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Blog / 04 Oct 2019

(आर्थिक मुद्दे) सऊदी रिफाइनरी हमला - कच्चे तेल के भाव और भारतीय अर्थव्यवस्था (Attack on Saudi Refinery - Crude Oil Price and Indian Economy)

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(आर्थिक मुद्दे) सऊदी रिफाइनरी हमला - कच्चे तेल के भाव और भारतीय अर्थव्यवस्था (Attack on Saudi Refinery - Crude Oil Price and Indian Economy)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): पिनाक रंजन चक्रवर्ती (पूर्व राजदूत), शिशिर सिन्हा (वरिष्ठ पत्रकार, बिज़नेस लाइन)

चर्चा में क्यों?

बीते 14 सितम्बर को सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के दो बड़े ठिकानों - अबक़ीक़ और ख़ुरैस - पर भयानक ड्रोन हमले हुए। जिसके चलते अस्थाई तौर पर इन दोनों जगहों पर तेल उत्पादन प्रभावित हुआ है। ग़ौरतलब है कि सऊदी अरब भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश है। ऐसे में, इस हमले के कारण भारत में तेल की घरेलू आपूर्ति और आयात व्यय पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

अरामको क्या है?

सऊदी अरामको सऊदी अरब की राष्ट्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस कंपनी है। यह राजस्व के मामले में दुनिया की कच्चे तेल की सबसे बड़ी कंपनी है।

हमलों के पीछे कौन है?

सऊदी अरब ने इस हमले का आरोप ईरान पर लगाया है। सऊदी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता तुर्की अल-मलिकीके मुताबिक़ यह हमला शत-प्रतिशत ईरान प्रायोजित है। इसके अलावा अमेरिका ने भी हमले का आरोप ईरान पर मढ़ा और कहा कि उसके पास इस बात का पूरा प्रमाण है कि हमला ईरान द्वारा करवाया गया है। हालांकि ईरान ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। वहीं इससे अलग इस हमले की अधिकारिक ज़िम्मेदारी यमन के हूथी विद्रोहियों ने ली। ग़ौरतलब है कि यमन के हूथी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन प्राप्त है।

वैश्विक तेल बाजार पर प्रभाव

इस हमले का आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनोंप्रभाव हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय तेल बाज़ार में कुल कच्चे तेल की 10 फीसदी आपूर्ति सऊदी अरब द्वारा की जाती है। ऐसे में अगर उत्पादन कम हुआ तो बाज़ारों में तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। अरामको का मानना है कि वो जल्द ही हमले के असर से उबर जाएगा लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया के बाज़ार में हर महीने 150 मिलियन बैरल तेल की कमी हो सकती है। और इससे अंतररष्ट्रीय स्तर पर तेल कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा।

  • हमले की वजह से सऊदी अरब द्वारा तेल उत्पादन में 5.7 मिलियन(एक मिलियन का मतलब दस लाख) बैरल प्रतिदिन की कटौती हो गई। जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की आपूर्ति में 5 फ़ीसदी की कमी आ गई।
  • किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए सऊदी अरब ने 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन के अतिरिक्त उत्पादन की व्यवस्था कर रखी थी। लेकिन अरामको को हुए नुकसान के कारण सऊदी अरब अपनी इस अतिरिक्त उत्पादन क्षमता का उपयोग फिलहाल अभी नहीं कर पाएगा।

भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की आपूर्ति कम होने से इसकी कीमतें बढ़ सकती हैं। इसका नतीजा यह होगा कि अन्य करेंसी के मुकाबले रुपया कमजोर होगा जिसके कारण आयात महंगा हो सकता है।

  • पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ सकती है जिसका असर आम जनजीवन पर दिखेगा।
  • भारत अपनी कुल तेल ज़रूरतों का 83% हिस्सा बाहर से आयात करता है।ऐसे में,तेल आयात में व्यय बढ़ने से सरकार का खर्च बढ़ सकता है यानी इसका असर राजकोषीय घाटे पर पड़ेगा।
  • मौजूदा वक्त में सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डालर यानी 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने की एजेंडा लेकर चल रही है। लेकिन रुपया कमजोर होने से राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है।ऐसे में,5 लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को पाने की चुनौतियां बढ़ सकती हैं।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात जो है वह यह कि शेयर बाजार में निवेशकों की धारणा कमजोर होने का व्यापक असर दिख सकता है।

ऐसी आपात स्थिति से निपटने के लिए भारत को क्या करना चाहिए?

तेल के मामले में किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा कुछ मात्रा में अतिरिक्त तेल भंडारण करके रखा जाता है। भंडारण का यह काम इंडियन स्‍ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्वस लिमिटेड द्वारा किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की सलाह के मुताबिक हर देश को कम से कम इतना तेल भंडार रखना चाहिए कि उसकी 90 दिन की ऊर्जा जरूरतें पूरी हो सकें। लेकिन भारत अभी इस मानक से काफी पीछे है। सरकार को चाहिए कि वह अपनी अतिरिक्त ऊर्जा भंडारण की मात्रा को वाजिब स्तर तक बरकरार रखे।

  • भारत को अपने तेल आयात के स्रोतों के अन्य विकल्पों की तलाश करनी चाहिए और इसके लिए रूस और वेनेजुएला जैसे देश सही विकल्प साबित हो सकते हैं। यानी मध्य पूर्व जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से निकलकर हमें पूर्वी क्षेत्रों की तरफ ध्यान देना चाहिए।
  • भारत के ज्यादातर तेल और गैस टर्मिनल्स इस के पश्चिमी तट पर स्थित है। जबकि पश्चिमी तट सुरक्षा के लिहाज से थोड़ा संवेदनशील है। इसलिए भारत को अपने तेल और गैस टर्मिनल्स को पूर्वी तट पर भी निर्मित करना चाहिए, क्योंकि पूर्वी तट सुरक्षा के लिहाज से अपेक्षाकृत कम संवेदनशील है।
  • ईरान और वेनेजुएला पर अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते तेल की खरीददारी डॉलर में करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। ऐसे में भारत को इन देशों से तेल खरीदने के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली यानी Barter system के विकल्प पर भी ध्यान देना चाहिए। हालांकि कुछ देशों के साथ हम यह व्यवस्था पहले से ही चला रहे हैं।
  • इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल पर निर्भरता कम करनी चाहिए और इसे नवीकरणीय ऊर्जा जैसे कि सौर और शेल गैस के धारणीय उत्पादन पर ध्यान लगाना चाहिए।

कच्चे तेल का कितना आयात करता है भारत?

  • वित्तीय वर्ष 2014 में 189.2 मिलियन टन
  • वित्तीय वर्ष 2015 में 189.4 मिलियन टन
  • वित्तीय वर्ष 2016 में 202.9 मिलियन टन
  • वित्तीय वर्ष 2017 में 213.9 मिलियन टन
  • वित्तीय वर्ष 2018 में 220.4 मिलियन टन
  • वित्तीय वर्ष 2019 में 229 मिलियन टन (अनुमानित)

कैसे तय की जाती है तेल की कीमत?

तेल की कीमतें दो मुख्य चीजों पर निर्भर होती हैं - अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल की कीमत और दूसरा सरकारी टैक्स। क्रूड ऑयल के रेट पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, मगर टैक्स सरकार अपने स्तर से घटा-बढ़ा सकती है।

पहले देश में तेल कंपनियां खुद दाम नहीं तय करतीं थीं, इसका फैसला सरकार के स्तर से होता था। लेकिन जून 2017 से सरकार ने पेट्रोल के दाम को लेकर अपना नियंत्रण हटा लिया। अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिदिन उतार-चढ़ाव के हिसाब से तेल की कीमतें तय होती हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की खरीद बैरल के हिसाब से होती है। एक बैरल में करीब 159 लीटर तेल होता है।

अमूमन जिस कीमत पर हम तेल खरीदते हैं, उसमें करीब पचास प्रतिशत से ज्यादा टैक्स होता है। इसमें करीब 35 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी और 15 प्रतिशत राज्यो का वैट या सेल्स टैक्स। दो प्रतिशत कस्टम ड्यूटी होती है, वहीं डीलर कमीशन भी जुड़ता है। तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, उसे शोधित करने वाली रिफाइनरीज का खर्च भी शामिल होता है।

सरकार ने डीजल, केरोसिन और एलपीजी की कीमतों का नियंत्रण अपने हाथ में रखा है, बाकि पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में उतार-चढ़ाव के हिसाब से तय होती है।