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Blog / 26 Dec 2019

(आर्थिक मुद्दे) अर्थव्यवस्था और स्टॉक बाजार (Economy and Stock Market)

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(आर्थिक मुद्दे) अर्थव्यवस्था और स्टॉक बाजार (Economy and Stock Market)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): सुभाष चंद्र पांडे (पूर्व विशेष सचिव, भारत सरकार), निमिष कुमार (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

बीते 20 दिसंबर तक के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक - सेंसेक्स में एक साल भीतर ही 15 फ़ीसदी से ऊपर का उछाल देखने को मिला। जानकार इसे एक विरोधाभास के तौर पर देख रहे हैं, क्योंकि जहां एक तरफ़ भारतीय अर्थव्यवस्था में सालाना विकास दर 5 फ़ीसदी भी नहीं पहुंच पा रही है तो वहीं दूसरी तरफ शेयर बाज़ार में इतना बड़ा उछाल देखने को मिल रहा है। इस दरमियान प्रधानमंत्री के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का बयान आया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब आईसीयू की तरफ बढ़ रही है।

वित्तीय बाज़ार क्या होता है?

किसी वित्तीय बाजार को एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में समझा जा सकता है जहां खरीददारों और विक्रेताओं के बीच धन का लेन-देन होता है। ये लेन-देन कई कारकों पर निर्भर करता है। जिसमें आपूर्ति-मांग, ब्याज और लाभांश जैसे कारक शामिल होते हैं। अध्ययन के लिहाज़ से वित्त बाजार को दो भागों में बांटा गया है - पहला मुद्रा बाजार और दूसरा पूंजी बाजार।

पूँजी बाज़ार

किसी अर्थव्यवस्था के वित्तीय बाजार का वह अंग जो दीर्घावधिक अमूमन 1 साल या उससे ज्यादा के वक्त के लिए धन उपलब्ध कराता है पूंजी बाजार के तौर पर जाना जाता है। इस बाज़ार के कई अंग होते हैं जिनमें अखिल भारतीय संस्थान, निवेश संस्थान, बैंक और शेयर बाजार शामिल होते हैं।

प्रतिभूति बाज़ार

जिस तरह से किसी देश के विकास के लिये सड़कें, रेल यातायात, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं सबसे ज़रूरी होती हैं, वैसे ही देश के उद्योगों के विकास के लिये शेयर बाज़ार ज़रूरी होता है। उद्योग धंधो को चलाने के लिये पूँजी चहिये होता है। और ये पूँजी उन्हे शेयर बाज़ार से मिलता है। शेयर बाज़ार के ज़रिए हर आम आदमी बडे़ से बडे़ उद्योग मे अपनी भागीदारी कर सकता है। इस तरह की भागीदारी से वो बड़े उद्योगों मे होने वाले मुनाफे मे हिस्सेदार बन सकता है।

इसे एक मिसाल के तौर पर इस तरह समझा जा सकता है कि अगर किसी भी नागरिक को ये लगता है कि आने वाले समय में किसी कंपनी को भारी मुनाफा होने वाला है, तो वह उस कंपनी का शेयर खरीद के इस मुनाफे मे हिस्सेदार बन सकता है।

वित्तीय बाजार का वह अंग जहां से शेयर, प्रतिभूति, बांड और म्यूचुअल फंड के जरिए लॉन्ग टर्म पूँजी की उगाही की जाती है उसे प्रतिभूति बाजार कहते हैं। प्रतिभूति बाजार को अंग्रेजी में सिक्योरिटी मार्केट भी कहा जाता है। यानी प्रतिभूति बाज़ार पूँजी बाज़ार का ही एक अंग होता है।

सेबी

भारत में सिक्योरिटी मार्केट के लिए क़ायदे-क़ानून बनाने का काम भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी करता है। इसकी स्थापना सेबी अधिनियम 1992 के तहत 12 अप्रैल 1992 को हुई थी। सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है और नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में इसके क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं।

सिक्योरिटी बाजार में कई प्रकार के लेनदेन किए जाते हैं जिनमें बदला, प्रतिवर्ती बदला, वायदा कारोबार और इनसाइडर ट्रेडिंग जैसे लेन-देन शामिल होते हैं। हालांकि इनमें तमाम लेन-देन गैर-कानूनी भी होते हैं मसलन इनसाइडर ट्रेडिंग।

प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार

हर सिक्योरिटी बाज़ार में पूँजी उगाही करने के दो पूरक बाज़ार होते हैं जिन्हें प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार कहा जाता है। पूँजी उगाहने के लिए अक्सर शेयर या बांड जैसे उपकरण बाजार में ज़ारी किए जाते हैं। जब इन उपकरणों को डायरेक्ट खरीदकर निवेश किया जाता है तो इसे प्राथमिक बाजार का कारोबार कहा जाता है। मसलन अगर किसी व्यक्ति या संस्थान द्वारा किसी कंपनी का शेयर सीधे कंपनी से खरीदा जाए तो इसे प्राथमिक बाजार का कारोबार कहा जाता है, और ऐसे खरीददार को 'प्राथमिक शेयर धारक' के तौर पर जाना जाता है।

जब प्राथमिक शेयर धारक आपस में या किसी और के साथ शेयरों की खरीद-बिक्री करते हैं तो इसे द्वितीयक शेयर बाजार कहा जाता है। किसी भी सिक्योरिटी मार्केट का ज़्यादातर कारोबार द्वितीयक शेयर बाजार में ही किया जाता है, क्योंकि प्राथमिक बाजार में कंपनियां अपना शेयर बार-बार नहीं बेचती हैं।

स्टॉक एक्सचेंज क्या होता है?

कंपनियों को अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है। पैसा इकट्ठा करने के लिए ये कंपनियां अपना मालिकाना हक़ बेचती हैं। इस मालिकाना हक़ को शेयर के तौर पर समझा जा सकता है। शेयर बाज़ार एक ऐसा बाज़ार है जहाँ कंपनियों के शेयर खरीदे-बेचे जा सकते हैं। किसी भी दूसरे बाज़ार की तरह शेयर बाज़ार में भी खरीदने और बेचने वाले एक-दूसरे से मिलते हैं और मोल-भाव कर के सौदे पक्के करते हैं।

पहले शेयरों की खरीद-बिक्री मौखिक बोलियों से होती थी और खरीदने-बेचने वाले मुंहजबानी ही सौदे किया करते थे। लेकिन अब यह सारा लेन-देन स्टॉक एक्सचेंज के नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटरों के जरिये होता है। यानी स्टॉक एक्सचेंज को शेयर मन्डी के तौर पर समझा जा सकता है।

एक प्रकार से देखे तो यहा पे शेयरो की नीलामी होती है। अगर किसी को बेंचना होता है तो सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को ये शेयर बेंच दिया जाता है। या अगर कोई शेयर खरीदना चाह्ता है तो बेचने वालो मे से जो सबसे कम कीमत पे तैयार होता है उससे शेयर खरीद लिया जता है।

प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 में स्टॉक एक्सचेंज की परिभाषा दी गयी है। विश्व का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज बेल्जियम में साल 1631 में शुरू किया गया था।

डी-मैट खाता

शेयर बाज़ार में पैसा लगाने के लिए आम ग्राहक को किसी डीमैट सर्विस देने वाले बैंक मे अपना खाता खोलना पडता है। इस खाता को डी-मैट खाता कहा जाता है। आजकल कई बैंक जैसे आइसीआइसीआइ, एचडीएफसी, भारतीय स्टटे बैंक, इत्यादि डीमैट सर्विस देते है। इस तरह के खाते की सालाना फीस 500-800 रु तक होती है।

सेंसेक्स क्या होता है?

वर्तमान में भारत के कुल 23 स्टॉक एक्सचेंज काम कर रहे है जिनमे 5 राष्ट्रीय स्तर के है बाकी क्षेत्रीय स्तर के हैं। भारत और एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज BSE है। इसकी स्थापना 9 July, 1875 को हुई थी। इसके सूचकांक को सेंसेक्स कहा जाता है, जिसमें 30 कंपनियों को शामिल किया गया है। भारत का दूसरा स्टॉक एक्सचेंज नेशनल स्टॉक एक्सचेंज है।