(Video) पूर्वोत्तर विशेष (North East Special) मिज़ोरम : कला और संस्कृति (Mizoram - Art and Culture)
सन्दर्भ:
भारत के उत्तर पूर्व में मौजूद मिज़ोरम अपने सुहावने मौसम के लिए दुनिया भर में मशहूर है। ख़ूबसूरत से दिखने वाले इस राज्य को पहाड़ों की धरती भी कहा जाता है। क्यूंकि मिज़ोरम का ज़्यादातर हिस्सा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसके अलावा मिज़ोरम अपनी संस्कृति और परम्पराओं के लिए भी प्रसिद्द है। मिज़ोरम में रहने वाली जनजातियां साल भर रंग बिरंगे सांस्कृतिक त्यौहार मनाती हैं, जिसके कारण मिज़ोरम को सदाबहार राज्यों में से एक माना जाता है।
पूर्वोत्तर विशेष में आज हम एकबार फिर से आपको मिज़ोरम ले चलेंगे और वहां की कला और संस्कृति के साथ - साथ मिज़ोरम से जुड़ी कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियों से भी आपको रूबरू कराएंगे।
मिज़ोरम भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्यों में से एक है। इसकी सीमाएं पूर्व और दक्षिण में म्यांमार और पश्चिम में बांग्लादेश जैसे 2 पड़ोसी मुल्क़ों से मिलती हैं। मिज़ोरम का उत्तरी हिस्सा भी पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों से घिरा हुआ है, जिसमें मणिपुर, असम और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं।
मिज़ोरम का शुरुआती इतिहास मंगोलायड प्रजाति से शुरू होता है। 7 वीं शताब्दी के आस -पास मंगोलायड प्रजाति से जुड़े लोग भारत से सटे बर्मा और भारत के पड़ोसी मुल्क़ चीन पहुंचे। इसके कुछ वक़्त बाद यानी जब 9 वीं शताब्दी में ब्रिटिश मिशनरीज भारत आ रहे थे, तो उसी दौरान मंगोलायड प्रजाति के लोग भी ब्रिटिश मिशनरीज़ के संपर्क में आये और भारत के पर्वोत्तर इलाकों में रहने लगे। ब्रिटिश मिशनरीज़ के सम्पर्क में आने के बाद ये लोग शिक्षा के मामले में काफी बेहतर हुए और ब्रिटिश मिशनरीज़ ने ही इन लोगों में मिज़ो भाषा की शुरुआत भी की। बर्मा और भारत के पड़ोसी मुल्क़ चीन से आये सबसे पहले मंगोलायड प्रजाति की इन जनजातियों को कुकीज़ कहा जाता है । मिज़ोरम में सबसे आख़िरी जनजाति 19 वीं शताब्दी के दौरान आई, जिसे लुशाई के नाम से जाना जाता है। मिजोरम में समय समय पर कई जनजातियों के लोग आते गए। जिसके बाद मिजोरम में बसने जा रहा मिज़ो समुदाय तब तक कई जातियों और उपजातियों में बंट गया था। जिनमें लुशाई, पवई, पैथ, राल्ते, पैंग, हमार, कुकी, मारा और लाखें जैसे कुछ प्रमुख कबीले शामिल थे।
मिज़ोरम 1890 तक ब्रिटिश शासन के अधीन नहीं था। लेकिन 1890 के बाद मिजोरम भी अंग्रेज़ों के शासन में आ गया। जिसके बाद भारत को आज़ादी मिलने तक अंग्रेज़ो ने वहां भी राज किया। 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के साथ ही मिज़ोरम को भी आज़ादी मिल गई थी । उस वक़्त मिज़ोरम को मिजोरम नहीं बल्कि लुशाई हिल्स क्षेत्र के नाम से जाना जाता था जोकि आज़ादी के बाद भी कई सालों तक असम राज्य का हिस्सा रहा। लेकिन 1958- 1960 के दौरान आये मौतम अकाल और असम के सभी क्षेत्रों में चल रहे असमी भाषा विधयेक को लागू किए जाने की मांग ने मिज़ो लोगों को उग्र कर दिया, जिसके बाद मिजोरम 1971 में पहले केंद्र शासित राज्य बना और फिर 1987 तक आते आते मिज़ोरम को 23 वे राज्य का दर्जा मिल गया।
मौजूदा वक़्त में मिजोरम में कई जनजातियों के लोग रहते हैं। मिज़ोरम में रहने वाली अलग- अलग किस्म की जनजातियों की वजह से मिज़ोरम की संस्कृति काफी व्यापक और समृद्ध है। मिजोरम में जाति और लिंग के आधार पर कोई असमानता नहीं हैं। मिज़ोरम की आधिकारिक भाषा मिज़ो और अंग्रेजी है। मिजोरम में सबसे ज़्यादा ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं, जिनकी मौजूदगी करीब 87 % है। ईसाई समुदाय के अलावा यहां बौद्ध और हिंदू धर्म के लोग भी रहते हैं, जिसमें बौद्ध धर्म के लोगों की मौजूदगी 8.3 फीसदी, जबकि हिन्दू समुदाय के लोगों की संख्या इससे भी कम है। मिजोरम भारत का दूसरा सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य है। मिज़ोरम का क़रीब 86% हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ है, जोकि मिज़ोरम को जैवविविधता वाला राज्य बनाता है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र और मिजोरम के पास से कर्क रेखा का गुजरना भी जैवविविधता का कारण है। मिज़ोरम सेवन सिस्टर्स समूहों का भी हिस्सा है, जिसमें असम, नागालैंड, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं। इसके अलावा मिज़ोरम की साक्षरता दर भी क़रीब 91 फीसदी से ज़्यादा है, जोकि मिजोरम को केरल के बाद दूसरा सबसे अधिक साक्षरता दर वाला राज्य बनाती है।
मिज़ोरम कुल 3 शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें मि यानी लोग, ज़ो - यानी ख़ूबसूरत पहाड़ी इलाक़ा और रम - यानी धरती के रूप में जाना जाता है।
मिज़ो भाषा की कोई लिपि नहीं है, जिसके कारण इनके पूर्वजों का कोई लिखित इतिहास नहीं मिलता है। मिज़ोरम के ज़्यादातर हिस्से में लोगों का विवाह आदिवासी समाज के ही रीतिरिवाजों पर ही होता है। यहां के लोग लव-मैरिज में ज़्यादा विश्वास रखते हैं। इसके अलावा यहां शादी- विवाह और तलाक को लेकर कोई ज़रूरी नियम नहीं है। पुरुष और स्त्री दोनों की रजामंदी के बाद ही यहां के लोगों के विवाह कराये जाते हैं।
मिज़ोरम के लोगों का जीवन जंगलों, पशु- पक्षियों के शिकार और पशुपालन पर निर्भर करता है। इसके अलावा मिज़ोरम की अर्थव्यस्था भी खेती पर ही निर्भर है। मिज़ोरम में होने वाली झूम खेती ही वहां के लोगों के जीवन आधार का मुख्य जरिया है। झूम खेती अपने आप में काफी अनोखी है। मिज़ोरम के लोग झूम खेती के लिए जंगलों को काट देते हैं और फिर वहां फसल उगाते हैं। पहाड़ियों पर मौजूद जंगलों को जनवरी से मार्च के बीच में काटकर उन्हें सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है और फिर बाद में सूख चुके पेड़ों को जला दिया जाता है। आग की वजह से ज़मीन साफ हो जाती है। जिसके बाद पहाड़ियों की ढालदार ज़मीन पर छोटे- छोटे गढ्ढे खोदकर उसमें बीज बो दिए जाते हैं। जगलों को जलाकर खेती करने के इसी तरीके को झूम खेती कहा जाता है, जोकि आज भी मिजोरम में जारी है।
मिजोरम की मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार और बाजरा जैसी फसलें शामिल हैं। चावल मिज़ोरम के लोगों का सबसे पसंदीदा भोजन है। लेकिन मिज़ोरम में खेती के लिए मुफ़ीद ज़मीन नहीं होने के कारण यहां चावल का उत्पादन बहुत ज़्यादा नहीं होता और इसलिए मिजोरम में भारत सरकार को दूसरे राज्यों से चावल भेजना पड़ता हैं। मिजोरम में मक्के का उत्पादन भी काफी अधिक होता है। इसके अलावा केला, पपीता, संतरा अनानास और अंगूर जैसे फाल भी मिजोरम में पाए जाते हैं। मिजोरम में अदरक के लिए भी काफी मशहूर है। साथ ही मिजोरम में हल्दी, मिर्च और दालचीनी जैसे मसालों की भी पैदावार अच्छी हो जाती है। मिज़ो समाज में पान खाने का भी चलन हैं, जिसके कारण यहां पान और कसेली की भी खेती की जाती है।
आइये अब बात करते हैं मिजोरम के कल्चर की।
मिजोरम में साल भर कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता रहता है। यहां रहने वाली जनजातियों के अपने अपने त्यौहार हैं। मिजोरम के कुछ प्रमुख फेस्टिवल्स के बारे में आपको बताये तो यहां - चपचार कूत, मीम कूत और पाल कूत जैस कुछ प्रमुख त्यौहार मनाये जाते हैं।
मिज़ोरम में चपचार कूत फेस्टिवल को झूम खेती के दौरान मनाया जाता है। झूम खेती में जब जंगलों को काट कर क़रीब महीने भर तक सूखने के लिए छोड़ा जाता है तो उस वक़्त जो समय मिलता है उसी दौरान चपचार कूत फेस्टिवल मनाया जाता है। मिज़ो जनजाति का ये त्यौहार कई दिनों तक चलता है। जिसे वहां के लोग बड़े ही उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं। मीमकूत फेस्टिवल को मक्के की खेती के बाद जुलाई या अगस्त महीने में मनाया जाता है। इस त्यौहार को भी मिज़ो लोग काफी एक्साइटमेंट के साथ मानते है और नाचने गाते हैं। पालकूत फेस्टिवल को दिसंबर के आखिरी सप्ताह में मनाया जाता है। पालकूत त्यौहार के पीछे मान्यता ये है कि नई फसल के घर आने और साल भर ईश्वर की कृपा से बेहतर जीवन की प्रार्थना में ये फेस्टिवल मनाया जाता है। इसके अलावा ये त्यौहार भूसे की कटाई से भी जुड़ा हुआ है।
तो ये तो थी बात मिजोरम के त्यौहारों की आइये अब यहां के नृत्य और संगीत को भी समझने की कोशिश करते हैं।
मिज़ो समाज अपने पारंपरिक लोकनृत्यों के लिए काफी मशहूर रहा है। ये नृत्य मिजोरम के फेस्टिवल्स और समारोहों का हमेशा से ही हिस्सा रहे हैं। मिजोरम के तीन सबसे ज़रूरी नृत्यों में शुमार चेराव, चोंगलाइजोन और खुआललाम नृत्य मिजोरम के सबसे प्रमुख नृत्यों में से एक हैं। चेराव नृत्य मिज़ो जनजातियों का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है। इस नृत्य में लंबे बांसों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा चेरो नृत्य को बांस नृत्य या बंबू डांस भी कहा जाता है। ये नृत्य चार लोगों के समूहों में किया जाता है। जिसमें पुरुषों महिलाओं के साथ नृत्य करते हैं। पुरुष इन बांसों को पकड़ते है और महिलाये इसके अंदर डांस कर रहे होते हैं। महिलायें बाहर बज रही ढोल की थाप पर नाचती हैं। चोंगलाइजोन नृत्य मुख्य रूप से लाइ या पवाई जनजाति के लोगों द्वारा किया जाता है। ये एक बहुत ही खास तरीके का नृत्य है। इस नृत्य के दौरान पुरुष और महिलाएं पारंपरिक पुआन यानी रंगबिरंगी शॉल को ओढ़कर नृत्य करते हैं। इस नृत्य के पीछे मान्यता है कि इसका प्रदर्शन सुख और दुःख दोनों ही मौकों पर किया जाता है। खुअल्लम नृत्य मेहमानों का एक नृत्य है । इस नृत्य के दौरान लोगों को आमंत्रित किया जाता हैं। अलग - अलग गांवों से आये लोग भी इस नृत्य में हिस्सा लेते है। यहां खुआल का मतलब है - मेहमान और लाम का अर्थ होता है नृत्य। इसके अलावा मिजोरम में सौलकिन, सोलकै, चैलम् और परलम जैसे कुछ और भी लोक नृत्य हैं,जिनका समय समय पर आयोजन होता रहता है।
मिजोरम के लोग संगीत से भी काफी लगाव रखते हैं। इनके संगीत काफी कोमल और मधुर होते हैं। मिजोरम संगीत में इस्तेमाल होने वाले वाद्ययंत्रों में गिटार सबसे प्रमुख यंत्र है। इसके अलावा यहां के लोग ढ़ोल और फूंक मारकर बजाए जाने वाले यंत्रों का भी प्रयोग करते हैं। स्ट्रिंग इंस्ट्रूमेंट्स यानी धागे वाले
वाद्ययंत्रों के ज़रिए बजाए जाने वाले संगीत में TINGTANG, LEMLAWI और TUIUMDAR जैसे कुछ प्रमुख संगीत आते हैं।
इसके अलावा ढ़ोल से बजाए जाने वाले संगीत में भी TALHKHUANG, KHUANG, DAR, BENGBUNG और SEKI जैसे संगीत शामिल हैं। जिन्हें ड्रम यानीे ढोल के ज़रिये बजाया जाता है।
हवा यानी फूंक मरकर बजाए जाने वाले मिज़ो संगीत में भी कई नाम आते हैं। इन संगीतों में HNAHTUM, MAUTAWTARAWL,RAWCHHEM, और TUMPHIT जैसे संगीत शुमार हैं। इसके अलावा भी मिज़ोरम में कुछ और भी लोक संगीत हैं , जिन्हें अलग अलग अवसरों और त्यौहारों पर बजाया जाता हैं।
ईसाई परम्परा अपनाने के बाद मिजोरम लोगों में कुछ बदलाव ज़रूर आये हैं, लेकिन अभी भी वहां मिजोरम की रंगीन संस्कृति बरक़रार है। मिजोरम दुनिया भर में अपने बांस के जंगलों के लिए भी मशहूर है। यहां के लोग हैंड क्राफ्ट का भी अच्छा खासा उत्पादन करते हैं। यहां बनने वाले ज़्यादातर हैंड क्राफ्ट बांस से ही बने होते हैं। मिजोरम के हस्तशिप्ली बुनाई और कढ़ाई में इतने माहिर होते हैं कि उनके द्वारा बनाये गए हैंड क्राफ्ट्स को लोग ख़रीदने पर मजबूर हो जाते हैं। मिज़ोरम में रहने वाली जनजातियों की संस्कृति, रीति रिवाज, त्यौहार, और नृत्य -संगीत जैसी कई और भी विधाएं भारत के मुख्यधारा समाज और संस्कृति से बिलकुल अलग है। मिजोरम जैसे राज्यों की यही विविधता ही भारत की सांस्कृतिक विरासत में चार चाँद लगाती है।