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Blog / 11 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों हुआ था संथाल विद्रोह? (Why did Santhal Rebellion Occur?)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों हुआ था संथाल विद्रोह? (Why did Santhal Rebellion Occur?)



भारत के इतिहास के पन्नों को जितना पलट कर वापस देखते है....तो भारत के इतिहास में समय समय हुए...अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विभिन्न विद्रोह, युद्ध और आंदोलनो का पता चलता है....शायद इस इतिहास के पन्नों को पढ़े बिना भारत के इतिहास की कल्पना भी नहीं की जा सकती....ये युद्ध ये विद्रोह भारत के पराक्रम को दर्शाते हैं....आज ही के दिन यानी 30 जून को भी ऐसा ही विद्रोह का निर्णय लिया गया था....जिसने अंग्रेजों के हाथ पाऊं फुला दिए थे...जिसने अंग्रेजों को उनके ही कानूनों को बदलने पर मजबूर कर दिया....संथाल विद्रोह.....

आज DNS कार्यक्रम में हम बात करेंगे संथाल विद्रोह जिसे संथाल पुल के नाम से भी जाना जाता है...इससे जुडी महत्वपूर्ण बातें....जैसे संथाल क्या है...इस विद्रोह के पीछे की वजह और बहुत कुछ....

30 जून 1855 में संथालों ने एक विद्रोह करने का निर्णय लिया....जिसे संथाल विद्रोह के नाम से जाना जाने लगा....संथाल क्षेत्र में अंग्रेजों का आगमन...उनकी ज़मींदारी व्यवस्था .....उनका ज़बरन जमीन हड़पना...भू राजस्व का ऊँचा दर...ये इस विद्रोह के कारण रहे ..जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ पहला व्यापक सशस्त्र विद्रोह करने पर मजबूर कर दिया....वहीं भागलपुर से वर्धमान के बीच रेल परियोजना में संथालो से बेगारी करवाना इस विद्रोह का तात्कालिक कारण था....

संथाल के बारे में

संथाल, दामन ए कोह नामक क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी थे....संथाल भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक है...प्राचीन समय में यह जनजाति बिहार व् पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में रहा करते थे...संथाल जनजाति के लोगों का मुख्य काम कृषि था...यही इनका व्यवसाय था.....

यह जंगलों ओ काटकर उस जमीन को खेती योग्य बनाकर उसमे कृषि किया करते थे...इनके प्रमुख निवास स्थान कटक, पलामू, छोटा नागपुर , हजारीबाग , पूर्णिया, भागलपुर इत्यादि थे....संथालों का अपना राजनीतिक ढांचा भी था.... परहा पंचायत के द्वारा सारे क्षेत्रों पर उनके प्रतिनिधियों के द्वारा शासन किया जाता था...परहा पंचायत के सरदार हमेशा संथालों के हितों की रक्षा का ख्याल रखते थे....वे गांव के लोगों से लगान वसूलते थे तथा उसे एक साथ राजकोष में जमा करते थे....धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी वे अपने लोगों से ही पुरोहित या पाहन का चुनाव करते थे....लेकिन शान्ति से जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के जीवन में अंग्रेजों के आने से वो शान्ति भंग हो गयी.....इस क्षेत्र में अंग्रेजो के द्वारा किए गए शोषण एवं अत्याचार के कारण विद्रोह प्रारंभ हुआ.....ऐसा माना जाता है की औपनिवेशिक काल में संथाल जनजाति का बहुत बड़े भू भाग पर आधिकार था....इस का; से शुरुवाती दौर में संथाल जनजाति का जीवन समृद्ध और खुशहाल था.....आपको बतादें भारत में अंग्रेजों के शासन काल को औपनिवेशिक या उपनिवेश काल कहा जाता था...यह काल सन 1760 से 1947 ई. माना जाता है..

संथाल लोगो की खुशहाली व इनका विस्तृत भू-भाग अंग्रेजों की आंखों में किरकिरी बन कर चुबने लगा....इसी कारण अंग्रेजों ने संथालो की भूमि को जमीदारों को देना शुरू कर दिया ...इस भूमि का वास्तविक अधिकार अंग्रेजो के पास रहा....जिमींदार संथाल कृषकों से इस भूमि पर कृषि कराने लगे और बदले में भूमि कर लेने लगे....धीरे धीरे संथालों की समृधि कम होती चली गयी.....और वो कर्ज में डूबने लगे......जिसके बाद इस भू-भाग पर ऋण देने के लिए साहूकारों का जमावड़ा लग गया....अब संथाल लोग साहूकारों से कर्जा लेकर कृषि करते, भूमिकर देते व अपने परिवार को पालने लगे....और इससे हुआ यह की संथालो की आर्थिक व् समाजिक दशा दयनीय स्थिति में पहुंच गई....

अंग्रेजों, जमीदारों व् साहूकारों के शोषण से परेशान होकर संथालो ने विद्रोह का रास्ता चुना....संन 1855 - 56 में संथालो ने सरदार धीर सिंह मांझी के नेतृत्व में एक दल बनाया और विद्रोह का बिगुल बजा दिया.

सबसे पहले संथालो ने महाजनों व् साहूकारों को निशाना बनाया व् उनकी धन संपत्ति को लूटना शुरू किया.... इस विद्रोह के शुरुआती दौर में 4 शक्तिशाली संथाल नेता उभरे जिनका नाम सिद्धू, कानू, चांद व् भैरव था....जहाँ 30 जून 1855 को भगनाडीही गांव में एक विशाल बैठक हुई जिसमे इन चारो नेताओ समेत लगभग 10000 संथाल लोगो ने भाग लिया.... इस बैठक में शपथ ली गई कि संथाल लोग जिमींदारो, साहूकारों व् अंग्रेजों का शोषण नहीं सहेंगे और इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे.... इस विद्रोह का केंद्र भागलपुर से लेकर राजमहल की पहाड़ियों तक था...

बैठक के बाद यह छोटा सा विद्रोह एक शक्तिशाली विद्रोह में बदल गया. संथालो के विद्रोह का भयंकर रूप देखकर अंग्रेजी सरकार के पसीने झूट गये..और अंग्रेजी सरकार ने इसका हल खोजना शुरू कर दिया.... संथालों ने महाजनों एवं जमींदारों पर हमला शुरू किया....साहूकारों के मकानों को उन दस्तावेजों के साथ जला दिया गया जो गुलामी के प्रतीक थे....पुलिस स्टेशन, रेलवे स्टेशन और डाक ढोने वाली गाड़ियों को जला दिया गया....रेलवे इंजीनियर के बंगलों को जला दिया गया....फसल जला दिए गए…संथालों ने अपने परंपरागत हथियारों का इस्तेमाल किया....वह तीर धनुष एवं भाले का प्रयोग करते थे.... जबकि ब्रिटिश सैनिक अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस थे.

संथालो के द्वारा किए गए इस विद्रोह में अंग्रेजों, जमीदारों व साहूकारों को जमकर निशाना बनाया जाने लगा....इस दौरान अंग्रेज अफसरों के साथ जमकर लूटमार और मारपीट की जा रही थी....

और इस विद्रोह से घबराकर या यूँ कहें डर कर अंग्रेजी सरकार ने इस विद्रोह को समाप्त करने के लिए दमनकारी नीति को अपनाया....

संथाल विद्रोह को खत्म करने के लिए अंग्रेजों ने जमकर हथियारों का प्रयोग किया...इस संगठित विद्रोह को कुचलने के लिए सेना का सहारा लिया गया....मेजर जनरल बरो के नेतृत्व में सेना की टुकडिया भेजी गई....उपद्रव ग्रस्त क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया और विद्रोही नेताओं की गिरफ्तारी के लिए इनामों की भी घोषणा की गयी.....लगभग 15,000 संथाल मारे गए. गांव के गांव उजाड़ दिए गए....वहीँ संथाल नेता सिद्धू और कान्हो को पकड़ लिया गया...जिसके बाद संथाल विद्रोह कमजोर पड़ गया और इस तरह इस विद्रोह का अंत हो गया....

संथालों का विद्रोह एक जातीय विद्रोह था...जिहोने जातीय आधार पर अपनी पहचान बनाई थी...संथाल विद्रोह एक संगठित आंदोलन था जिसमें करीब 60,000 से ज्यादा लोगों को एकजुट किया...वहीँ यह विद्रोह एक सशस्त्र क्रांति के रूप में उजागर हुआ था....इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की सुनियोजित सत्ता से टकराना था...एक स्थानीय आंदोलन था जिसके लिए बहुत सारे जातिगत एवं धर्मगत बातें जिम्मेदार थी....

संथाल विद्रोह के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार को संथालो की दशा के बारे में विचार करना जरुरी हो गया और उन्हें इस स्थिति से निकालने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जायज कदम उठाने शुरू कर दिए.... ब्रिटिश सरकार द्वारा संथालो को उनकी भूमि पर अधिकार दे दिया गया व् संथालो का अलग से संथाल परगना बना दिया गया... संथाल परगना टेनेंसी एक्ट को लागु किया गया...अंग्रेजों और संथालो के बीच संवाद स्थापित करने के लिए ग्राम प्रधान को मान्यता दी गयी....

और इस तरह संथाल विद्रोह जो औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह बना ..