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Blog / 16 Jan 2019

(Video) पूर्वोत्तर विशेष (North East Special) मिज़ोरम : बागी से मुख्यमंत्री - लालडेंगा (Laldenga : From Rebel To A Chief Minister)

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(Video) पूर्वोत्तर विशेष (North East Special) मिज़ोरम : बागी से मुख्यमंत्री - लालडेंगा (Laldenga : From Rebel To A Chief Minister)


सन्दर्भ:

7 जुलाई 1990... न्यूयॉर्क एयरपोर्ट से दिल्ली आने वाला विमान अपनी उड़ान भर चुका था। क़रीब 600 मील प्रति घंटे के हिसाब से चल रहे हवाई जहाज़ को अब सीधे दिल्ली में लैंड करना था। लेकिन तभी अचानक विमान में मौजूद मिज़ोरम के पहले मुख्यमंत्री की तबियत ख़राब हो जाती है, और उसके बाद हवाई जहाज़ को लंदन में रोककर इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ती है।

पूर्वोत्तर स्पेशल में आज कहानी मिज़ोरम के एक ऐसे शख़्श की जो पहले तो एक आतंकवादी था लेकिन बाद में बना मिजोरम का पहला मुख्यमंत्री

11 जुलाई 1927... पूरे हिंदुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत को हटाने की मांग चल रही थी। पूर्वोत्तर भारत से लेकर मौजूदा म्यांमार तक का इलाका अंग्रेज़ों के कब्जे में था। लेकिन इसी दिन मिज़ोरम के दक्षिणी हिस्से वाले लुंगलेई जिले में मिजोरम के मसीहा का जन्म हुआ था और नाम पड़ा - लालडेंगा।

लालडेंगा ने 1944 में ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन की थी। लेकिन बाद में अंग्रेज़ों के चले जाने के बाद लालडेंगा को ब्रिटिश आर्मी छोड़नी पड़ गई।

1958 से 1960 के दौरान मिजोरम में आये मौतम अकाल ने लालडेंगा को वहां का हीरों बना दिया। इस पूरी समस्या से निपटने के लिए लालडेंगा ने ख़ुद को आगे किया और मौजूदा असम सरकार के ख़िलाफ़ जंग शुरू कर दी। मिज़ोरम में आये फेमाइन यानी मौतम अकाल के बाद लोगों में भारत सरकार के ख़िलाफ़ काफी गुस्सा था। मिज़ोरम में फैले इस असंतोष का लालडेंगा ने फायदा उठाया और शहरों और गांवों के पढ़े लिखे युवाओं को भड़काकर अपने साथ कर लिया। लालडेंगा ने इन सब लोगों को साथ लेकर नैशनल फेमाइन फ्रंट नाम के एक संगठन की शुरुआत की। जिसका मक़सद मिज़ोरम में आये मौतम अकाल से लोगों को मौजूदा असम सरकार से मदद दिलानी थी।

1960 में मौतम अकाल के बाद मिज़ो नैशनल फेमाइन फ्रंट से फेमाइन शब्द को हटा लिया गया और नाम रखा गया - मिज़ो नेशनल फ्रंट यानी MNF ... लालडेंगा ने मिज़ो आदिवासियों और वहां के लोगों से मिज़ोरम को भारत से आज़ाद कराने का भरोसा दिया था। जिसके लिए लालडेंगा ने एक मिज़ो नैशनल आर्मी भी बनाई। और इस आर्मी में शामिल लोगों को हथियार और प्रशिक्षण के लिए 1964 में पूर्वी पाकिस्तान भी भेजा। लालडेंगा की ओर से मिज़ोरम को अलग किये जाने की मांग को भारत सरकार ने 1965 में ख़ारिज कर दिया था । जिसके बाद मिज़ो फ्रंट ने अपने विरोध प्रदर्शन और हिंसक घटनाये तेज़ कर दी। इस समस्या से निपटने के लिए 1966 में ब्रिगेडियर R.Z कबराजी की अगुवाई में 61 माउंटेन ब्रिगेड को तैनात किया गया । जिसने काफी बड़े स्तर पर अभियान चला कर मिज़ो फ्रंट पर काबू पा लिया।

भारतीय सेना की इस कार्रवाई के दौरान लालडेंगा सहित उसके सभी साथियों को मिज़ोरम छोड़ना पड़ गया। जिसके बाद लालडेंगा और उसके विद्रोहियों ने पूर्वी पकिस्तान की चिट्टाटोंग पहाड़ियों को अपना डेरा बनाया। लालडेंगा ने पूर्वी पकिस्तान की इन्हीं पहाड़ियों के ज़रिये भारत के नार्थ ईस्ट में आतंकवादी गतिविधियां शुरू की। लेकिन कुछ ही साल बाद 1971 में बांग्लादेश को लेकर भारत और पाकिस्तान में हुए युद्ध के दौरान ये जगह भी छोड़नी पड़ गई।

पूर्वी पाकिस्तान से भागने के बाद लालडेंगा ने एक बार फिर से अपना नया ठिकाना बनाया और ये जगह थी म्यांमार। म्यांमार की अराकन पहाड़ियों में लालडेंगा और मिज़ो नेशनल फ्रंट के विद्रोहियों ने शरण ली। मिज़ो नेशनल फ्रंट ने अब अपनी नजदीकियां चीन से भी बढ़ानी शुरू कर दी थी। लालडेंगा ने पहले 1972 और फिर 1974 में अपनी दो बटालियनों को चीन भेजा। जोकि वहां से हथियार और पैसे लेन के मक़सद से गए थे । ये दोनों ही दल 1975 और 1976 में वहां से भारी मात्रा में हथियार और पैसे लेकर वापस भी आये।

इन सब के दौरान ही मिज़ोरम को भारत सरकार ने साल 1972 में केंद्र शासित राज्य घोषित कर दिया गया। जिसके बाद केंद्र सरकार का नियंत्रण और भी ज़्यादा मज़बूत हो गया। चीन से मदद मिलने के लालडेंगा एक बार फिर से बांग्लादेश की चिट्टाटोंग पहाड़ियों पर पहुंचा और उसने भारतीय सेना के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू कर दिया। हालांकि इस बार भारतीय सेना ने थोड़े ही वक़्त बाद मिज़ो नैशनल फ्रंट पर नियंत्रण पा लिया और लालडेंगा को भारतीय संघ के अधीन समझौते पर बात चीत के लिए राजी होना पड़ा।

भारत सरकार और मिज़ो फ्रंट के बीच बातचीत की पहली बैठक 1978 में हुई। जिसका कोई बेहतर हल नहीं निकल सका। इसके बाद 1 अगस्त 1980 को हुई दूसरे बैठक में भी लालडेंगा की अनुचित मांगों के कारण भारत सरकार ने समझौते से इंकार कर दिया। जिसके बाद लालडेंगा की मिज़ो नैशनल फ्रंट ने अपनी गतिविधियां और तेज़ कर दी। मिज़ो फ्रंट के इस रवैये के बाद भारतीय सेना ने भी मिज़ोरम के उन सभी इलाकों में फौज तैयार कर जहां मिज़ो फ्रंट के विद्रोही छिपे हुए थे। इसके आलावा म्यांमार की ओर से खुलने वाले पूर्वी रास्तों पर भी 202 माउंटेन ब्रिगेड को तैनात कर दिया। जिसके बाद लालडेंगा की मिज़ो फ्रंट पूरी तरीके से भारतीय सेना के कब्जे में आ गई।

1984 तक आते आते की मिज़ो नैशनल फ्रंट पूरे तरीके से पस्त हो चुकी थी। लालडेंगा के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था। जिसके बाद लालडेंगा की मिज़ो नैशनल फ्रंट भारत सरकार के साथ समझौते पर राजी हो गई। और 30 जून 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विद्रोहियों के साथ एक समझौते पर दस्तख़त किए। इस समझौते के मुताबिक़ लालडेंगा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाना था। जिसके बाद 1986 में लालडेंगा मिज़ोरम के पहले मुख्यमंत्री बनें और 1986 से 1988 तक लालडेंगा मिज़ोरम के मुख्यमंत्री बने रहे।

मिज़ोरम के मुख्यमंत्री लालडेंगा को लंग कैंसर था। जिसके कारण वो अक्सर ही अपने इलाज के लिए अमेरिका के न्यूयार्क शहर जाया करते थे। अपने अंतिम दिनों में भी मिज़ोरम के पूर्व मुख्यमंत्री लालडेंगा न्यूयार्क में ही थे और 7 जुलाई 1990 को इलाज करा कर भारत आ रहे थे। लेकिन अचानक उनकी सेहत खराब हो जाती है। जिसके बाद विमान की इमरजेंसी लैंडिंग के बावजूद भी मिज़ोरम के मसीहा लालडेंगा को नहीं बचाया जा सकता है। इस तरीके से लम्बे वक़्त तक विद्रोही गुट का नेतृत्व और मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले लालडेंगा की लंदन में मौत हो जाती है।

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