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Blog / 19 Feb 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) कैदियों को वोट देने का हक (Voting Rights of Prisoners)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) कैदियों को वोट देने का हक (Voting Rights of Prisoners)



आपने ये तो सुना ही होगा कि कोई शख़्स जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ सकता है। लेकिन क्या कभी आपने ये भी सुना है कि जेल में बंद कैदियों ने मतदान किया है। बीते दिनों क़ानून की पढ़ाई कर रहे तीन छात्रों ने देश की जेलों में बंद सभी कैदियों को मतदान का अधिकार दिए जाने की सिफारिश की गई थी। साथ ही इस याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62 की उपधारा (5) की वैधता को भी चुनौती दी गई थी, जो कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं देती है। अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कैदियों के लिए मतदान के अधिकार की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि ये सुविधा कानून के तहत मिली है और इसे कानून के ज़रिए छीना भी जा सकता है। इसके अलावा निर्वाचन आयोग ने भी इस याचिका का ये कहते हुए विरोध किया कि कानून के तहत कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं है और सुप्रीम कोर्ट भी इसका समर्थन करता है।

DNS में आज हम जानेंगे देश में मतदान के अधिकार के बारे में साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में...

लोकतांत्रिक चुनावों में देश के सभी वयस्क नागरिकों को चुनाव में वोट देने का अधिकार होना जरूरी है। इसी को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के नाम से जानते हैं। 1989 तक, 21 वर्ष से ऊपर के भारतीय नागरिकों को वयस्क भारतीय माना जाता था। लेकिन 1989 में संविधान के एक संशोधन के द्वारा इसे घटा कर 18 वर्ष कर दिया गया। दरअसल वयस्क मताधिकार सभी नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों की चयन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही ये यह समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांत के भी अनुरूप है। भारतीय संविधान में इस बात का ज़िक्र है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले किसी व्यक्ति को अपने मत का प्रयोग करने का अधिकार है, चाहे वो किसी भी जाति, समुदाय और धर्म से ताल्लुक़ रखता हो। इसके अलावा अप्रवासी भारतीय भी चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं हालाँकि इसके लिए उन्हें ख़ुद को चुनाव आयोग में पंजीकृत कराना ज़रूरी होता है। लेकिन संविधान में उल्लेखित कुछ नियमों पर खरा न उतरने पर किसी व्यक्ति को मतदान प्रक्रिया से बहिष्कृत किए जाने का भी प्रावधान है।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62 (5) के तहत, पुलिस की वैध हिरासत में व्यक्ति और दोष सिद्ध होने के बाद कारावास की सजा काट रहे व्यक्ति वोट नहीं डाल सकते। इसके अलावा अंडरट्रायल कैदियों को भी चुनाव में भाग लेने से बाहर रखा गया है, भले ही उनका नाम मतदाता सूची में क्यों न हो।

हाल ही में आए दिल्ली हाई कोर्ट कइ फैसले में मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि मतदान का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है। ग़ौरतलब है साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62 की उपधारा (5) का प्रभाव यह है कि कोई भी व्यक्ति सजा काटते समय जेल में बंद है या कानूनन कैद में है या किसी भी कारण से पुलिस हिरासत में है तो चुनाव में वोट देने का हकदार नहीं है। इसके आलावा दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि मताधिकार का प्रावधान जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत है जो कानून द्वारा लागू सीमाओं के अधीन है और यह कैदियों को जेल से वोट डालने की अनुमति नहीं देता। पीठ ने ये भी कहा कि शीर्ष कोर्ट के फैसले और कानूनी स्थिति के मद्देनजर भी यह याचिका विचार योग्य नहीं है।

आपको बता दें कि केवल वे जो प्रिवेंशन Detention यानी ऐसा व्यक्ति जिन्हें अपराध करने के पहले ही गिरफ्तार किया जाता है वे डाक मतपत्र के ज़रिए अपना वोट डाल सकते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड - 3, 4, 5 और 6 में प्रिवेंशन Detention क़ानून का ज़िक्र है। प्रिवेंशन Detention का मक़सद किसी व्यक्ति को अपराध के लिए दंड देना नहीं, बल्कि उसे अपराध करने से रोकना है।

वैश्विक परिदृश्य में देखें तो यूरोप, स्विट्जरलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, आयरलैंड, द बाल्टिक स्टेट और स्पेन जैसे देशों में जेल में बंद कैदियों को वोट देने का अधिकार है। इसके रोमानिया, आइसलैंड, नीदरलैंड, स्लोवाकिया, लक्जमबर्ग, साइप्रस और जर्मनी जैसे देशों ने सज़ा के आधार पर कैदियों को वोट देने का अधिकार दिया है।

देखा जाए तो इस वक्त देश के अलग - अलग जेलों में 4 लाख से भी ज्यादा कैदी मौजूद हैं। National Crime Records Bureau द्वारा जारी The ‘Prison Statistics India, 2014 के आंकड़े बताते हैं कि 31 दिसंबर, 2014 तक देश में कुल 2,82,879 undertrials हैं। जानकारों का कहना है कि कम से कम अंडरट्रायल को वोट देने की अनुमति दी जानी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि undertrials में कई ऐसे लोग होते हैं, जो मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिन्होंने अपने कथित अपराध के गुण के वास्तविक कार्यकाल की तुलना में जेल में अधिक समय बिताया है। साथ ही उनकी संख्या भी दोषियों से बहुत बड़ी है।