(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) गुट निरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन 2020 (Non Aligned Movement Summit 2020)
कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के चलते पूरी दुनिया में लॉक डाउन के हालात हैं । इस महामारी से क्या विक्सित क्या विकासशील देश सब की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है । इस वायरस से मरने वालों की तादाद हर इन बढ़ती जा रही है ।पूरी दुनिया में फ़ैली इस बीमारी का फिलहाल अभी तक कोई इलाज़ नही खोजा सका है । इसकी जद में न सिर्फ इंसान और देश आये हैं बल्कि लोगों के काम करने का तौर तरीका भी बदलने लगा है । दुनिया इस महामारी के चलते धीरे धीरे वर्चुअल और डिजिटल दुनिया में कदम रखने लगी है । वैश्विक सम्मलेन और बैठकें भी इससे अछूती नहीं हैं । इसी कड़ी में इस बार गुट निरपेक्ष देशों का सम्मलेन भी वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर आयोजित किया गया जिसमे इसके सदस्यों ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये शिरकत की । भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये 4 मई को गुट निरपेक्ष (NAM) देशों के वर्चुअल सम्मेलन (virtual summit) में भाग लिया।
आज के DNS में हम आपको बताएँगे की क्या ख़ास रहा इस वर्चुअल सम्मलेन में और साथ ही जानेंगे इस सम्मेलन के इतिहास और वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता के बारे में
गुट निरपेक्ष देशों के इस सम्मेलन को आयोजित कराने का श्रेय अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव को जाता है । श्री अलीयेव की तमाम कोशिशों की वजह से ये सम्मलेन आयोजित हो सका है । अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव गुट निरपेक्ष आंदोलन के मौजूदा अध्यक्ष हैं। संयुक्त राष्ट्र के बाद गुट निरपेक्ष आंदोलन सबसे बड़ा समूह है । इस समूह में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे महाद्वीपों के कुल 120 छोटे बड़े देश शामिल हैं। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने से पहले प्रधानमंत्री मोदी कोरोना संक्रमण को लेकर कई राष्ट्राध्यक्षों से फोन पर बात कर चुके है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन एक अंतराराष्ट्रीय संस्था है। इस आंदोलन की नीव भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासर और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रॉज टीटो ने मिलकर रखी थी । इसकी शुरुआत अप्रैल 1961 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र के बाद NAM विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मंच है। इस मंच के तहत 120 सदस्य और 17 पर्यवेक्षक देश हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गयी थी ।पहला खेमा जिसकी अगुवाई कर रहा था साम्यवादी सोवियत संघ और दूसरा खेमा पूंजीवादी देश अमेरिका की सरपरस्ती में था । इस वक़्त दोनों गुट एक-दूसरे से मुकाबले के लिये देशों की लामबंदी और सेनाएं तैयार कर रहे थे ।
ये वो दौर था जब कई देशों को उपनिवेशवाद से आज़ादी मिली थी। भारत भी कई ऐसे देशों में शामिल था जो अभी अभी अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद हुआ था ।
इन सारे देशों ने इन दोनों ही गुटों से दूर रहने का फैसला किया । सभी देशों ने आपस में मिलकर एक समूह बनाया । इस समूह को ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ का नाम दिया गया । इसको बनाने का सबसे अहम् मकसद नए आज़ाद देशों के हितों की सुरक्षा करना था।
गुटनिरपेक्षता की ओर पहला कदम रखा गया साल 1955 में । इस साल इंडोनेशिया के बांडुंग में एक सम्मेलन आयोजित किया गया । इस सम्मलेन में भारत के तात्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, अब्दुल नासिर, सुकर्णो और मार्शल टीटो जैसे नेताओं ने शिरकत की । इस सम्मेलन में विश्व शांति और सहयोग बढ़ाने के मद्देनज़र एक घोषणा पत्र जारी किया गया ।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन साल 1961 इकसठ में बेलग्रेड में हुआ । इस सम्मलेन में जवाहरलाल नेहरू, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति सुकर्णो, मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर, घाना के राष्ट्रपति क्वामे एन्क्रूमा जैसे नेताओं ने शिरकत की ।
आज गुटनिरपेक्ष आंदोलन संयुक्त राष्ट्र के बाद दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक समन्वय और परामर्श का मंच है। इस समूह में दुनिया के 120 विकासशील देश शामिल हैं। इसके अलावा इस समूह में 17 देशों और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को पर्यवेक्षक का दर्जा मिला है।
गौरतलब है की साल 2019 में 18वें गुटनिरपेक्ष आंदोलन का शिखर सम्मेलन अज़रबैजान की राजधानी बाकू में हुआ था । इस सम्मलेन में भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने हिस्सा लिया था ।
गुट निरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत शीत युद्ध की राजनीति से दूर रहने की सोच को लेकर हुई थी ।इसमे शामिल देशों का शुरआत से एक ही मकसद था की कैसे दुनिया के दो गुटों से अलग रहा जाये । इसके अलावा इस संगठन में ज़्यादातर देश ऐसे थे जिन्होंने अभी अभी आज़ादी पायी थी ।ये सारे देश किसी भी तरह के सैन्य गठबंधनों से दूर रहना चाहते थे । इसके अलावा इस समूह का मकसद पश्चिमी देशों की रंगभेद नीति के खिलाफ संघर्ष करना भी था । दुनिया में तेज़ी से बढ़ रहे मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ लड़ना भी इस संगठन के अहम् मकसदों में एक था ।
भारत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
भारत इसकी स्थापना से अब तक इसके सिद्धांतों पर कायम रहा है। इसकी शुरुआत से लेकर साल 2016 तक भारत के प्रधानमंत्री ही इस आंदोलन में भारत की नुमाइंदगी करते रहे हैं । केवल साल 1979 उनासी में कार्यवाहक प्रधानमंत्री होने की वजह से चौधरी चरण सिंह इसके सम्मेलन में नहीं जा सके थे। इसी के साथ साल 2016 और 2018 में भी भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री ने नहीं किया ।हाल के सालों में भारत की दिलचस्पी इसमें कम होने लगी है । इसकी वजह इस समूह में हो रही गुटबंदी है । ज़्यादातर देश या तो अमेरिका या फिर अन्य ताकतवर मुल्कों के साथ मिलकर अपना गुट बना रहे हैं
गुटनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले लोग क्षेत्रीय गुटों में बंट रहे हैं। यूरोपीय संघ जहाँ आर्थिक और राजनीतिक मकसदों को लेकर एक हो रहा है तो वहीं दक्षिण एशिया में आसियान, सार्क जैसे गुट बन गए हैं । भारत और चीन में उभरते हुए राजनीतिक मतभेदों के बावज़ूद ये दोनों देश पश्चिमी देशों से मुकाबले के लिए आर्थिक गुटबंदी कर रहे हैं।
सके अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन में आज के मसलों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है । आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी समस्याओं पर भी इस समूह का कोई एजेंडा नहीं दिख रहा है। इसी उद्देश्य से भारत भी अलग अलग देशों से अलग अलग आर्थिक और राजनीतिक करार कर रहा है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन को भले ही इसलिए शुरू किया गया था जिससे दुनिया में बढ़ते ध्रुवीकरण को रोका जा सके ।लेकिन आज के दौर में पूरी दुनिया वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद की और बढ़ रही है । ऐसे में आज के दौर में गुट निरपेक्षता के बारे में सोचना बेमानी है ।हालाँकि इस तरह के सम्मेलनों से दुनिया में हो रही गुटबाजी के खिलाफ एक सोच तो ज़रूर आती होगी।