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Blog / 05 May 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) त्रिशूर पूरम उत्सव (Thrissur Pooram Festival)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) त्रिशूर पूरम उत्सव (Thrissur Pooram Festival)



क्या कभी आपने एक ऐसे त्योहार की कल्पना की है जिसमें सबसे आगे इंसान नहीं बल्कि जानवर खड़े होते हैं....एक ऐसा त्योहार, जहां सभी के आकर्षण का केंद्र मानव न हो करके जानवर हों। एक ऐसा मेला जहां लोग इंसानों को न देख वहां मौजूद खूबसूरत जानवरों से प्रेम करें, उनकी फोटो खींचे। आइये त्रिशूर पुरम में आपका स्वागत है। त्रिशूर पुरम केरल में हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। त्रिशूर पुरम , त्रिशूर नगर का वार्षिकोत्सव है। यह भव्य रंगीन उत्सव केरल के सभी भाग से लोगों को आकर्षित करता है। यह उत्सव थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचों बीच आयोजित होता है। ज्ञात हो कि यह मलयाली मेडम मास की पूरम तिथि को मनाया जाता है।

आज के DNS में हम बात करेंगे केरल के इस ख़ास त्यौहार की और इसमें शामिल ख़ास धार्मिक गतिविधियों और धार्मिक परम्पाराओं की

अपनी शुरुआत से लेकर अभी तक ये शायद पहला मौका होगा जबकि प्रसिद्द त्यौहार त्रिशूर पूरम को मंदिर प्रांगण के भीतर ही मनाया जाएगा जिसमे कुछ ही प्रतिभागी भाग लेंगे । ऐसा इसलिए होगा क्यूंकि पूरे देश में कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लॉक डाउन लगाया गया है।

त्रिशूर पूरम केरल में मनाया जाने वाला हिन्दुओं का वार्षिक त्यौहार है । यह त्यौहार मानने की परंपरा सबसे पहले कोचीन के महाराजा राजा राम वर्मा ने शुरू की थी । राजा राम वर्मा को सकथन तंपुरान के नाम से भी जाना जाता था । आधिकारिक रूप से पूरम की शुरआत कोडियट्टम या झंडा फहराने की रस्म से शुरू होती है जिसमे त्यौहार के सभी प्रतिभागी मंदिरों के लोग मौजूद रहते हैं

पूरम में त्रिशूर के चारों और 10 मंदिर होते हैं और ये एक ऐसा समारोह होता है जिसमे सभी देवता साथ मिलकर नगर के बीचो बीच वडक्कुन्नाथन मंदिर में भगवान् शिव की वंदना करते हैं।

त्यौहार की सबसे ख़ास बात इसमें परंपरागत आघात वाद्य यंत्रों का जमावड़ा जिसमे चेन्दा ,मद्दलम, एदक्का, तिमिला और कोम्बु जैसे वाद्य यंत्र शामिल हैं

पूरम के आख़िरी सातवें दिन को पाकल परम के नाम से जाना जाता है । पूरम हालांकि एक हिन्दू त्यौहार है लेकिन इसने केरल में मौजूद सभी धर्मों के लोगों को अपने प्रभाव में ले लिया है । मुस्लिम और ईसाई दोनों सम्प्रदाय के लोग इस त्यौहार में शामिल होते हैं जिससे राज्य में फ़ैली धार्मिक समरसता का पता चलता है

त्रिशूर में हाथियों का जुलूस सभी के आकर्षण का केंद्र रहता है जिसे देखने के लिए भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। ज्ञात हो कि भारत का दक्षिण भारतीय राज्य केरल अपने मंदिरों के कारण लगातार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है और आज केरल और पर्यटन लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची बन गए हैं।

ये भारत का एक ऐसा राज्य है जहां जितना महत्त्व मंदिर और भगवान को दिया जाता है उतना ही हाथियों को भी। शायद यही कारण है कि हाथी केरल का राज्य पशु है। आपको बताते चलें केरल के सभी त्योहारों में हाथी अनिवार्य है।

त्रिशूर पूरम की शुरुआत आज से 200 साल पहले त्रिशूर के राजा ने इस मकसद से की थी की सारे मंदिर एकजुट हो जाएं।केरल का ये लोकप्रिय त्योहार हर साल थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचोंबीच आयोजित होता है।इस त्योहार में शामिल मंदिरों को दो वर्गों पूर्वी मंदिरों और पश्चिमी मंदिरों में वर्गीकृत किया गया है। आपको बताते चलें कि यहां का पूरम समारोह मुख्य पूरम तक सात दिनों तक चलता है जहां बाद में पूजा होती है।

हाथियों की पीठ पार रंगारंग छतरियों का प्रदर्शन इस त्योहार का मुख्य आकर्षण होता है, जिसके लिए मंदिर समिती द्वारा एक विशेष प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इस दौरान प्रतियोगिता जीतने के लिए अलग अलग मंदिर के लोग अपने अपने हाथियों को मोर पंख छतरियों और आभूषणों से सजाते हैं। ये विशेष पारंपरिक ढोल नगाड़े और ये कलाकार भी हाथियों के अलावा त्योहार के मुख्य आकर्षण होते हैं। बताया जाता है कि इस त्योहार के लिए 250 से अधिक कलाकार यहां आकर अपनी कला को लोगों के बीच दिखाते हैं। कहा जाता है कि पर्व के दौरान ढोल बजाने वाले ये कलाकार स्वयं भगवान का रूप होते हैं तो इन्हें राज्य में विशेष सम्मान दिया जाता है।