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Blog / 13 May 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) स्टाइरीन गैस (Styrene Gas)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) स्टाइरीन गैस (Styrene Gas)



विशाखापट्टनम के पास मौजूद केमिकल फैक्ट्री में गैस रिसाव के चलते बीते गुरूवार को 11 लोगों की मौत हो गयी और सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा । जिस गैस के रिसाव के चलते यह सब हुआ उसका नाम स्टाइरीन है । अब सवाल ये है क्या है ये स्टाइरीन गैस कहाँ और कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है और अगर ये गैस बाहर फ़ैल गयी तो इससे क्या क्या नुक्सान पहुँच सकते हैं इंसानी सेहत को।

आज के DNS में हम विस्तार से चर्चा करेंगे स्टाइरीन गैस की और जानेंगे इसके कुछ ऐसे पहलुओं को जिससे आप अनजान हैं।

स्टाइरीन एक कार्बनिक पदार्थ है जिसका रासायनिक फॉर्मूला C8H8 होता है । यह बेंजीन का ही एक सह यौगिक है । आम तौर पर कारखानों में इसे द्रव रूप में संगृहीत किया जाता है लेकिन ये काफी जल्दी भाप बनकर उड़ जाता है ी इसलिए इसे हमेशा 20 डिग्री सेल्सियस तापमान से कम तापमान पर स्टोर किया जाता है।

कहाँ इस्तेमाल होती है स्टाइरीन गैस?

स्टाइरीन के इस्तेमाल के बारे में बात करें तो इसे पोलीस्टाइरीन को बनाने में कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है । पोलीस्टाइरीन एक ऐसी प्लास्टिक के तौर पर काम में आती है जिससे कई सारे घरेलु उपकरण के हिस्से बनाये जाते हैं । इनमे रेफ्रिजरेटर हो या माइक्रो वेव ओवन , ऑटोमोटिव पार्ट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे कंप्यूटर के कल पुर्ज़े तैयार किये जाते हैं । इसके अलावा डिस्पोजेबल कप और खाने की पैकेजिंग से जुड़े सामन बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

क्या होता है जब कोई स्टाइरीन गैस के संपर्क में आता है?

इसके संपर्क में आने पर इंसानी तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है । इसके संपर्क में आने पर व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ , सांस से जुडी समस्याएं , आँखों में जलन , बदहज़मी , जी मचलाना , बेहोशी , लड़खड़ाकर चलना और चक्कर आना शामिल है । विशाखपट्टनम में हुए हादसे में हालांकि लोग इस गैस के संपर्क में बहुत थोड़े वक़्त के लिए आये थे जिसकी वजह से उनमे इस गैस के बहुत दूरगामी परिणाम नहीं होंगे।

लेकिन जिन लोगों में सांस से जुडी बीमारियां जैसे अस्थमा और गंभीर फेफड़ों से जुडी बीमारियां पायी गयी हैं उनमे इस गैस की वजह से ज़्यादा दिक्कतें पायी जा सकती हैं । जिन लोगों को डाइबिटीस या उच्च रक्तचाप की शिकायत है उनमे इस गैस के असर से अवसाद और चिंता सम्बन्धी बीमारियां घर कर सकती हैं।

स्टाइरीन गैस के असर से आम तौर म्यूकस मेम्ब्रेन या श्लेष्मिक झिल्ली पर प्रभाव पड़ता है । म्यूकोस मेम्ब्रेन या श्लेष्मिक झिली एक तरह सतह होती है जहाँ से म्यूकोस का स्त्राव होता है । ये झिल्ली आम तौर पर नाक , मुंह इत्यादि अंगों में पायी जाती है । विशाखापट्टनम में हुए गैस रिसाव में कई लोगों को सांस में तकलीफ की शिकायत पायी गयी । इनमे से कुछ लोगों की दम घुटने से मौत हो गयी।

क्या है दूरगामी प्रभाव ?

जानकारों का कहना है की लोगों के इस गैस के प्रभाव में लम्बे वक़्त तक रहने से उनमे कैंसर जैसे जानलेवा रोग की शिकायत पायी जा सकती है इसके अलावा सरदर्द जी मचलाना और चक्कर आना इसके बाकी छोटे मोठे लक्षणों में शुमार हैं । हालांकि स्टाइरीन गैस की वजह से काम करते वक़्त सेहत पर पड़ने वाले असर के बारे में अभी तक कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

अमेरिकी वातावरण सुरक्षा एजेंसी के मुताबिक़ चूहों पर किये गए परीक्षणों से यह पता चला है की स्टाइरीन गैस को सूंघने या इसके संपर्क म आने पर इसका विषैलापन कम या मध्यम हो सकता है । जानवरों में इस गैस के टेस्ट से ये पता चला है की उनका लिवर , खून , किडनी वगैरह पर इस गैस का असर पड़ सकता है।

किस फैक्ट्री से स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ ?

स्टाइरीन गैस का रिसाव एल जी केमिकल पॉलीमर्स नाम की कंपनी के टैंकों से हुआ । इस फैक्ट्री को 1961 में हिन्दुस्तान पॉलीमर्स के नाम से पोलीस्टाइरीन बनाने के लिए स्थापित किया गया था ।1978 में इसे यू बी समूह की मैक डोवेल एंड कंपनी के साथ मिला दिया गया था । 1997 में इसे दक्षिण कोरियाई कंपनी एल जी केम ने अधिग्रहीत कर लिया और इसका नाम बदलकर एल जी पॉलीमर्स कर दिया गया । ये फैक्ट्री रोज़मर्रा के इस्तेमाल में आने वाले पोलीस्टाइरीन , हाई इम्पैक्ट पोलीस्टाइरीन और इंजीनियरिंग में इस्तेमाल आने वाले प्लास्टिक बनाने का काम करती है । ये फैक्ट्री विशाखापट्टनम शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर गोपालपट्टनम के नज़दीक आर आर वी पुरम में मौजूद है

कंपनी के एक अधिकारी के मुताबिक़ 2400 टन के टैंक में लगभग 1800 टन स्टाइरीन मौजूद थी । जब कंपनी के अधिकारी फैक्ट्री को लॉक डाउन में छूट के दौरान खोलने की योजना बना रहे थे तब इस टैंक से गैस का रिसाव शुरू हो गया । गौर तलब है की लॉक डाउन के चलते फैक्ट्री 44 दिनों से बंद थी । गैस को वापस संग्रह करने तक टैंक से आधी गैस का रिसाव हो चुका था ।

क्या सारे सुरक्षा के इंतज़ाम पुख्ता थे ?

जैसा की हम जानते हैं की स्टाइरीन गैस को टैंक में 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्टोर किया जाता है ।तापमान को लगातार निगरानी में रखा जाता है और टैंक के रोशनी या गर्मी के असर में आने से बहुलकीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । लॉक डाउन के दौरान यहाँ फैक्ट्री परिसर में निगरानी के लिए 15 इंजीनियर का समूह तैनात था जो लगातार टैंक के तापमान की निगरानी कर रहा था । जैसे ही तापमान बढ़ता था इसे वापस लाने के लिए एक अवरोधक का इस्तेमाल किया जाता था । लेकिन ऐन मौके पर स्टाइरीन गैस के तापमान को नहीं स्थिर किया जा सका जिससे हादसा हो गया । सुरक्षा कारणों की वजह से स्टाइरीन टैंक को कभी पूरा नहीं भरा जाता था ।

हादसे को क्यों नहीं टाला जा सका ?

जैसा की स्टाइरीन 44 दिनों तक फैक्ट्री के बंद होने की वजह से ठहरी हुई थी जिसकी वजह से यह स्टोरेज टैंक के ऊपरी हिस्से में इकठ्ठा हो गयी और इसका तापमान 20 डिग्री से ऊपर चला गया ।तापमान बढ़ने की वजह से गैस भाप बनकर बाहर निकलने लगी । इस पूरे प्रक्रम को स्व बहुलकीकरण या ऑटो पॉलीमरआइज़ेशन कहा जाता है । हालांकि गैस रिसाव की असली वजह का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है ।