(इनफोकस - InFocus) सुर्खियों में एससी/एसटी क़ानून (SC/ST Act in News)
- सुर्ख़ियों में क्यों?
- पृष्ठभूमि
- पूर्ववर्ती दिशा-निर्देश
- नए संशोधन
- चुनौतियां और आगे की राह
सुर्ख़ियों में क्यों?
- सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST एक्ट 1989 में किए अपने फैसले को ही बदल दिया है।
- 20 मार्च 2018 फैसले में, SC-ST एक्ट सम्बन्धी मामले में गिरफ्तारी को मुश्किल कर दिया था।
- गौरतलब है कि मार्च 2018 में दिए गए इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी।
पृष्ठभूमि
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का उन्मूलन करता है।
- नीति-निर्देशक तत्व अनुच्छेद 46 कहता है कि राज्य कमजोर वर्ग के लिए कानून बना सकता है।
- छूआछूत सम्बन्धी प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राईट 1955 लाया गया लेकिन बात नहीं बनी।
- इसके बाद एससी एसटी एक्ट 1989 लाया गया जो कि आज तक चल रहा है।
- SC ने इस संबंध में 20 मार्च 2018 को इस एक्ट के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए थे।
- 2018 के अपने गाइड-लाइन में SC ने अनुसूचित जाति-जनजाति पर होने वाले अत्याचारों को लेकर होने वाली गिरफ्तारी के प्रावधानों को कमजोर कर दिया था।
पूर्ववर्ती दिशा-निर्देश
उल्लेखनीय है कि 20 मार्च 2018 को SC ने निम्न दिशा-निर्देश जारी किए थे-
- संबंधित मामले में तत्काल ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की जाएगी।
- अगर आरोप किसी सरकारी कर्मचारी पर है तो इस आरोप की पुष्टि कर्मचारी को नियुक्त करने वाली आथोरिटी से की जाएगी।
- आरोप प्राइवेट व्यक्ति पर है तो एसएसपी के जांच के बाद ही गिरफ्तारी संभव होगी।
- जांच समयबद्ध होगी।जाँच की अवधी 7 दिन से अधिक नहीं होगी।
- नियमों की अवहेलना की स्थिति में पुलिस पर अनुशासनात्मक एवं न्यायालय की अवमानना सम्बन्धी कार्यवाही की जाएगी।
- आरोपी के हिरासत की अवधि का निर्धारण मजिस्ट्रेट करेगा।
- अग्रिम जमानत पर पूर्ण रोक नहीं।
नए संशोधन
- नए संशोधन में जांच की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है।
- आरोप के मामले में सीधा एफ़आईआर दर्ज होगा।
- एंटीसिपेट्री बेल लिया जा सकता है।
चुनौती
- जांच की बाध्यता को खत्म होने से इन कानूनों का दुरुपयोग होने की आशंका है।
- आपसी दुश्मनी निकलने के लिए इस कानून का दुरूपयोग किसी निर्दोष के खिलाफ भी किया जा सकता है।
आगे की राह
- एक लोकतांत्रिक शासन का यह दायित्व है कि भेदभाव रहित होकर सभी वर्गों तक समानता को सुनिश्चित करे।
- ताकि इन वर्गों के भीतर उत्पन्न असुरक्षा और उत्पीड़न का डर समाप्त हो सके एवं इनका शासनतंत्र और न्याय प्रणाली में विश्वास बना रहे।