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Blog / 16 May 2019

(आर्थिक मुद्दे) निर्यात और व्यापार युद्ध (Export and Trade War)

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(आर्थिक मुद्दे) निर्यात और व्यापार युद्ध (Export and Trade War)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव), स्कंद विवेक धर (आर्थिक पत्रकार, हिंदुस्तान)

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों अमरीका ने चीन के 200 अरब डॉलर मूल्य के सामान पर नए टैरिफ़ लगाने की घोषणा की। पहले ये टैरिफ 10 फीसदी था जो अब बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया गया।

ग़ौरतलब है कि अमेरिका और चीन के बीच ये ट्रेड वॉर पिछले साल से ही जारी है। इस दौरान दोनों देशों ने बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझाने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। 10 मई को दोनों देशों के बीच एक बार फिर वार्ता हुई लेकिन बातचीत बेनतीजा ही रहा। इसके बाद अमेरिका ने चीन से होने वाले आयात में से उन सभी चीजों पर टैक्स की वसूली बढ़ाने का फैसला ले लिया, जो अब तक इससे बची हुई थीं।

व्यापार युद्ध यानी ट्रेड वॉर

जब एक देश किसी दूसरे देश से आयातित वस्तुओं पर बदले की भावना से टैक्स या टैरिफ बढ़ा देता है तो इसे ट्रेड वॉर कहा जाता है। ट्रेड वॉर संरक्षणवाद का नतीज़ा होता है जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाधित होता है। आमतौर पर संरक्षणवाद के तहत घरेलू व्यापार और नौकरियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने और व्यापार घाटे को सही करने के लिहाज़ से कदम उठाये जाते हैं।

इसके लिए एक देश दूसरे देश से आने वाले समान पर टैरिफ या टैक्स लगा देता है या उसे बढ़ा देता है। इससे आयात होने वाली चीजों की कीमत बढ़ जाती हैं, जिससे वे घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाती। इससे उनकी बिक्री घट जाती है। मौजूदा वक़्त में, अमेरिका और चीन के बीच यही स्थिति देखी जा रही है।

कहाँ तक सही है ट्रेड वॉर?

ट्रेड वॉर को लेकर विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रेड वॉर घरेलू व्यापार के लिहाज़ से ठीक होता और इसका लाभ मिलता है। वहीँ इसके आलोचकों का दावा है कि लॉन्ग टर्म में, ट्रेड वॉर घरेलू कंपनियों और उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुंचाता है।

लाभ

  • घरेलू कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाता है।
  • घरेलू सामानों की मांग में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • घरेलू नौकरी में बढ़ोत्तरी होती है।
  • व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलती है।
  • ऐसे देश जो अनैतिक व्यापार करते हैं उनको जवाब देने का एक अच्छा तरीका है।

नुकसान

  • लागत और मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलता है।
  • उपभोक्ताओं के सामने विकल्पों की कमी हो जाती है।
  • अंतराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक वृद्धि को धीमा कर देता है।
  • दो देशों के बीच राजनयिक और सांस्कृतिक संबंध को रोकता है।
  • जब दो देशों में ट्रेड वॉर छिड़ता है तो उसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ता है।

ट्रेड वॉर के लिए टैरिफ और नॉन टैरिफ दोनों तरीके अपनाते हैं देश

ट्रेड वार में देश एक दूसरे के खिलाफ कई रास्ते अपनाते हैं। मसलन, आयात पर टैरिफ बढ़ाने, आयात-निर्यात का कोटा तय करने और कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने जैसे कदम शामिल होते हैं। इसके अलावा उत्पादों की गुणवत्ता के नए मानक तय करने जैसे कदम भी उठाये जाते हैं। मौजूदा वक़्त में चीन पर कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने का आरोप लग रहा है।

कितना असर पडेगा भारत पर?

  • वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 1.6 फीसदी की है, इसलिए भारत पर ट्रेड वॉर के असर का अनुमान लगा पाना थोड़ा मुश्किल है। कुछ सेक्टरों पर इसका जरूर असर पड़ सकता है।
  • अगर ग्लोबल ट्रेड वॉर बढ़ता है तो विदेशी निवेशक भारी बिकवाली शुरू कर सकते हैं। और अपना पैसा भारतीय बाज़ारों से निकाल सकते हैं।
  • अगर अमेरिका चीन के सामान पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाता है तो चीन शॉर्ट टर्म उपाय के तौर पर अपनी करंसी की वैल्यू कम कर सकता है। इससे एशियाई करंसी में कमजोरी का एक सिलसिला शुरू होगा। इसकी ज़द में रुपया भी आ सकता है।
  • चीनी युआन की वैल्यू कम होने से चीन से होने वाला आयात सस्ता हो सकता है जिसके कारण रुपये पर अतिरिक्त दबाव बन सकता है।
  • अमेरिका की देखा-देखी यूरोपियन यूनियन भी संरक्षणवादी क़दम उठा सकता है, और इस कारण भारतीय निर्यात पर असर पड़ सकता है।
  • अस्थिरता के चलते अंतर्राष्ट्रीय बांड्स बाज़ार पर उलटा असर पड़ने के आसार नज़र आ रहे हैं। इसका असर भारतीय बैंकों की कमाई पर भी पड़ सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अस्थिरता के कारण क्रूड के महंगा होने की आशंका है, जिससे भारत में लागत पर असर पड़ सकता है।

यूएन की एक स्टडी के मुताबिक, चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के कारण भारत को कुछ फायदा भी होगा। दरअसल अमेरिका-चीन तनाव से उन देशों को फायदा मिलने की उम्मीद है, जो अधिक प्रतिस्पर्धी हैं और अमेरिकी और चीनी कंपनियों का जगह लेने की आर्थिक क्षमता रखते हैं।