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Blog / 14 Jan 2019

(Daily News Scan - DNS) सरोगेसी नए क़ानून (SURROGACY : New Laws)

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(Daily News Scan - DNS) सरोगेसी नए क़ानून (SURROGACY : New Laws)


मुख्य बिंदु:

पिछले हफ़्ते ‘सरोगेसी विधेयक 2016 को लोकसभा से मंजूरी मिल गई। इस विधेयक के तहत देश में कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने और सरोगेसी के ग़लत इस्तेमाल को ख़त्म किये जाने की बात कही गई है। इसके अलावा इस विधेयक में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरोगेसी बोर्ड के गठन के साथ ही इसे रेगुलेट करने के लिए अधिकारियों की तैनाती का भी नियम तैयार किया गया है।

आइये अब जानते हैं कि सेरोगेसी क्या है और इसके कानून में क्या बदलाव किया गया है -

दरअसल सेरोगेसी एक ऐसी प्रकिया है जिसमें बच्चे न पैदा कर पाने वाले शादीशुदा कपल्स इसकी मदद लेते हैं। सेरोगेसी के ज़रिये शादीशुदा कपल किसी महिला की कोख को किराए पर लेते हैं और ये महिला बच्चे की प्रेग्नेंसी के लिए तैयार होती है। किराए पर कोख देने वाली इस महिला को सरोगेट मदर के नाम से जाना जाता है।

सरोगेसी दो प्रकार की होती है - जिसे ट्रेडिशनल और जेस्टेशनल सरोगेसी के नाम से जाना जाता है।

ट्रेडिशनल सरोगेसी में बच्चे की चाह रखने वाले पुरुष के शुक्राणु को सरोगेट मदर के अंडाणु के साथ निषेचित यानी Fertilize किया जाता है, इस प्रक्रिया में बच्चे के जेनिटिक लक्षण पिता के होते हैं । जबकि जेस्टेशनल सरोगेसी के दौरान मेल और फीमेल दोनों के शुक्राणु और अंडाणु को पहले ivf तकनीकि के ज़रिये भ्रुण में तब्दील किया जाता है उसके बाद इसे किसी सरोगेट मदर की कोख में रखा जाता है। इस प्रक्रिया में बच्चे के जेनेटिक लक्षण माता और पिता दोनों से ही मेल कहते हैं।

सेरोगेसी विधेयक 2016 के तहत सेरोगेसी में कुछ बदलाव किये गए हैं। इन बदलावों में सरोगेट मां अब सिर्फ एक ही बार अपनी कोख किराये पर दे सकती है। नए कानून के तहत सरोगेट मां अब सरोगेसी प्रक्रिया अपना रहे कपल्स की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिए। जिसका ख़ुद का एक बच्चा होना भी अनिवार्य है।

इस विधेयक में बच्चे को नव महीने तक अपनी कोख में रखने वाली सरोगेट मां की उम्र भी तय की गई है। जिसमें उसकी ऐज 25 -35 वर्ष निर्धारित की गई है। सरोगेट मां को अब प्रेग्नेंसी के दौरान ही अपना ध्यान रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए ही पैसे ही दिए जा सकते हैं। मेडिकल जरूरतों से ज़्यदा पैसा देना भी अब सरोगेसी के अपराध में शामिल किया जायेगा। सेरोगेसी कानून में संसोधन के बाद 5 साल की उम्र से ज़्यदा वाले शादीशुदा जोड़े ही सेरोगेसी का फायदा उठा पाएंगे। इसके अलावा सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ सिर्फ उन्हीं कपल्स को मिल पाएंगे जिसमें मेल या फीमेल दोनों में से कोई एक बच्चा पैदा करने में स्थिति में न हो। किसी भी व्यक्ति, संगठन, या सरोगेसी क्लिनिक द्वारा सरोगेसी से रिलेटेड विज्ञापन करने पर भी मनाही है। इसके अलावा सरोगेसी से जन्मे बच्चे को छोड़ना और सरोगेसी के लिए ह्यूमन स्पर्म्स की खरीदारी और बिक्री करना भी नए विधयेक के तहत अवैध है। सिंगल पुरुष, औरतें अविवाहित जोड़े और होमेसेक्सुअल्स को सरोगेसी की इज़ाज़त नहीं दी गई है। साथ ही सरोगेसी के नए क़ानून को तोड़ने पर क़रीब 5-10 लाख रुपये का जुमार्ना और कारावास की सजा दी जा सकती है ।

भारत पिछले कुछ वर्षों में काफी तेज़ी से सरोगेसी केंद्र के रूप में उभरा है। जहां सबसे ज़्यादा विवाद कमर्शियल सरोगेसी को लेकर रहा है।

भारत में सरोगेसी करवाना अन्य देशों की अपेक्षा काफी सस्ता है जिसके कारण भारी तादात में विदेशी नागरिक भारत आकर सरोगेसी करवाते है।

कमर्शियल सरोगेसी के ज़रिये सरोगेट मां को चिकित्सा खर्च के अलावा पैसों का भी भुगतान किया जाता है। इसके अलावा सरोगेट मांओं का शोषण, गलत व्यवहार, और सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को छोड़ देने के मामले भी देखे गए हैं।

सरोगेसी के ज़रिये पैदा हुए बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और सरोगेट मांओं के शोषण को समाप्त करने के लिहाज से ये विधयेक बहुत ज़रूरी था। इसके अलावा सरोगेसी क्लिनिकों द्वारा सरोगेसी के दुरूपयोग को रोकने में भी ये विधेयक महहतव्पूर्ण भूमिका निभाएगा। इसके अलावा भारत के विधि आयोग ने भी अपनी 228वीं रिपोर्ट में कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने की सिफारिश की थी।