंचाया जाता है। यह प्रणाली वित्त बाजारों और संस्थाओं के एक नेटवर्क के जरिए संचालित होती है। मोटे तौर पर, वित्तीय बाज़ार को मुद्रा बाजार, पूंजी बाजार और ऋण बाजार के रूप में बांटा जाता है।

  • मुद्रा बाजार में अल्पावधि निधियों यानी शार्ट टर्म फंड्स का लेन-देन किया जाता है, जबकि पूंजी बाजार में दीर्घावधि निधियों यानी लॉन्ग टर्म फंड्स का लेन-देन किया जाता है।
  • ऋण बाजार में बैंक, वित्तीय संस्थाओं और एनबीएफसी के ज़रिए कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत उद्द्येश्यों के लिए लघु, मध्यम और लंबी अवधि का क़र्ज़ दिया जाता है।
  • मुद्रा बाजार के कामों का रेग्युलेशन भारतीय रिजर्व बैंक करता है। और पूंजी बाजार का रेग्युलेशन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी करता है।
  • ऋण बाज़ार का रेग्युलेशन कई अलग-अलग संस्थाएं करती हैं, लेकिन ज़्यादातर रेग्युलेशन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ही किया जाता है। कुछेक वित्तीय कारोबार के लिए विशेष रेग्युलेटर हैं।

भारतीय वित्तीय प्रणाली के घटक

भारतीय वित्तीय प्रणाली के अहम् घटक है:

बैंक: बैंक भारत में संस्थागत क़र्ज़ का सबसे अहम् ज़रिया हैं और इनमें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंक, विदेशी बैकों सहित निजी क्षेत्र के बैंक शामिल हैं।

वित्तीय संस्थाएं: राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर कई वित्तीय संस्थाएं बनाई गई हैं। ये संस्थाएं उद्योग जगत की कई वित्तीय ज़रुरतों को पूरा करती हैं। इनमें अखिल भारतीय विकास बैंक, विशिष्ट वित्तीय संस्थाएं, निवेश संस्थाएं, राज्य वित्त निगम तथा राज्य औद्योगिक विकास निगम शामिल हैं।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs): गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां ऐसी संस्थाएं होती हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के तहत रजिस्टर्ड होती हैं और जिनका मुख्य काम उधार देना और विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार और चिटफंड से जुड़े कामों में निवेश करना है।

जोखिम पूंजी कंपनियां और उद्यम पूंजी कंपनियां: जोखिम पूंजी कंपनियां नये उद्यमियों को दीर्घकालीन प्रारंभिक पूंजी उपलब्ध कराती हैं। वहीँ उद्यम पूंजी, लघु और मध्यम उद्यमों के गठन के लिए और उनके विकास के प्रारम्भिक चरणों में फंडिंग का अहम् ज़रिया है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की चुनौती

ग़ौरतलब है कि आरबीआई रेग्युलेशन के तहत देश में 12 हजार से अधिक एनबीएफसी पंजीकृत हैं। आईएलएंडएफएस समूह (IL&FS Group) की कंपनियों के डिफॉल्ट करने के बाद एनबीएफसी क्षेत्र नकदी की किल्लत का सामना कर रहा है। इसके अलावा एनबीएफसी और भी कई चुनौतियाँ का सामना कर रहीं हैं, मसलन -

  • सॉल्वेंसी जोखिम और फंडिंग की उच्च लागत
  • कुछ एनबीएफसी प्रवर्तक के स्तर पर भी चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
  • कुछ एनबीएफसी की संपत्ति-इक्विटी का अनुपात आठ गुने से ज्यादा है यानी इनके क़र्ज़ बहुत ज़्यादा है
  • आईएलएंडएफएस मामले के बाद कई एनबीएफसी की क्रेडिट रेटिंग घटाई गई है ऐसे में इनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं
  • कुछ को लेनदारों से फंड मिलने में मुश्किल हो रही है।

आईएलएंडएफएस (IL&FS) मामला क्या है?

आईएलएंडएफएस सरकारी क्षेत्र की कंपनी है और इसकी कई सहायक कंपनियां हैं। इसे नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी यानी एनबीएफसी का दर्जा हासिल है। ये कंपनी दूसरे बैंकों से लोन लेती है। और इस पैसे से इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की फंडिंग करती है। सरकारी क्षेत्र की कंपनी होने के कारण इसकी विश्वसनीयता बहुत अधिक होती है। जिस वजह से इसे किसी तरह की गारंटी नहीं देनी पड़ती है।

गड़बड़ी ये हुई कि कंपनी ने छोटी अवधि में लौटाने वाला बहुत अधिक कर्ज़ ले लिया और उसकी आमदनी उतनी नहीं हो रही है। पूरे आईएलएंडएफएस ग्रुप पर करीब 91100 करोड़ रुपये का कर्ज है।

कंपनी के बॉन्ड्स में देश के करीब सभी म्युचुअल फंड्स, इंश्योरेंस कंपनियों और एनबीएफसी का पैसा लगा हुआ है। ऐसे में इन संस्थाओं के पैसे भी जोखिम के दायरे में आ गए हैं।

इसके कारण इक्विटी इंवेस्टर्स और दूसरे एनबीएफसी में भी उठा पटक मची है। बहरहाल कंपनी का नियंत्रण सरकार ने अपने हाथों में ले लिया है और सुधार की कोशिशें जारी हैं।

म्यूच्यूअल फंड क्या होता है?

दरअसल म्यूच्यूअल फंड में आम लोगों का पैसा इकट्ठा किया जाता है। और इस पैसे को आगे कैसे निवेश करना है इसकी जिम्मेदारी एक फण्ड मैनेजर को दी जाती है। ये फंड मैनेजर निवेश के मामलों का विशेषज्ञ होता है। ये मैनेजर शेयर या बांड में पैसे लगाकर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने की कोशिश करता है। और इस लाभ को उन लोगों में बांटा जाता है जिनका पैसा निवेश किया गया रहता है। इस तरह म्यूचुअल फंड के जरिए एक छोटा निवेशक भी विशेषज्ञ की सेवा का लाभ ले पाता है।

म्यूच्यूअल फंड की समस्या

एनबीएफसी में जो दिक्कतें पैदा हुईं हैं, इसका असर म्यूच्यूअल फंड पर भी देखा जा सकता है। क्योंकि इन म्यूच्यूअल फंड ने एनबीएफसी में काफी निवेश कर रखा था। आईएलऐंडएफएस, एस्सेल समूह, दीवान हाउसिंग समूह और अनिल अंबानी समूह में म्युचुअल फंडों का निवेश 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। चूँकि ये कंपनियां क़र्ज़ लौटाने में सक्षम नहीं हैं ऐसे में निवेशकों का भी जोखिम बढ़ गया है।

एक तरफ म्यूच्यूअल फंड द्वारा इन कंपनियों में लगाए गए फंड की रिकवरी नहीं हुई। दूसरी तरफ रीडम्पशन का दबाव बढ़ने से म्यूच्यूअल फंड कंपनियां दोहरी मुश्किल में घिर गईं हैं।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्या होती है?

क्रेडिट रेटिंग के ज़रिये किसी भी संस्था की कर्ज लेने या उसे चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां परोक्ष रूप से यह बतातीं है कि कोई भी संस्था आर्थिक रूप से कितना मजबूत है और उसको कर्ज देना कितना जोखिम भरा होगा।

  • रेटिंग करते वक़्त ये एजेंसियां कंपनियों के वित्तीय उत्पादों मसलन बांड, सावधि जमा खाता और कुछ अन्य छोटी अवधि के ऋण दस्तावेजों का आकलन करती हैं।
  • मौजूदा वक़्त में भारत में 4 प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां काम कर रही हैं। इनमें क्रिसिल (CRISIL), इक्रा (ICRA), केअर (CARE) और डीसीआर इंडिया (DCR India) शामिल है।
  • इसी तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां काम कर रही हैं। इस समय रेटिंग की दुनिया में तीन बड़े नाम हैं - स्टैण्डर्ड एंड पूअर, मूडीज़ और फ़िच।

इन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों पर भी सवाल

आईएलएंडएफएस मामले के खुलासे के बाद इन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों पर भी सवाल उठने लगे हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक आईएलएंडएफएस की माली हालत उजागर नहीं हुई थी तब तक रेटिंग एजेंसियों ने इसे हाई रेटिंग दी थी और अब अचानक इसे घटा दिया। ये उन निवेशकों के साथ धोखा है, जो रेटिंग देखकर अपना पैसा निवेश करते हैं।

वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC)

इसका गठन दिसंबर 2010 में किया गया था। और इसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा की जाती है। परिषद वित्तीय स्थिरता, वित्तीय क्षेत्र के विकास, अंतर-नियामक समन्वय और वित्तीय साक्षरता के लिए काम करता है। इसके सदस्यों में शामिल होते हैं:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर,
  • वित्त सचिव,
  • आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव,
  • वित्तीय सेवा विभाग के सचिव,
  • मुख्य आर्थिक सलाहकार,
  • वित्त मंत्रालय,
  • सेबी के अध्यक्ष,
  • इरडा के अध्यक्ष,
  • पी.एफ.आर.डी.ए. के अध्यक्ष

निष्कर्ष

विभिन्न स्तरों पर तमाम सरकारी और अन्य प्रयासों के बावजूद संकटग्रस्त कंपनियों के साथ म्युचुअल फंड उद्योग और एनबीएफसी की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। और निवेशकों और कर्ज़दाताओं के पुनर्भुगतान को लेकर चिंता अभी भी दिख रही है।