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Blog / 28 Sep 2020

(इनफोकस - InFocus) हिंद-प्रशांत क्षेत्र और भारत (Indo-Pacific Region and India)

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(इनफोकस - InFocus) हिंद-प्रशांत क्षेत्र और भारत (Indo-Pacific Region and India)



सुर्ख़ियों में क्यों?

बीते 9 सितंबर को, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के मकसद से भारत, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस के बीच पहली बार त्रिपक्षीय वार्ता का आयोजन किया गया।

किन मुद्दों पर चर्चा किया गया?

विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक, बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर चर्चा की गई। साथ ही, कोविड-19 के दौरान समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को और भी ज्यादा लचीला बनाने को लेकर बात हुई।

इसके अलावा, बैठक में तीनों देशों ने मौजूदा महामारी के चलते उभरती चुनौतियों पर भी चर्चा की. इसमें हिंद महासागर के देशों पर कोरोना महामारी का वित्तीय प्रभाव भी शामिल है। तीनों पक्षों के बीच इस बात पर भी सहमति बनी कि इस वार्ता को आगे भी सालाना आधार पर जारी रखा जाएगा।

क्या है हिंद प्रशांत क्षेत्र और इसकी अहमियत?

जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है। इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। हालांकि हिंद महासागर क्षेत्र की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, हर देश अपने हित के मुताबिक इसकी परिभाषा तय करता है.

यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है, जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है। ट्रंप द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘एशिया-प्रशांत रणनीति’ (Indo-Pacific Strategy) का अर्थ है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य प्रमुख एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान और ऑस्ट्रेलिया, ‘शीत युद्ध’ के बढ़ते प्रभाव के नए ढाँचे में चीन को रोकने में शामिल होंगे।

मौजूदा वक्त में, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 फ़ीसदी, विश्व की कुल आबादी का 65 फ़ीसदी, विश्व की कुल GDP का 62 फीसदी और विश्व के माल व्यापार का 46 फ़ीसदी योगदान देते हैं।

भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करने को तत्पर है। भारत के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ एक मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र से है।

भारत के लिए यह बैठक महत्वपूर्ण क्यों है?

भारत के लिये ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस, हिंद महासागर क्षेत्र में प्रमुख रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरकर सामने आए हैं. इतना ही नहीं, बीते कुछ सालों में तीनों देशों के सहयोग में, खासकर समुद्री क्षेत्र में, काफी प्रगति हुई है। बीते कुछ सालों के दौरान तीनों देशों के आपसी संबंधों में जो कुछ बढ़ोतरी देखने को मिला है, मौजूदा बैठक से यह संबंध और ऊंचाई तक जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, भारत ने फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया के साथ पहले से ही रसद समझौते (Logistics Agreements) कर रखा है।

हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैया को संतुलित करने के लिहाज से भी भारत के लिए यह बैठक काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन देशों के पास चीन की चुनौती का सामना करने के लिये पर्याप्त क्षमता मौजूद है।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

हिंद प्रशांत क्षेत्र के सामने जो सबसे बड़ी मुश्किल है वह यह कि इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा ही नहीं है. हर देश अपने फायदे के मुताबिक़ इसकी परिभाषा को गढ़ रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ सालों से हिंद-प्रशांत क्षेत्र अमेरिका और चीन के लिए अपना दबदबा कायम करने का एक अखाड़ा बन चुका है. इन दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध और तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा के चलते संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था किसी न किसी तरह प्रभावित हो रही है।