Home > DNS

Blog / 22 Oct 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) न्यू शेपर्ड रॉकेट : कम खर्च में अंतरिक्ष यात्रा (New Shepard Rocket : Space Tour in Lesser Expense)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) न्यू शेपर्ड रॉकेट : कम खर्च में अंतरिक्ष यात्रा (New Shepard Rocket : Space Tour in Lesser Expense)



जब हम रॉकेट की बात करते हैं तो हमारे दिमाग में गहन विज्ञान से जुड़ी एक छवि उभर के आती है. लेकिन रॉकेट अब सिर्फ विज्ञान की बात नहीं रही, बल्कि यह अब पर्यटन उद्योग का भी हिस्सा बन चुका है. अभी हाल ही में, एमेज़ॉन की कंपनी ब्लू ओरिजिन ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मदद से एक ख़ास रॉकेट सस्टम तैयार किया है. इसकी मदद से आप अंतरिक्ष पर्यटन के लिए जा सकते हैं. इस नए रॉकेट सिस्टम का नाम न्यू शेपर्ड (New Shepard) है.

डीएनएस में आज हम आपको न्यू शेपर्ड रॉकेट सिस्टम के बारे में बताएँगे और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ दूसरे महत्वपूर्ण पक्षों को भी…..

न्यू शेपर्ड रॉकेट सिस्टम को एमेज़ॉन के फाउंडर जेफ बेजॉस की स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन ने बनाया है. बता दें कि मौजूदा वक्त में जैफ बेजॉस दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं. इस रॉकेट सिस्टम का मकसद निकट भविष्य में स्पेस पर्यटकों को पृथ्वी से करीब 100 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर ले जाकर माइक्रोगैविटी का अनुभव कराना होगा. माइक्रोग्रैविटी एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव काफी कम होता है. साल 2019 में ब्लू ओरिजिन के साथ करार करते हुए नासा ने इस कंपनी को अपना टे​स्ट स्टैंड के इस्तेमाल की इजाज़त दी थी. ग़ौरतलब है कि स्पेस टूरिज़्म के बिज़नेस में हाथ आज़माने के लिए तैयार ब्लू ओरिजिन साल 2018 में उन 10 कंपनियों में शुमार थी, जिन्हें चंद्रमा और मंगल से जुड़े मिशन के लिए अं​तरिक्ष में शोध करने के लिए नासा ने चुना था.

इस रॉकेट सिस्टम का नाम अमेरिका के पहले अंतरिक्ष यात्री एलन शेपर्ड के नाम पर ‘न्यू शेपर्ड’ रखा गया है. पृथ्वी से 100 किलोमीटर तक ऊपर जाने वाला यह रॉकेट सिस्टम अंतरिक्ष में एक तरह से पूरी लैब ले जा सकने की क्षमता भी रखता है. हालांकि अभी तक यही कहा जा रहा है कि इसे एस्ट्रोनॉट्स को ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

यह राकेट सिस्टम अंतरिक्ष में तय अंतर्राष्ट्रीय सीमा कैरमान लाइन के दायरे में ही अंतरिक्ष में रिसर्च करेगा. इस पूरे प्रोजेक्ट का मकसद स्पेस में आसानी और कम कीमत में जा पाने की संभावनाएं तलाशना है ताकि ज्यादा से ज्यादा शोध हो सकें और अंतरिक्ष के लिहाज से और बेहतर तकनीक विकसित की जा सके.

इस रॉकेट सिस्टम में दो खास हिस्से हैं - कैप्सूल और बूस्टर. कैप्सूल को कैबिन और बूस्टर को रॉकेट के तौर पर समझा जाता है. ब्लू ओरिजिन के मुताबिक केबिन में 100 किलोग्राम तक अंतरिक्ष उपकरणों से परीक्षण किए जा सकेंगे. ऐसे शैक्षणिक संस्थान जो अंतरिक्ष कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं उनके विद्यार्थियों को भी यह रॉकेट अंतरिक्ष में ले जा सकेगा. इस पूरे मामले में जो सबसे दिलचस्प बात है वह यह कि इसका खर्च फुटबॉल की नई युनिफ़ॉर्म की कीमत से भी कम होगा.

60 फीट लंबे रॉकेट में कैबिन एकदम टॉप पर बना हुआ है और छह लोगों के हिसाब से है. खास बात यह भी है कि कैरमान लाइन को पार करने से पहले यह कैबिन रॉकेट से अलग हो सकता है. वर्टिकल टेक ऑफ और लैंडिंग करने वाले इस सिस्टम को पूरी तरह से दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

ग़ौरतलब है कि बूस्टर से अलग होने के बाद कैप्सूल अंतरिक्ष में आज़ादी से अपना काम कर सकता है. इधर, बूस्टर पृथ्वी पर वापस आकर लैंड हो जाएगा तो कैप्सूल पैराशूट की मदद से अपने अपने आप लैंड हो सकेगा.

अभी हाल ही में, इस रॉकेट सिस्टम ने अमेरिका के टेक्सस से टेक-ऑफ करने के बाद अपना सातवाँ परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया. सवाल यह उठता है कि इस रॉकेट सिस्टम का परीक्षण 7 बार क्यों किया गया? दरअसल भविष्य में मंगल और चंद्रमा पर शोध के लिए होने वाले मिशनों में मदद मिल सके, इसके लिए इस रॉकेट में सटीकता होना बहुत जरूरी है. इसीलिए तकनीक विकास संबंधी शोध के लिए एक्यूरेसी जांचने के लिए इस रॉकेट का परीक्षण सातवीं बार किया. ताकि कहीं कोई कमी ना रह जाए. हालांकि इस सातवें परीक्षण के दौरान इसमें कोई अंतरिक्ष यात्री नहीं था. लैंडिंग सेंसर किस तरह काम करेगा, इसके अलावा इस सिस्टम की उड़ान और कक्षा में घूमने संबंधी जांच के लिए यह सातवां परीक्षण जरूरी था. इस सातवीं लांच को NS-13 नाम दिया गया.