(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) राष्ट्रीय शिशु गृह योजना (National Creche Mission)
हाल ही में लोकसभा में महिला और बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना (National Creche Scheme) के तहत संचालित शिशुगृहों से संबंधित सूचना जारी की गई…राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना के बारे में आपको बताएं तो राष्ट्रीय क्रेच योजना एक केंद्र सरकार की योजना है, जो 1 जनवरी, 2017 से अपने वज़ूद में है ।इस योजना को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ज़रिये से संचालित किया जा रहा है ….राष्ट्रीय क्रेच योजना को इससे पहले राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेच योजना के नाम से जाना जाता था। इसका मकसद कामकाजी महिलाओं के ऐसे बच्चों जिनकी उम्र 6 महीने से लेकर 6 साल तक की है को दिन भर देखभाल की सुविधा मुहैय्या कराना है । यह कानून उन सभी संस्थानों पर लागू होता है जहाँ 10 या उससे ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं । यह कानून उन सारे संस्थाओं में क्रेच की सुविधा को अनिवार्य बनाता है जहां 50 या उससे ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं.....सरकार ने अपने दिशा निर्देशों में किसी भी बाहरी शख्स जैसे प्लम्बर , ड्राइवर या इलेक्ट्रीशियन का प्रवेश इन शिशुगृहों में बच्चों की मौजूदगी के दौरान निषिद्ध घोषित किया है ......यह शिशुगृह 8 -10 घंटों के लिए खुला रहना चाहिए और अगर किसी संसथान में कर्मचारी शिफ्ट में काम करते हैं तो शिशुगृह भी शिफ्ट के हिसाब से चलना चाहिए । इन शिशुगृहों में हर एक बच्चे के हिसाब से 10- 12 वर्ग फ़ीट की जगह होनी चाहिए जिससे बच्चों को खेलने आराम करने या सीखने में कोई तकलीफ न हो । शिशुगृहों को किसी असुरक्षित जगह के आस पास नहीं होना चाहिए जैसे खुली नालियां , गटर या कूड़ादान आदि ...योजना की ख़ास बातों पर गौर करें तो इनमे कामकाजी महिलाओं के बच्चों को सोने की सुविधा के साथ अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है
इनमे 3 साल से कम उम्र के बच्चों को प्राम्भिक शिक्षा और प्रोत्साहन जबकि 3 से 6 साल की उम्र वाले बच्चों के लिये प्री-स्कूल शिक्षा की व्यवस्था करना , बच्चों के चहुमुखी विकास की निगरानी करना , स्वास्थ्य जाँच और टीकाकरण की सुविधाएं उपलब्ध कराना जैसी सुविधाएं शामिल हैं
इस योजना के मद्देनज़र शिशुगृह या क्रेचेस को कुछ दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं इनमे शिशुगृह को एक महीने में 26 दिन और हर रोज़ साढ़े सात घंटे खोलना , शिशुगृह के कर्मचारियों की न्यूनतम योग्यता मानदंड निर्धारित करना जिनमे मुख्य कर्मचारियों हेतु कक्षा 12वीं एवं सहायक कर्मचारी की न्यूनतम योग्यता कक्षा 10वीं तक होनी चाहिये।
इसके अलावा एक शिशुगृह में बच्चों की संख्या और कर्मचारियों की कितनी संख्या होनी चाहिए इनका भी सिलसिलेवार ब्यौरा इस योजना में दिया गया है।
इस योजना के अनुसार कामकाजी महिलाओं को शिशुगृह में हर महीने कुछ शुल्क भी जमा कराना होगा जिसकी धनराशि का निर्धारण उनकी आर्थिक स्थिति के हिसाब से किया जाएगा । योजना में उन कामकाजी महिलाओं जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही हैं उन्हें शिशु गृह में हर महीने एक बच्चे पर 20 रुपये की शुल्क अदायगी करनी होगी ।12000/- रुपए प्रति माह तक की आमदनी वाले परिवार के लिये यह शुल्क 100/- रुपए प्रति माह के हिसाब से लिया जाएगा जबकि इससे ऊपर की आमदनी वाले परिवारों को यह शुल्क 200रु प्रतिमाह के हिसाब से देना होगा।
इस योजना में शिशुगृह की सुविधा उपलब्ध कराने वाले संस्थानों के लिए भी कुछ ज़रूरी दिशा निर्देश दिए गए हैं जिनमे शिशुगृह को एक महफूज़ जगह पर होना चाहिए साथ ही साथ इसे बच्चों के लिए अनुकूल भी होना चाहिए । इसके अलावा क्रेच की सुविधा आम तौर पर घरों या माओं के कार्यस्थल के नज़दीक होनी चाहिए जिससे माताओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने में आसानी रहे ।इसके अलावा बच्चों से जुडी किसी परेशानी के आने पर क्रेच के नज़दीक होने पर आसानी से माता या पिता से संपर्क किया जा सकेगा । इसके अलावा बच्चे के बीमार होने पर उसे आसानी से घर भी पहुँचाया जा सकता है । इसके अलावा बच्चों की नामज़ूदगी में क्रेच के कर्मचारियों को भी बच्चों की पूछताछ में आसानी रहेगी।
इस योजना में इस बात का भी ज़िक्र है की शिशुगृह को चलाने में किसी स्थानीय महिला मंडल, स्वयं सहायता समूह (Self Help Group-SHG), स्थानीय निकायों के सदस्यों इत्यादि की भी मदद ली जा सकती है।
देश भर में मौजूद शिशुगृहों की संख्या की बात करें तो 11 मार्च 2020 तक इस योजना के तहत पूरे देश में 6453(तरेपन) शिशु गृह चलाये जा रहे थे..
नीति आयोग इस योजना का मूल्यांकन तीसरे पक्ष से कराती है.... इन सब प्रावधानों के बावजूद भी भारत में कामगार महिलाओं के लिए शिशुगृहों की संख्या अभी भी उतनी नहीं है जितने की ज़रुरत है.. केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए की वो इन नियमों का सख्ती से पालन कराये ताकि कामकाजी महिलाओं को अपने बच्चों के लेकर कोई दिक्कत न महसूस हो और उनकी कार्य शैली पर भी कोई असर न आये । भारत जैसे देश में जहाँ कई महिलाओं को बच्चों को जन्म देने के बाद इनके पालन पोषण के चलते अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है । ऐसे माहौल में जहाँ भारत की अर्थव्यस्था पर असर पड़ता है तो वहीं महिलाओं के समावेशी विकास पर भी एक सवालिया निशान लग जाता है।