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Blog / 14 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) मंगोलियाई कंजुर (Mongolian Kanjur)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) मंगोलियाई कंजुर (Mongolian Kanjur)



हाल ही में, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने मंगोलियाई कंजुर के 108 अंकों के पुनर्मुद्रण करने की परियोजना शुरू की है। मंत्रालय ने यह कदम राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत उठाया है। गौरतलब है कि इस मिशन के तहत संस्कृति मंत्रालय ने मंगोलियाई कंजुर पांडुलिपियों के प्रथम पांच पुनर्मुद्रित अंक पहले ही जारी कर दिए है।

डीएनएस में आज हम जानेंगे मंगोलियाई कंजुर के बारे में और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ दूसरे महत्वपूर्ण पक्षों को भी……….

मंगोलिया, पूर्व और मध्य एशिया में, चारों तरफ भूमि से घिरा यानी एक लैंडलॉक्ड (landlocked) देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में रूस, दक्षिण, पूरब और पश्चिमी में चीन से मिलती हैं....वैसे तो, मंगोलिया की सीमा कज़ाख़िस्तान से नहीं मिलती, लेकिन इसकी सबसे पश्चिमी छोर कज़ाख़िस्तान के पूर्वी सिरे से मात्र 38 किमी दूर है। उलान बटोर मंगोलिया का सबसे बड़ा शहर है, साथ ही यह इसकी राजधानी भी है। उलान बटोर का शाब्दिक अर्थ होता है 'लाल बहादुर'। मंगोलिया की राजधानी में वहां की करीब 38 फ़ीसदी आबादी निवास करती है।

मंगोलियाई भाषा में ‘कंजुर‘ का मतलब ‘संक्षिप्त आदेश‘ होता है जो खासकर भगवान बुद्ध के शब्द होते हैं। मंगोलियाई बौद्ध इसके प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं और वे मंदिरों में कंजुर की पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, एक धार्मिक रिवाज के रूप में मंगोलियाई बौद्ध अपने प्रतिदिन के जीवन में कंजुर की पंक्तियों का पाठ भी करते हैं। मंगोलियाई कंजुर का अनुवाद तिब्बती भाषा से किया गया है। कंजुर की भाषा प्राचीन मंगोलियाई है।

पांडुलिपि धातु, कागज, छाल, कपड़ा, ताड़ के पत्ते या दूसरी सामग्रियों पर हस्तलिखित 75 साल से पुरानी रचनाएं होती है। इसका महत्वपूर्ण वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और सौंदर्यात्मक मूल्य होता है। गौरतलब है कि लिथोग्राफ और मुद्रित संस्करण पांडुलिपियों के तहत नहीं आते हैं।

भारत सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शुरुआत फरवरी 2003 में की गई थी। इस मिशन के तहत पांडुलिपियों में संरक्षित ज्ञान का दस्तावेजीकरण, संरक्षण और प्रसार किया जाता है। मिशन का मकसद दुर्लभ और अप्रकाशित पांडुलिपियों को प्रकाशित करना है ताकि इन पांडुलिपियों में मौजूद असीमित ज्ञान का भंडार का लाभ शोधकर्ताओं, विद्वानों और बड़े पैमाने पर आम लोगों तक पहुंच सके।

बता दें कि मौजूदा वक्त में, भारत के पास तकरीबन दस मिलियन पांडुलिपियां है, जो शायद दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है। ये पांडुलिपियां तमाम विषयों, बनावट और सौंदर्यशास्त्र, लिपियों, भाषाओं, सुलेखों और चित्रों से जुड़ी हुई हैं।

भारत और मंगोलिया के बीच परस्पर ऐतिहासिक संबंध काफी प्राचीन रहे हैं। मंगोलिया में बौद्ध धर्म भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक राजदूतों द्वारा शुरुआती ईस्वी सदी के दौरान ले जाया गया था। इसका नतीजा यह हुआ कि आज, मंगोलियाई आबादी का एक बड़ा हिस्सा बौद्ध धर्म को मानने वाला है। भारत ने साल 1955 में मंगोलिया के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध शुरू किए थे और तभी से, दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ संबंध एक नई ऊंचाई तक पहुंच गए हैं।