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Blog / 06 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों लगा 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध? (Why did India ban 59 Chinese Apps?)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी)  क्यों लगा 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध? (Why did India ban 59 Chinese Apps?)



हाल ही में, भारत सरकार ने 59 मोबाइल ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया. सरकार के मुताबिक़ इन ऐप्स को भारत की संप्रभुता एवं एकता, सुरक्षा और व्यवस्था के लिए नुक़सानदेह होने के चलते प्रतिबंधित किया गया है. इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी सरकार ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है…

डीएनएस में आज हम जानेंगे कि यह पूरा मामला क्या है और साथ ही, समझेंगे कि आखिर सरकार को यह कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ी …...

सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आईटी एक्ट के धारा 69 A के तहत 59 मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया. मंत्रालय के मुताबिक भारत के करोड़ों मोबाइल और इंटरनेट यूजर्स के हितों को ध्यान में रखते हुए ये फ़ैसला किया गया है. सरकार के इस फैसले पर चीन ने आपत्ति जताई है. चीन का कहना है कि अभी तक दोनों देशों के बीच ये व्यवस्था पारदर्शी और निष्पक्ष तरीक़े से चली आ रही थी. लेकिन अब राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दे कर भारत चीन के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया अपना रहा है...

यहां एक बात गौर करने लायक है कि चीन ने अपने यहां खुद ढेर सारी सोशल मीडिया साइट्स और कंपनियों को बैन कर रखा है जिनमें फ़ेसबुक, यूट्यूब, गूगल, स्पोटिफ़ीई, और ट्विटर जैसे बड़े नाम शामिल हैं....

इतना ही नहीं, चीन ने बहुत सारी जानी-मानी ग्लोबल न्यूज़ एजेंसियों को भी सेंसर किया है...

भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि चीन अपनी साइबर सिक्योरिटी को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखता है..इसीलिए चीनी साइबर कानून से भारत को सतर्क होने की जरूरत है. चीन में मुख्यत: तीन क़ानून है जो साइबर सिक्योरिटी से जुड़े हैं.

  1. पहला है नेशनल सिक्योरिटी लॉ 2015
  2. दूसरा साइबर सिक्योरिटी लॉ 2017
  3. तीसरा पब्लिक इंटरनेट साइबर सिक्योरिटी थ्रेट मॉनिटरिंग एंड मिटिगेशन मेजर्स 2018

साल 2015 में, राष्ट्रीय सुरक्षा का जो क़ानून चीन ने बनाया था, उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को साइबर सुरक्षा से भी जोड़ कर परिभाषित किया गया है. यही वजह है कि चीन की कंपनियों पर वहाँ की सरकार जब चाहे तब शिकंजा कस सकती है. चीन की सरकार और वहाँ की एजेंसियाँ किसी भी कंपनी से किसी भी समय पर कोई भी जानकारी माँग सकती हैं, जो उन्हें लगता है कि वहाँ की सरकार के लिए ख़तरा है. मसलन भारत और चीन में फ़िलहाल रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं. लद्दाख सीमा पर तनाव अधिक है. भारत में चीन की कई कंपनियाँ हैं, जो सीसीटीवी बनाती और बेचती हैं. भारत सरकार में भी कई जगहों पर इनका इस्तेमाल हो रहा है. आज के तनाव के मद्देनज़र अगर चीन की सरकार चाहे तो इन सीसीटीवी कंपनियों से सारी वीडियो फुटेज जाँच के लिए माँग सकती हैं और वो कंपनियाँ वहाँ के क़ानून के तहत ऐसा करने के लिए बाध्य होंगी. अगर कोई कंपनी ऐसा करने से मना करती है तो वो एक दंडनीय अपराध माना जाएगा.

चीन के साइबर लॉ को राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ जोड़ने और कंपनियों के मालिकाना हक में पार्दर्शिता की कमी के अलावा भी भारत को चीन से दो और ख़तरा हैं. दरअसल चीन का क़ानून, चीन के अंदर ही नहीं बल्कि चीन के बाहर जो लोग काम करते हैं, उन पर भी लागू होता है. चीन इसे एक्सट्रा टेरीटोरियल एप्लिकेबिलीटी करार देता हैं...इसके अलावा, चीन के क़ानून में साइबर संप्रभुता की बात भी कही गई है. चीन का मानना है कि केवल राष्ट्रीय संप्रभुता से काम नहीं चलेगा, जिस किसी साइबर स्पेस में उसे ख़तरा है, वो अपनी संप्रभुता को बचाए रखने के लिए कोई भी कदम उठाएगा...

साल 2018 में, इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के एक विभाग ने साइबर सुरक्षा से जुड़ा एक रिपोर्ट तैयार किया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत को साइबर सुरक्षा का सबसे ज़्यादा ख़तरा चीन से है. भारत में 35 पैंतीस फ़ीसदी साइबर हमले अकेले चीन से किए गए हैं. बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई साइबर क़ानून मौजूद नहीं है. इसलिए अलग-अलग देशों का अपना अलग-अलग कानून है. इसमें चीन का साइबर कानून सबसे कड़ा माना जाता है...

एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार के इस फैसले से भारतीय मोबाइल एप्स कंपनियों के प्रतिस्पर्धा में कमी आएगी और यह उनके वृद्धि का एक अच्छा अवसर हो सकता है. हालांकि किसी भी बाजार में प्रतिस्पर्धा में कमी यूजर्स के लिहाज से अच्छा नहीं कहा जा सकता. सामरिक नजरिए से देखा जाए तो इस फैसले का चीन पर आर्थिक दबाव पड़ेगा. साथ ही, अगर कानूनी नजरिए से देखें तो भी यह एक बेहतर फैसला माना जा सकता है क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों को अदालत में चुनौती देना थोड़ा मुश्किल होगा.

गौरतलब है कि भारत में अलग से कोई साइबर सिक्योरिटी कानून नहीं है. साइबर अपराधों से निपटने के लिए सरकार आईटी एक्ट का ही सहारा लेती है.

आईटी एक्ट के तहत अगर कंपनियाँ सरकार की बात नहीं मानती है तो उन्हें तीन साल की सज़ा, 5 लाख तक का जुर्माना हो सकता है. लेकिन इन धाराओं के तहत बेल भी मिल सकती है. भारत में 2013 में एक कमेटी ने साइबर सुरक्षा नीति पर काम भी किया. इसका एक बेसिक ड्राफ्ट सरकार के पास मौजूद है. लेकिन अभी तक यह ड्राफ्ट क़ानून नहीं बन पाया है....

ऐसे में, इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को मजबूत साइबर कानून बनाने की जरूरत है. यह कानून इस तरह होना चाहिए कि विदेशी कंपनियां चाह कर भी अपना डेटा दूसरे देशों में ना भेज सकें. भारत का आईटी एक्ट साल 2000 का बना है. सन 2008 में इसमें कुछ संशोधन किया गया था लेकिन बदलते वक्त के लिहाज से यह संशोधन नाकाफी हैं. आईटी क्षेत्र में जिस तरह से लगातार बदलाव हो रहे हैं उस हिसाब से इस कानून को अपडेट करने की जरूरत है.