(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PM Fasal Beema Yojana)
भारत देश विविधताओं का देश , यहाँ सिर्फ संस्कृति , जाती धर्म और भाषा की विविधता ही नहीं देखने को मिलती बल्कि यहाँ के मौसम में भी विविधता है । मौसम में पायी जाने वाली ये विविधता जहाँ कुछ लोगों के लिए वरदान हैं तो कुछ के लिए ये हैं अभिशाप। बेमौसम बारिश , बर्फबारी , कोहरा , या फिर बारिश न होना जैसी दशाएं किसानों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं हैं। क्यूंकि इन हालातों में किसानों की फसलें बर्बाद होती हैं जिससे उनकी रोज़ी रोटी छिन जाती है और मज़बूरन किसान को क़र्ज़ लेना पड़ता है ।क़र्ज़ के जाल में उलझा किसान इस परेशानी से उबरने के लिए खुद को मौत के हवाले कर देता है ।लेकिन इन सबसे निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने फसल बीमा योजना की शुरुआत की।
19 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई । इस बैठक में किसानों से जुड़ा एक अहम् फैसला लिया गया। यह अहम् फैसला, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को किसान की मर्जी पर छोड़ने को लेकर था । अभी तक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को अनिवार्य रखा गया था । इसके चलते क़र्ज़ लेने पर किसानों को फसल बीमा भी लेना पड़ता था। कैबिनेट मीटिंग में इस व्यवस्था को बदल दिया गया है । आंकड़ों पर गौर करें तो कुल किसानों में से 58 फीसदी किसान क़र्ज़ लेते हैं । दरसल अभी तक चल रही फसल बीमा योजना को लेकर कई शिकायतें पायी गयीं थी जिसकी वजह से इन बदलावों को अंजाम दिया गया है।
फसल बीमा योजना में किये गए बदलाव:
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना में किये गए बदलावों में सबसे अहम् है इसका स्वैच्छिक बनाया जाना ।
इसके अलावा अब फसल बीमा देने वाली बीमा कंपनियों को टेंडर के जरिए चुना जाएगा। इन बीमा कंपनियों को तीन सालों की जिम्मेदारी दी जाएगी। अभी तक यह समय सीमा एक से तीन साल तक के लिए थी।
नए बदलावों में प्रीमियम सब्सिडी में केन्द्र सरकार का हिस्सा उत्तर-पूर्व के राज्यों के लिए बढ़ा दिया गया है। इसे 50 फीसदी से बढ़ाकर 90 फीसदी कर दिया गया है । प्रीमियम सब्सिडी में बचा हुआ 10 प्रतिशत राज्य सरकार को देना होगा।
उत्तर पूर्व के को छोड़कर बाकी के राज्यों में केन्द्रीय सब्सिडी की दर असिंचित क्षेत्रों/फसलों यानी पानी की कमी वालों इलाकों में 30 प्रतिशत तक सीमित रहेगी । बदलावों से पहले ये हिस्सा 50 फीसदी था। जबकि सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिए यह सब्सिडी 25 फीसदी तक सीमित रखी गई है।
इसके अलावा केंद्र सरकार फसल बीमा पॉलिसी की ज़रूरतों के बारे में जागरूकता अभियान भी चलाएगी।
ये सारे बदलाव आगामी खरीफ के सीजन से लागू होंगे।
कब शुरू हुई थी फसल बीमा योजना:
भारत में सबसे पहले फसल बीमा की शुरुआत 1972 में हुई थी। इसके बाद राजीव गांधी की सरकार के दौरान 1985 में फसल बीमा योजना शुरू की गयी थी। साल 1999 में केंद्र सरकार द्वारा नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम और फिर 2010 में संशोधित नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम लाई गयी । लेकिन पारदर्शिता में कमी, बीमा भुगतान में देरी और महंगे प्रीमियम की वजह के चलते ज़्यादा किसान इन योजनाओं से जुड़ नहीं पाए।
साल 2016 में केंद्र की ऍन डी ए सरकार द्वारा इस योजना को फिर से लॉन्च किया गया । इस योजना ने पूर्व में चल रही राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और संशोधित कृषि बीमा योजना की जगह लो ली।
क्या है ख़ास प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में:
13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये योजना लॉन्च की थी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को फसल बोने के दस दिनों के अंदर अंदर बीमा कराना होता है। बाढ़, बारिश, ओला या फिर किसी प्राकृतिक आपदा के चलते अगर फसल को कोई नुकसान पहुंचता है तो किसान को बीमा का लाभ दिया जाता है। इस योजना में उन सभी किसानों को शामिल किया जाता है जो खेती करते है चाहे उनके पास खेत हो या न हो।
किसानों द्वारा फसल बोने के 10 दिन के भीतर बीमा करवाना ज़रूरी होता है। अगर फसल कटाई के 14 दिन बाद तक बारिश या किसी और वजह से फसल खराब हो जाए, तो किसानों को बीमा का पैसा दिया जाता है।
इसके अलावा अलग अलग तरह की फसलों के लिए किसानों को अलग अलग प्रीमियम देना पड़ता है । खरीफ की फसलों के लिए किसान को कुल बीमा की राशि का 2 फीसदी प्रीमियम देना पड़ता है जबकि रबी की फसल के लिए यह प्रीमियम कुल बीमा राशि का 1/5 फीसदी तय किया गया है । नकदी फसल या बागवानी की फसल के लिए किसान को कुल बीमा राशि का 5 फीसदी प्रीमियम देना पड़ता है। बकाया राशि केंद्र और राज्य सरकारें इंश्योरेंस कंपनियों को देती हैं।
फसल खराब होने की स्थिति में किसान बीमा कंपनी को सूचना देता है। अगर फसल खराब हुई है तो बीमा कंपनियां अपने प्रतिनिधियों के जरिए एक सर्वेक्षण करवाती हैं। सर्वे करवाने के 30 दिनों के भीतर पैसे किसानों के खाते में भेज दिए जाते हैं। किसी वजह से अगर किसान बीमा कंपनी से संपर्क नहीं कर पाता है, तो किसान अपने नज़दीकी बैंक या फिर अधिकारी को सूचना दे सकता है।
प्रीमियम की रकम हर राज्य में अलग अलग होती है। इसके अलावा हर फसल की बीमा राशि भी अलग अलग होती है। प्रीमियम की रकम जिला तकनीकी समिति की रिपोर्ट के आधार पर तय होती है। इस समिति में जिला कलेक्टर, जिला कृषि अधिकारी, मौसम विभाग का अधिकारी, किसानों के प्रतिनिधि और इंश्योरेंस कंपनी शामिल होती है। प्रत्येक सीजन से पहले यह रिपोर्ट भेजी जाती है। इसके बाद इंश्योरेंस कंपनियां रिपोर्ट के आधार पर प्रीमियम तय करती हैं।
क्यों दीं गयी बदलावों को मंज़ूरी:
किसानों और किसान संगठनों की लगातार शिकायतें आ रही थी की उन्हें प्रीमियम के मुकाबले भुगतान कम मिलता था। ये सिलसिला पिछले चार सालों से चला आ रहा था । किसान संगठनों का आरोप था की सरकारी लापरवाही के चलते निजी बीमा कंपनियां किसानों को पूरे दावे का भुगतान नहीं कर रही हैं।
पहले इस योजना में खेत की जगह एक गाँव या पंचायत को इकाई माना जाता था । अगर किसान के खेत में किसी प्राकृतिक वजह से नुकसान होता था , लेकिन आसपास के बाकी खेतों में नहीं होता था तो बीमे का भुगतान नहीं दिया जाता था।
किसानों को फसलों के नुकसान पर मिलने वाला पैसा भी काफी देरी से मिलने की शिकायतें भी आती रहीं हैं । इस वजह से किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था।
योजना शुरू होने के चार साल बाद भी कई राज्यों ने प्रीमियम का हिस्सा ही दिया। इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने 2017-18 का प्रीमियम ही जमा नहीं कराया। बिहार और पंजाब में तो यह योजना ही लागू नहीं हुई है।
कंपनियां किसानों से बिना पूछे प्रीमियम की राशि काट लेती थीं। जैसे ही किसान क़र्ज़ लेता था कंपनियां उसमें से प्रीमियम के पैसे काट लेती थी। इस वजह से किसानों को पता ही नहीं चल पाता था कि उन्होंने कितना प्रीमियम अदा किया।