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Blog / 16 Sep 2020

(इनफोकस - InFocus) असम राइफल्स (Dual Control Arrangement of Asam Rifles)

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(इनफोकस - InFocus) असम राइफल्स (Dual Control Arrangement of Asam Rifles)



सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को असम रायफ़ल्स की दोहरी नियंत्रण व्यवस्था को लेकर एक आदेश जारी किया है. अदालत ने कहा कि असम राइफल्स की दोहरी नियंत्रण व्यवस्था बनी रहेगी या इसे समाप्त किया जाएगा, इसके बारे में सरकार 12 सप्ताह के भीतर फैसला ले।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • दरअसल, असम राइफल्स का नियंत्रण गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
  • इस बारे में, मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि चूँकि इस मामले में सैनिक/पूर्व-सैनिक भी शामिल हैं और उनके हित सबसे ऊपर हैं, इसलिये इस मामले को निपटाने में और ज्यादा देर नहीं की जानी चाहिए। ग़ौरतलब है कि यह मामला बीते 3 साल से लंबित पड़ा है।

असम राइफल्स क्या है?

असम राइफल्स गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले तमाम केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है।

  • पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने के मकसद से साल 1835 में असम राइफल्स का गठन कछार लेवी नामक एक सिंगल सैन्यबल के रूप में किया गया था।
  • साल 1917 में, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इसका नाम बदलकर असम राइफल्स कर दिया गया। साल 1962 में, भारत चीन युद्ध के बाद से इसे सेना के संचालन नियंत्रण में रखा गया।
  • यह बल भारतीय सेना के साथ मिलकर पूर्वोत्तर में कानून व्यवस्था के बनाए रखने के साथ-साथ भारत-म्याँमार सीमा की भी सुरक्षा करता है।
  • इसने दो विश्व युद्धों और साल 1962 के भारत-चीन युद्ध में हिस्सा लिया है. साथ ही, इसने पूर्वोत्तर में आतंकवादी समूहों के खिलाफ चलाए गए अभियानों में भी अहम भूमिका निभाई है।

क्या है पूरा मामला?

ग़ौरतलब है कि यह दोहरी संरचना वाला एकमात्र अर्द्धसैनिक बल है. जहां इसका प्रशासनिक नियंत्रण गृह मंत्रालय के पास है तो वहीं संचालन नियंत्रण रक्षा मंत्रालय के तहत सेना के पास जाता है।

  • इसका मतलब हुआ कि असम रायफ़ल्स के लिये वेतन और बुनियादी ढांचे की जिम्मेदारी ढाँचा गृह मंत्रालय की होती है, जबकि कर्मियों की नियुक्ति, ट्रांसफर और प्रतिनियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का काम सेना करती है।
  • इसी दोहरी नियंत्रण व्यवस्था के चलते असम राइफल्स को लेकर चल रहा विवाद पैदा हुआ है। यहां तक कि खुद असम राइफल्स के अंदर और गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय दोनों ओर से किसी एक मंत्रालय को बल के पूर्ण नियंत्रण दिये जाने की मांग की जा रही है, ताकि बल को और कुशलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सके।

दोनों मंत्रालय इसका पूर्ण नियंत्रण क्यों चाहते हैं?

तकरीबन सभी सीमा रक्षक बल गृह मंत्रालय के परिचालन नियंत्रण में आते हैं और यदि असम राइफल्स को गृह मंत्रालय के पूर्व नियंत्रण में दिया जाता है तो इससे देश की सीमा को एक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण मिल सकेगा।

  • गृह मंत्रालय की माने तो असम राइफल्स 1960 के दशक वाले पुराने ढर्रे पर काम कर रहा है, जबकि गृह मंत्रालय के नियंत्रण में आने से इसकी कार्य पद्धति को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की पद्धति के आधार पर विकसित किया जाएगा।
  • वहीं भारतीय सेना का कहना है कि असम राइफल्स ने सेना के साथ समन्वय के जरिए काफी अच्छा काम किया है और यह सशस्त्र बल की तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने मेन काम पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इसके अलावा, असम राइफल्स हमेशा से ही एक पुलिस बल न होकर एक सैन्य बल रहा है और इसे इसी रूप में विकसित किया गया है।
  • ग़ौरतलब है कि खुद असम राइफल्स के भीतर एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो बल के नियंत्रण को पूरी तरह से रक्षा मंत्रालय को दिये जाने की वकालत करता है. इससे असम राइफल्स के सैनिकों/पूर्व-सैनिकों को गृह मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के मुकाबले बेहतर भत्ता और सेवानिवृत्त लाभ मिल पाएगा।