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Blog / 27 Oct 2020

(इनफोकस - InFocus) कृषि कानून: केंद्र बनाम राज्य (Agricultural Laws : Centre vs State)

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(इनफोकस - InFocus) कृषि कानून: केंद्र बनाम राज्य (Agricultural Laws : Centre vs State)


सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, पंजाब विधानसभा में केंद्र सरकार के तीन नए कृषि सुधार क़ानूनों को प्रभावहीन बनाने के मकसद से चार विधेयक पारित किए गए हैं। इन विधेयकों के जरिए केंद्र सरकार के क़ानूनों के प्रावधानों को बेअसर करने के कई प्रावधान किए गए हैं।

क्या है पूरा मामला?

पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों द्वारा तीन कृषि विधेयकों का विरोध किया जा रहा है, जो कि राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद अधिनियम बन गए हैं। इन तीन अधिनियमों में शामिल हैं-

  • किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020
  • मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनयम, 2020
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनयम, 2020

अगर संक्षेप में बताएं तो, इन क़ानूनों का मकसद कृषि उपज बाज़ार समितियों यानी APMC की सीमाओं से बाहर बिचौलियों और सरकारी करों से मुक्त एक व्यापार क्षेत्र बनाना है. इससे कृषि व्यापार में सरकार के हस्तक्षेप को कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही, इन क़ानूनों के संयुक्त प्रभाव से कृषि उपज के लिये 'वन नेशन, वन मार्केट' बनाने की राह सुगम होगी।

पंजाब के द्वारा क़ानून में क्या बदलाव किए गए हैं?

केंद्र सरकार के इस क़दम से नाखुश पंजाब सरकार ने इन केंद्रीय कानूनों को बेअसर करने के लिए जो कानून बनाए हैं उनमें पहला किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) संशोधन विधेयक 2020, दूसरा मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता और तीसरा कृषि सेवाएं (विशेष प्रस्ताव एवं पंजाब संशोधन) विधेयक, 2020 शामिल हैं.

  • बात अगर पहले अधिनियम की करें तो इसमें केंद्रीय कानून के मुताबिक कृषि उपज विपणन समितियों यानी APMCs के तहत बनी मंडियों के बाहर अगर कोई कंपनी अथवा व्यापारी फसल खरीदते हैं तो उन्हें टैक्स नहीं देने होंगे। वे किसी भी कीमत पर खरीद कर सकते हैं। पंजाब ने इसमें बदलाव करते हुए प्रावधान किया है कि MSP से नीचे धान और गेहूं बेचने या खरीदने पर तीन साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।
  • दूसरे अधिनियम के तहत केंद्र सरकार अनुबंध आधारित कृषि को वैधानिकता प्रदान करती है। जबकि पंजाब सरकार ने इसके लिए दो बिल पास किए हैं। पहला, इसके तहत किसान और कंपनी में आपसी विवाद होने पर 2.5 एकड़ जमीन वाले किसानों की ज़मीन की कुर्की नहीं होगी। दूसरा, विवाद के निपटारे के लिए सिविल कोर्ट में भी जाया जा सकेगा।
  • तीसरे अधिनियम के तहत केंद्रीय कानून के मुताबिक निजी कंपनियां जितना मर्जी अनाज खरीद सकती हैं और उसका भंडारण कहा किया है, यह बताने की जरूरत नहीं है। जबकि पंजाब में खरीदी जाने वाली फसल के बारे में निजी कंपनियों को सरकार को बताना होगा। सरकार को खास परिस्थितियों जैसे बाढ़, महंगाई और प्राकृतिक आपदा में स्टॉक लिमिट तय करने का भी अधिकार होगा।

केंद्र सरकार के सामने क्या विकल्प है?

चूँकि यह समवर्ती सूची का मामला है और इस विषय पर केंद्र सरकार ने पहले ही कानून बना दिए हैं, ऐसे में पंजाब विधानसभा में पारित विधेयकों को लागू करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी।

  • राज्यपाल के माध्यम से ही ये विधेयक राष्ट्रपति को भेजे जाएंगे। राज्यपाल केवल इस पर कानूनी राय लेकर इसे कृषि मंत्रालय को भेजेंगे।
  • उसके बाद कृषि मंत्रालय यह विधेयक राष्ट्रपति को भेजेगा।
  • कुल मिलाकर इस पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति का होगा।
  • राष्ट्रपति इस पर सालिसिटर जनरल से सलाह लेंगे या फिर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को भी रेफ़र कर सकते हैं।
  • वहां से सलाह आने के बाद ही कोई फैसला लिया जा सकता है। राष्ट्रपति के लिए समय की कोई पाबंदी नहीं है।
  • ग़ौरतलब है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करता है, इसलिये राज्य के लिए इस प्रकार विधेयकों का पारित होना मुश्किल ही होता है।

इस मामले में संवैधानिक प्रावधान क्या है?

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ मसलन संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची दी गई हैं. संघ सूची पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है, राज्य सूची पर केवल राज्य सरकार कानून बना सकती है और समवर्ती सूची पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं.

  • संविधान के अनुच्छेद 254 के मुताबिक समवर्ती सूची के तहत अगर किसी क़ानून को लेकर केंद्र और राज्य के मध्य विवाद होता है तो केंद्र का कानून ऊपर माना जाएगा.
  • हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हैं. मिसाल के तौर पर अनुच्छेद 254 (2) के मुताबिक किसी विवाद की दशा में राज्य द्वारा बनाया गया कानून ऊपर माना जाएगा, बशर्ते कि कानून को राष्ट्रपति की अनुमति मिल गई हो।