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Blog / 27 Feb 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों बदल रहा ताजमहल का रंग? (Why is Tajmahal Changing It's Colour?)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों बदल रहा ताजमहल का रंग? (Why is Tajmahal Changing It's Colour?)



अमेरिकी राष्ट्रपति दो दिनों की भारत यात्रा पर हैं । इस यात्रा के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी मेलानिया के साथ ताजमहल का भी दौरा किया। वही ताजमहल जिसे एक मुग़ल शासक शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में 17वीं सदी में बनवाया था। वही ताजमहल जो दुनिया के सात अजूबों में भी शुमार है। ट्रम्प की इस यात्रा से पहले ताज महल को काफी मशक़्क़त से सजाया और संवारा गया था ।

लेकिन सवाल यह उठता है की ताज महल को सजाने और संवारने की ज़रुरत पडी क्यों ?

आज के DNS में हम जानेंगे ताज महल के बेरंग होने के पीछे की असली वजह और साथ ही समझेंगे इसकी रंगत को वापस लाने में की जा रही कोशिशें के बारे में

दुनिया के अजूबों में से एक ताजमहल पर प्रदूषण के प्रभाव को लेकर अक्सर चिंता व्यक्त की जाती है। प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले ताजमहल पर प्रदूषण का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर अपनी चिंताएं ज़ाहिर की है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) की लापरवाही से ताज को नुकसान हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि सफेद रंग का यह स्मारक पहले पीला हो रहा था लेकिन अब यह भूरा और हरा होने लगा है। ताजमहल के पीले होने के पीछे एसिड रेन और प्रदूषण जैसी वजहें शामिल हैं। वहीं ताजमहल के हरे रंग में बदलने के पीछे उसके पास मौजूद यमुना में फैल रहा प्रदूषण है।

पुरातात्विक सर्वेक्षण के एक अधिकारी के मुताबिक़ मुग़ल बादशाह शाहजहां और उनकी बेग़म मुमताज महल की कब्रों को मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाया जा रहा है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ताजमहल के सफ़ेद संगमरमर पर बरसों से पड़े हुए पीले धब्बों को दूर करने के लिए मिट्टी के लेप का इस्तेमाल करता है । ऐसा माना जाता है की इस तरह के परंपरागत तरीकों का इस्तेमाल संगमरमर को साफ़ करने में किया जाता है । इन तरीको से मकबरों की रंगत और चमक फिर से वापस लाई जा सकती है।

मिट्टी के एक गाढ़े मिश्रण को इन संगमरमर की देववारों पर लगाया जाता है जिससे इस पर जमी गन्दगी , ग्रीस और पक्षियों के मलावशेष इस मिट्टी द्वारा सोख लिए जाते हैं जिसके बाद इन्हे आसुत जल यानी एक तरीके के शुद्ध जल के ज़रिए धोया जाता है । यह प्रक्रिया बहुत धीमी और जटिल होती है लेकिन इसके ज़रिये संगमरमर साफ़ और चमकदार बनाये जा सकते हैं।

साल 1994 में पहली दफा मकबरे पर मिट्टी के लेप लगाए गए थे। इसके बाद साल 2001 2008 और साल 2014 की शुरुआत में इस प्रक्रिया को दोहराया गया । काफी लम्बे वक़्त से पुरातत्वविद और संरक्षणविद गंगा यमुना क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण और इससे ताज महल पर पड़ने वाले असर को लेकर परेशान रहे हैं।

ताजमहल साल 1653 में मुग़ल बादशाह शाहजहां की सबसे प्रिय बेगम मुमताज़ महल के मकबरे के तौर पर बनकर तैयार हुआ था । गौरतलब है की मुमताज़ महल की मौत एक बच्चे को जन्म देते समय हुई थी । मुग़ल बादशाह और उनकी बेगम दोनों को यहीं दफ़न किया गया था । साल 1983 में ताजमहल को UNESCO ने एक वैश्विक विरासत स्थल के रूप में घोषित किया था । हर साल ताज की खूबसरती का दीदार करने देश विदेश से कई सैलानी यहाँ आते हैं।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ताज की बदहाली के मद्देनज़र कहा था की अगर मकबरे को बचाना है तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इससे दूर रखना होगा । सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले ताजमहल के संगमरमर के बदलते रंगों पर चिंता ज़ाहिर की थी । सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया की सफ़ेद संगमरमर कैसे सफ़ेद से पीला हुआ और अब यह भूरे और हरे रंग में तब्दील होता जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट पर्यावरणविद एम सी मेहता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था । इस याचिका में ताजमहल को बढ़ते प्रदूषण से बचाने के लिए गुहार लगाए गयी थी। ऐसी ही मेहता की एक और याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सं 1996 में ताज को प्रदूषण से बचाने के लिए आस पास की फैक्टरियों को बंद करने का फैसला सुनाया था।

ताजमहल के बेरंग होने के पीछे कई वजहें जिम्मेदार हैं

सबसे पहली वजह है ताज ट्रॅपेजियम जोन में उद्योगों और वाहनों से होने वाला प्रदूषण जिससे ताज को सबसे ज़्यादा खतरा है। दूसरी सबसे बड़ी वजह है ताज महल क्षेत्र में यमुना नदी का प्रदूषित पानी । गंदे पानी की वजह से इसका जलीय जीवन ख़त्म होता जा रहा है जिससे ताजमहल और यमुना किनारे दूसरे स्मारकों पर कीड़े मकोड़ों और काई का फैलाव होता जा रहा है। ट्रम्प की आगरा यात्रा को देखते हुए उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने बुलंदशहर से यमुना में 500 क्यूसेक पानी छोड़ा है जिससे पानी की गुणवत्ता और मौजूदा जलवायु में सुधार किया जा सके।

2018 में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान ताजमहल की दीवारों पर कीड़ों से हो रहे नुक्सान के मसले को उठाया गया था । मेहता के मुताबिक़ इस मसले की जड़ है यमुना का लगातार सूखना जिसने यहाँ की पारिस्थितकी को काफी हद तक प्रभावित किया है ।पुरातत्व सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ये कीड़े जो इस स्मारक को नुक्सान पहुंचा रहे हैं दरसल में यमुना के गंदे पानी में पनपते हैं।

अभी तक यमुना के पानी में मछलियों की मौजूदगी थी ।मछलियां इन कीड़ों औरर इनके लार्वा को खा जाते थी । लेकिन बढ़ते पानी के प्रदूषण की वजह से पानी में रहने वाले जीवों का वज़ूद लगभग ख़त्म सा हो गया है जिससे इन कीड़ों की तादाद लगातार बढ़ रही है। मेहता के मुताबिक़ ASI की रिपोर्ट के मुताबिक़ ताजमहल और आगरा के अन्य स्मारकों की देववारों पर पड़े हुए काले और हरे धब्बे दरसल में कुछ ख़ास तरह के कीड़ों की वजह से हुए हैं।

यमुना के किनारे अन्य स्मारकों में इत्मादुदौलाह का मक़बरा , महताब बाग़, और आगरा किले का काफी हिस्सा आता है जो कीड़ों से प्रभावित है।