(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या था "वाई 2के" संकट? (What was Y2K Crisis?)
कहते हैं बदलाव प्रकृति का नियम है । लेकिन फ़र्ज़ कीजिये की अगर बदलाव ऐसा हो की पूरी कायनात ही ठप हो जाए सोच कर भी सिहरन हो जाती है लेकिन कोरोना महामारी ने इस बदलाव से भी लोगों को रूबरू करा दिया ।लेकिन इस कोरोना महामारी में भी ठहराव इसलिए महसूस नहीं हुआ क्यूंकि लोगों की जेब के भीतर, घर के भीतर एक पूरी दुनिया समायी है डिजिटल दुनिया । ये दुनिया जो फ़ोन लैपटॉप के ज़रिये आपको ये महसूस नहीं होने देती की आप दुनिया में अकेले है । आपके सारे काम चुटकी बजाते ही हो जाते हैं बिना बहार निकले बिना कतार में खड़े हुए । रोज़ मर्रा की चीज़ों से लेकर मनोरंजन की दुनिया सारी कैद है इस डिजिटल साधन में । तो अंदाजा लगाइये की अगर ये डिजिटल दुनिया ही बंद हो जाये ।चौंक गए लेकिन ये भी हो चूका है साल 2000 में । उस साल इस संकट का नाम था Y2K समस्या । Y2K ने सारी दुनिया की संचार क्रान्ति पर एक सवालिया निशाँ लगा दिया था ।Y2K का ज़िक्र आज इस वजह से उठा है क्यूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने सम्बोधन में इस समस्या का ज़िक्र किया था ।
आज के DNS में हम जानेंगे क्या था Y2K और क्यों इसकी वजह से पूरी दुनिया सकते में आ गयी । क्यों इसकी वजह से पूरी दुनिया सोच में पड़ गयी थी और क्या था भारतीयों का योगदान इस संकट को हल करने में ।
साल 2000 की आमद हो रही थी । ये वो दौर था जब दुनिया 20वीं सदी से 21वीं सदी में जा रही थी । लेकिन इन सब के बीच एक ऐसी दिक्कत ने दस्तक दी की नयी शताब्दी की खुशी कहीं उड़ गयी । वजह थी ‘वाई 2के’ बग, जो ये मानने को तैयार नहीं था कि 20वीं सदी अब खत्म हो चुकी है। इसने पूरी दुनिया के कंप्यूटर नेटवर्क को इसी गलतफहमी का शिकार बनाए रखा।दुनियाभर के कम्प्यूटर सिस्टम 31 दिसंबर, 1999 से आगे का साल बदल पाने में सक्षम नहीं थे। यह समस्या केवल तब तक रही, जब तक भारतीय कम्प्यूटर इंजीनियर्स ने ऐसे कम्प्यूटरों को 21वीं सदी का बनाकर नहीं छोड़ा। शायद पीएम मोदी भारतीयों की इसी कड़ी मेहनत और परिश्रम का उदाहरण दुनिया के सामने रखना चाहते थे।
इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटिंग के शुरुआती दौर के बाद, तकरीबन पूरी दुनिया में कंप्यूटर सिस्टम में साल को दिखाने के लिए 4 की जगह पर 2 अंकों का ही इस्तेमाल होता था । ऐसा कंप्यूटर कोडर इसलिए करते थे ताकि कम मेमोरी का इस्तेमाल हो ।उस दौर में मेमोरी बचाना कंप्यूटर की लगत कम करने के लिए किया जाता था ।
‘वाई 2के’ में वाई साल (ईयर) को दिखाता है, तो वहीं 2के का मतलब है 2000 । साल 1999 खत्म होकर साल 2000 शुरू होने वाला था , लेकिन दुनियाभर के कंप्यूटर सिस्टम 31 दिसंबर, 1999 से आगे का साल बदल पाने के काबिल नहीं थे ।
सिस्टम अगले साल के लिए तारीख और महीना बदल सकते थे, लेकिन साल के दो आखिरी अंकों को छोड़कर पहले दो अंक नहीं बदले जा सकते थे और इस तरह से एक जनवरी 2000 को कंप्यूटरों में दिखने वाली तारीख 01/01/1900 ही रहती।यानी कि समय से ठीक 100 साल पीछे। इस कारण ‘वाई 2के’ बग को ‘मिलेनियम बग’ भी कहा जाता है, जो एक तरह का कंप्यूटर बग था । आसान भाषा में समझें तो बग एक तरह की कोडिंग में आने वाली दिक्कत होती है जिसकी वजह से कोई भी कंप्यूटर उस काम को नहीं कर पाता जिसके लिए उसे बनाया गया है ।
अमेरिका और यूरोप में कंप्यूटरों को इस तरह बनाया गया था कि उनमें साल 2000 और उससे आगे के सालों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। मसलन अमेरिका में तमाम कंप्यूटर गिनतियाँ महीना-दिन-साल (MM-DD-YY) की तर्ज़ पर बनायी गयी थी । साल केवल दो अंकों में था, इसलिए 1999 के बाद जब सन 2000 आया तो सभी तारीकों में बदलाव के साथ 01-01-00 तो हो जातीं, लेकिन कंप्यूटर से जुड़ी सभी सेवाएं ठीक 100 साल पीछे चली जातीं।
उस दौर में कई कंप्यूटर विशेषज्ञों ने इसके बारे में चेताया था की कंप्यूटर में 21वीं सदी के लिए प्रोग्राम्ड नहीं हैं , इसलिए वे ध्वस्त हो सकते हैं। और इससे बहुत सारे कंप्यूटर कार्यक्रम जिन पर अर्थव्यवस्था निर्भर थी, वह सब फेल होने वाले थे।
बैंकिंग सेवाएं इससे पूरी तरह बंद होने वाली थीं ,पावर ग्रिड फेल हो जाते और उनसे जुडी सभी सेवाएं बाधित हो सकती थीं, जैसे रेल, पानी आपूर्ति आदि। इसके अलावा कंप्यूटर आधारित सैटेलाइट्स , अंतरिक्ष कार्यक्रम भी इससे बुरी तरह प्रभावित होने की कगार पर थे । इस तरह कंप्यूटर प्रणाली से जुडी सभी गतिविधियां बाधित होने वाली थी ।
भारत ने सुलझाई समस्या
रोज़मर्रा के कामों का पटरी से उतरता देख यूरोप-अमेरिकी कंपनियों में हाहाकार मच गया । इन सभी दिक्कतों को दूर करने के लिए सारे कंप्यूटर को नए सिरे से बदलने की ज़रुरत थी जिसके लिए बड़ी तादाद में कंप्यूटर इंजीनियरों की जरूरत थी। उस समय तक भारत में इंफोसिस, विप्रो जैसी आईटी कंपनियों की शुरूआत हो चुकी थी। भारत में उस समय सस्ता मानव संसाधन किसी भी देश के मुकाबले पर्याप्त था । इसके अलावा भारत के पास हुनरमंद इंजीनियर की भी कमी नहीं थी ।
यही वजह थी कि ऐसे वक़्त में अमेरिका और यूरोप की कंपनियों का ध्यान भारत की ओर गया। भारत के हुनरमंद युवाओं ने भी इनको निराश नहीं किया और दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवाया।
हालांकि इस समस्या को ठीक करने में काफी धन खर्च हुआ। किसी ने इस समस्या को सुधारने के लगभग 5 साल के दौरान 200 से 300 बिलियन यू।एस। डॉलर के खर्चे का अनुमान लगाया गया। वहीं एक अन्य अनुमान के मुताबिक वाई 2के बग को सही करने के लिए विश्व भर को 600 से 1,600 बिलियन यूएस डॉलर खर्च करने पड़े।
इंफोसिस की तरह से ही आईआईएस इन्फोटेक उन 100 से ज्यादा भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक थी, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वाई 2के बग को ठीक करने के काम में जुटी हुई थी। इसके बाद तो भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों ने ऐसी उड़ान भरी कि उसको रोक पाना नामुमकिन सा लगने लगा। 1999 से शुरू हुआ भारत का आईटी और सेवा निर्यात 2010 तक तमाम भविष्यवाणियों को तोड़ते हुए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। वहीं, उस समय भारतीय तकनीकी कंपनियों के कुल राजस्व का लगभग 40 प्रतिशत विदेशी कंपनियों से वाई 2के बग को दुरुस्त करने को मिले कॉन्ट्रैक्ट्स से आता था।
आईआईएस ने सॉफ़्टवेयर को वाई 2के अनुरूप बनाने के लिए कोड को फिर से लिखा। आईआईएस इन्फोटेक ने अपने विदेशी ग्राहकों की एक ब्ल्यू चिप सूची बनाई, जिसमें सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस, जी.ई. और प्रुडेंशियल जैसी बड़ी अमेरिकन कंपनियां शामिल थीं।
अधिकांश उन्नत देशों में 20वीं सदी से 21वीं सदी के बदलते दौर और ‘वाई 2के’ बग समस्या को ठीक करने के लिए भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों की मदद ली गई।
शायद यही बड़ा कारण था कि माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम जैसी कई अन्य कंपनियों ने भी भारतीय कंपनियों को इस काम के लिए आउटसोर्सिंग सौप दी।
ये शायद भारत के ही हुनरमंद युवा ताक़त थी जिसने पूरी दुनिया को Y2K संकट से उबारा । आज भी पूरी दुनिया कोरोना से लड़ने में भारत की कोशिशों से सबक ले सकती है । यह भारत के लोग ही हैं जो हर बड़ी समस्या को हसते हसते हराने की काबिलियत रखते हैं फिर चाहे वो Y2K समस्या हो या कोरोना वैश्विक महामारी ।