Home > DNS

Blog / 18 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) तंगमा समुदाय : भाषा पर खतरा क्यों? (Tangam Community and Their Language)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) तंगमा समुदाय : भाषा पर खतरा क्यों? (Tangam Community and Their Language)



हाल ही में, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू ने तांगम समुदाय और तांगम भाषा से जुड़ी एक किताब जारी की. इस किताब का शीर्षक तांगम्स: एन एथ्नोलिंग्विस्टिक स्टडीज़ ऑफ द क्रिटिकली इंडेंजर्ड ग्रुप ऑफ अरुणाचल प्रदेश (Tangams: An Ethnolinguistic Study Of The Critically Endangered Group of Arunachal Pradesh) है। पुस्तक को रिलीज करते वक्त अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि यह किताब तांगम समुदाय की भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करेगी।

डीएनएस में आज हम आपको तांगम समुदाय और तांगम भाषा के बारे में बताएंगे और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ दूसरे अहम पहलुओं को भी ……..

तांगम अरुणाचल प्रदेश की 'आदि' जनजाति (Adi tribe) के भीतर उपसमूह के रूप में एक समुदाय है। इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. यह समुदाय अरुणाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव 'कुग्गिंग' में रहता है जहां वर्तमान में तांगम भाषा बोलने वाले मात्र 253 लोग ही बचे हैं। 'कुग्गिंग' गांव अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग ज़िले के पेनडेम सर्किल (Paindem Circle) में स्थित है। इसके चारों ओर 'आदि' जनजाति के शिमॉन्ग (Shimong), और मिन्यांग्स (Minyongs) जैसे उपसमूह समेत खाम्बस (Khambas) के बौद्ध आदिवासी समुदाय वाले गांव मौजूद हैं।

चूँकि तांगम समुदाय की आबादी केवल एक गाँव तक ही सीमित है इसलिए ये लोग अब शायद ही कभी अपनी भाषा बोलते हैं। तांगम लोगों को अपने पड़ोसी गांव के लोगों से बातचीत के लिए पड़ोसियों की ही भाषा का इस्तेमाल करना पड़ता है जिसमें शिमोंग, खंबा और हिंदी जैसी भाषाओं का इस्तेमाल शामिल है. इससे तांगम लोग बहुभाषी हो गए हैं। भाषा की विविधताओं के चलते यहां की ज्यादातर भाषाएं अंग्रेजी आसामी और अरुणाचली हिंदी पर निर्भर हो गई यानी यह 3 भाषाएं यहां के लोगों के लिए लिंक लैंग्वेज का काम करने लगी. इसीलिए यह भाषाएं अब धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर आ गई हैं.

यूनेस्को के ‘वर्ल्ड एटलस ऑफ इंडेंजर्ड लैंग्वेज’ (2009) के मुताबिक ‘तांगम’ एक मौखिक भाषा है जो ‘तिब्बती-बर्मन भाषा परिवार’ के अंतर्गत 'तानी समूह' (Tani group) से संबंधित है। इसे यूनेस्को के ‘वर्ल्ड एटलस ऑफ इंडेंजर्ड लैंग्वेज’ में 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' यानी Critically Endangered की श्रेणी में रखा गया है। बता दें कि अरुणाचल प्रदेश की भाषाओं को चीनी-तिब्बती भाषाई परिवार के तहत वर्गीकृत किया गया है. इन भाषाओं को आगे भी तिब्बती-बर्मन और ताई (Tai) समूह के तहत वर्गीकृत किया गया है मसलन लोलो-बर्मिश (Lolo-Burmish), बोधिक (Bodhic), साल (Sal), तानी (Tani), मिशमी (Mishmi), हरिश (Hruissh) और ताई (Tai) आदि।

ताँगम के अलावा अरुणाचल प्रदेश की की दूसरी भाषाएं जैसे कि मेयोर आदि अब खतरे की जद में है. मौजूदा वक्त में, मेयोर भाषा बोलने वालों की तादाद मात्र 1000 रह गई है. वैसे तो अरुणाचल प्रदेश की ढेर सारी भाषाओं का अब क्षरण हो रहा है, लेकिन बड़ी भाषाओं के मुकाबले छोटी भाषाएं ज्यादा खतरे में हैं. क्योंकि भाषा की हानि ‘सांस्कृतिक क्षरण’ (Cultural Erosion) का कारण है इसलिए जरूरी है कि भाषा को बचाने के लिए बेहतर प्रयास किए जाएं।