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Blog / 05 Oct 2020

(इनफोकस - InFocus) यूएनजीए में प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन (Prime Minister's Address at UNGA)

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(इनफोकस - InFocus) यूएनजीए में प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन (Prime Minister's Address at UNGA)



सुर्खियों में क्यों?

बीते 26 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा यानी UNGA के 75 सवें सत्र को संबोधित किया. कोविड-19 महामारी के चलते इस साल का सत्र ज्यादातर वर्चुअल तौर पर आयोजित किया जा रहा है. इसीलिए पीएम मोदी ने भी महासभा को पहले से रिकॉर्डिड वीडियो के जरिए ही संबोधित किया.

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में क्या कहा?

अपने संबोधन में पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत पर जोर दिया.

  • साथ ही, कोरोना महामारी में संयुक्त राष्ट्र की नगण्य भूमिका पर सवाल उठाया.
  • मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि ये बात सही है कि कहने को तो तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ, लेकिन इस बात को नकार नहीं सकते कि अनेकों युद्ध हुए. इन स्थितियों में, उस समय और आज भी, संयुक्त राष्ट्र के प्रयास क्या पर्याप्त थे?
  • प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका बढ़ाने पर भी बल दिया. उन्होंने पूछा कि आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के फैसला लेने वाले स्ट्रक्चर से अलग रखा जाएगा.
  • पीएम ने कहा कि हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं. यह हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है.
  • संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को ही प्राथमिकता दी है.
  • पीएम ने महामारी और वैक्सीन पर भी बात की.

संयुक्त राष्ट्र संगठन क्या है?

संयुक्त राष्ट्र एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है. इसका मकसद दुनिया में मानवाधिकारों को सुरक्षित रखते हुए अंतरराष्ट्रीय-सुरक्षा, आर्थिक-विकास, सामाजिक विकास और विश्व शांति को बढ़ावा देना है। इसकी स्थापना साल 1945 में 51 देशों द्वारा की गई थी। मौजूदा वक्त में, इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 193 हो गई है।

किस तरह के सुधार की जरूरत है UN में?

UN में सुधार का एक बड़ा मामला इसके सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या से जुड़ा हुआ है। मौजूदा वक्त में, संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों में अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के राष्ट्रों की संख्या ज्यादा है लेकिन इन क्षेत्रों से एक भी प्रतिनिधि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में शामिल नहीं है।

  • साथ ही, स्थायी सुरक्षा परिषद में मात्र एक देश ही विकासशील देशों का प्रभावी प्रतिनिधित्व करता है।
  • शक्ति तथा लोकतांत्रिक नज़रिये से भी UNSC का ढांचा उचित नहीं कहा जाता है। इसमें भारत-जापान जैसी बड़ी शक्तियाँ शामिल नहीं है।
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ की कार्यप्रणाली में भी सुधार की जरूरत है। मौजूदा वक्त में पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक प्रवृत्ति बढ़ रही है। लेकिन UNSC के स्थायी सदस्यों को वीटो अधिकार दिया जाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। इसके मुताबिक 5 सदस्य देशों में से कोई भी एक देश संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों के मतों पर भारी पड़ सकता है।
  • UN की वित्तीय व्यवस्था में भी सुधार की जरूरत है। वर्तमान समय में, यह अपने 22% वित्त के लिये अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश पर निर्भर है। ऐसे में, इन देशों का दबदबा UN के फैसलों में बढ़ जाता है जो संयुक्त राष्ट्र की निरपेक्षता को प्रभावित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र कोरोनोवायरस के वैश्विक संकट पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने कोरोना संकट की उत्पत्ति और स्रोतों पर एक गंभीर चर्चा को बाधित कर दिया। जबकि अमेरिका WHO द्वारा चीन का समर्थन करने के आरोपों को लगाते हुए इससे बाहर हो गया।

भारत UNSC में स्थाई सदस्यता क्यों चाहता है?

भारत UN के संस्थापक सदस्य है और पारंपरिक रुप से वसुधैव कुटुंबकम तथा विश्व शांति जैसे विचारों का समर्थक है।

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जनसंख्या तथा अपने भूगोल दोनों ही नज़रिए से दुनिया में एक खास जगह रखता है।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता भारत ही है।
  • जाहिर है कि भारत सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक - हर तरह से UNSC की स्थायी सदस्यता के काबिल है।