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Blog / 13 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) विश्व जनसंख्या दिवस 2020 (World Population Day 2020)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) विश्व जनसंख्या दिवस 2020 (World Population Day 2020)



दुनिया भर में बढ़ती जनसंख्या कई देशों के सामने बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है। खासकर विकासशील देशों में जनसंख्या विस्फोट एक गंभीर चिंता का विषय है।

बढती जनसँख्या के प्रति लोगों को जागररूक करने के लिए हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है.....इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि विश्व के हर एक व्यक्ति बढ़ती जनसंख्या की ओर ध्यान दे और जनसंख्या को रोकने में अपनी भूमिका निभाए.. इस दिन लोगों को परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, मानवाधिकार और मातृत्व स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी जाती है….

आज DNS कार्यक्रम में हम विश्व जनसंख्याम दिवस के मौके पर जानते है की आखिर आज पूरी दुनिया की स्थिति क्या है....और आने वाले वक्त में पूरी दुनिया में जनसंख्या किस तरीके से बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है....साथ ही जानेंगे विश्व जनसंख्या दिवस के इतिहास के बारे में....इस बार की थीम क्या है और साथ ही इससे जुडी कुछ दूसरी महत्पूर्ण बातें...

विश्व जनसंख्या दिवस के बारे में

11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने की शुरुआत साल 1989 नवासी में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की संचालक परिषद द्वारा हुई थी। उस समय विश्व की जनसंख्या लगभग 500 करोड़ थी। तब से प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला जाता है और साथ ही लोगों को जनसंख्या पर नियंत्रण रखने के लिए जागरूक किया जाता है...

इस दिवस को पहली बार 11 जुलाई 1990 को 90 से अधिक देशों में चिह्नित किया गया था। तब से कई देश के कार्यालयों, अन्य संगठनों और संस्थानों ने सरकारों और नागरिक समाज के साथ साझेदारी में विश्व जनसंख्या दिवस मनाया। विश्व जनसंख्या दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें जनसंख्या वृद्धि की वजह से होने वाले खतरों के प्रति लोगों को आगाह किया जाता है। विश्व जनसंख्या दिवस पर जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न समाजिक कार्यक्रमों व सभाओं का संचालन, प्रतियोगिताओं का आयोजन, रोड शो, नुक्कड़ नाटक अन्य कई तरीके शामिल हैं। वर्तमान में चीन और भारत दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश हैं...

2020 बार का थीम

इस वर्ष का विषय विशेष रूप से COVID-19 महामारी के समय में दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और अधिकारों की सुरक्षा पर आधारित है... (How to safeguard the health and rights of women and girls now) हाल ही में यूएनएफपीए के एक शोध में कहा गया है कि अगर लॉकडाउन 6 महीने तक जारी रहता है, और स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी गड़बड़ी होती है, तो कम और मध्यम आय वाले देशों में 47 सैंतालिस मिलियन महिलाओं को आधुनिक गर्भ निरोधक नहीं मिल पाएंगे. वहीं साल 2019 में जनसंख्या दिवस की थीम फैमिली प्लानिंग: इम्पावरिंग पीपल, डिवेलपिंग नेशन्स रखी गई थी...

वर्तमान में सबसे तेज गति से जनसंख्या वृद्धि करने वाला देश नाइजीरिया है, जिसके साल 2050 तक अमेरिका को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर पहुंचने की संभावना है। दुनियाभर में बुजुर्गों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 1950 में बुजुर्गों से कहीं ज्यादा संख्या में युवा थे,....

आज हमारे लिए ये भी जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है कि दुनिया के कई देशों में छाई अशांति की वजह से लाखों लोगों को अपना घर, अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में शरणार्थी जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है....

मौजूदा वक्त में पूरी दुनिया की जनसंख्याक सात अरब को पार कर चुकी है...माना जा रहा है कि 2025 तक इसके 8 अरब होने की उम्मीद की जा रही है...ऐसे में धरती को अपार संसाधन चाहिए होंगे....लेकिन विडंबना ये भी है कि आज भी दुनिया की बड़ी आबादी अपनी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहते हुए ही जीवन यापन करती है....संयुक्त राष्ट्रु के मुताबिक दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है....

वहीं यूएन की एक अन्यव एजेंसियों द्वारा कराया गया एक अध्य‍यन ये बताता है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया करा दिया जाता है तो हर साल प्रदूषित पानी पीने से होने वाली लाखों मौतों को टाला जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी और सेनिटेशन की उचित व स्तरीय सुविधाएं मुहैया की जाएं दुनिया में बीमारियों से पड़ने वाले बोझ को 9 फीसदी और भारत समेत दुनिया के 32 बत्तीस सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में 15 फीसदी तक कम किया जा सकता है।..

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अकेले अफगानिस्तारन में ही अब तक 46 छियालीस लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं....भारत की ही बात करें तो यहां पर 40 हजार से अधिक शरणार्थी संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) में रजिस्टुर्ड हैं....एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में 7 करोड़ लोग ऐसे हैं जो देश छोड़कर दूसरे देशों में रहने पर मजबूर हैं....इनमें से ज्यादातर शरणार्थी उन देशों से हैं जहां पर आतंकवाद या फिर गृहयुद्ध की वजह से हालात खराब हो चुके हैं। दुनियाभर में फैले शरणार्थियों में आधे से ज्यारदा सीरिया, अफगानिस्तारन, दक्षिण सूडान, म्यांमार और सोमालिया से आते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में पलायन करने वालों की संख्या 1.3 करोड़ थी। 2017 की तुलना में यह आंकड़ा करीब 27 लाख ज्यादा था....

वहीँ यूएन की ही रिपोर्ट बताती है कि अपना देश छोड़ने वालों में ज्याडदातर लोग वापस आने की हिम्मात नहीं जुटा पाते हैं। यूएन के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 में 6,67,400 लोग अपने देश लौटे थे वहीं साल 2018 में इनका आंकड़ा 5,93,800 था....गृहयुद्ध की मार झेल रहे सीरिया की बात करें तो वहां पर 2,10,000 लोगों ने वापस जाने की हिम्मत दिखाई। यूएन की रिपोर्ट शरणार्थियों में शामिल उन बच्चों की भी विडंबना को दिखाती है जो किसी वजह से मानव तस्ककरी का शिकार हो जाते हैं। यूएन की हालिया रिपोर्ट भी इस बारे में बेहद चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक कई देशों में मानव तस्करों की निगाह इनको तलाशती रहती है। एक बार इनके चंगुल में आने के बाद इससे निकलना इनके लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। इतना ही हीं इस तरह का ऑर्गेनाइज क्राइम करने के मामले में जर्मनी पूर्वी यूरोप के देशों में सबसे आगे है...

रूस के विघटन के दौरान 1997 सत्तानवे में यहां करीब 175 पिचाह्त्र,000 महिलाओं को देह व्यय्पार के धंधे में धकेलने के लिए बेचा गया था। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक हर वर्ष करीब 40 लाख लोगों को उनकी इच्छाद के विरुद्ध दूसरे धंधों के लिए बेचा जाता है। इनमें अधिकतर कम उम्र की महिलाएं होती हैं।

विश्व् जनसंख्याक दिवस के मौके पर सिर्फ जनसंख्यां को नंबर में बता देना सही नहीं होगा। यही वजह है कि बढ़ती जनसंख्यां और उससे पड़ने वाले बोझ को भी समझना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है। वर्तमान की ही बात करें तो जब पूरी दुनिया कोरोना की मार से बेहाल है तो विश्व की इस बड़ी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा वर्तमान में बेहद संघर्ष के पल जीने को मजबूर है। अकेले अमेरिका में ही इस वायरस के बाद से लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। व्या़पारिक प्रतिष्ठा्न नाममात्र के लिए काम कर रहे हैं। वहीं विकासशील देशों में हाल और भी बुरा हो गया है। इस महामारी से पहले जहां एक बड़ी आबादी देश की अर्थव्यवस्था के पहिए को चलाने में मदद करती थी वर्तमान में आज इसका एक बड़ा हिस्सा बेरोजगारी का शिकार है। विश्व की बढ़ती आबादी में एशिया का सबसे बड़ा योगदान है...बढ़ती आबादी ने न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों को खत्म करने में तेजी से योगदान दिया है बल्कि इसकी वजह से विश्वद का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। इसको रोकपाना दुनिया के लिए मुश्किल हो रहा है....