(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या फ़र्क़ है भारत और अमेरिका के चुनाव आयोग में? (Indian vs American Election Commission)
भारत को हमेशा इस बात पर गर्व रहा है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। देश के इस गुरुर को बनाए रखने में सबसे अहम भूमिका रही है भारतीय निर्वाचन आयोग की।
अभी हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हुए, जिसमें अमेरिकी जनता ने जो बाइडेन को अमेरिका का अगला राष्ट्रपति तय किया है। मतदाताओं के हिसाब से भारत के मुकाबले काफी छोटा लोकतंत्र होने के बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया जटिलताओं और विवाद से अछूती नहीं रही।
डीएनएस में आज हम अमेरिकी और भारतीय निर्वाचन आयोग पर एक तुलनात्मक नजर डालेंगे और समझेंगे कि आखिर क्यों भारतीय निर्वाचन आयोग काबिले तारीफ़ है…….
भारत में निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो भारत के संविधान में बताये गए नियमों और क़ानूनों के मुताबिक भारत में चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है। इसे 25 जनवरी 1950 को स्थापित किया गया था। वर्तमान में, इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त शामिल हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त और उसकी सलाह पर अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की आयु (इनमें से जो भी पहले हो) तक होता है। इन सभी चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते मिलते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है।
निर्वाचन आयोग के कई प्रमुख काम होते हैं मसलन चुनाव की निगरानी, निर्देशन और आयोजन आदि। आयोग राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए हर चुनाव से पहले आदर्श आचार-संहिता जारी करता है ताकि लोकतंत्र की शोभा बनी रहे। यह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और राज्य विधानसभा के चुनाव करवाता है। इस प्रक्रिया में आयोग मतदाताओं की नामावली तैयार करने, राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण करने, इन पार्टियों का राज्य/राष्ट्रीय पार्टी के रूप में वर्गीकरण करने, सांसद/विधायक की अयोग्यता पर राष्ट्रपति/राज्यपाल को सलाह देने और चुनाव में गलत तरीकों का इस्तेमाल करने वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने जैसे महत्वपूर्ण काम करता है। इसमें चुनाव आयोग की कुछ अर्द्ध-न्यायिक जिम्मेदारियां भी हैं जैसे अनुच्छेद 103 के अंतर्गत राष्ट्रपति संसद के सदस्यों की अयोग्यताओं के संबंध में निर्वाचन आयोग से परामर्श करता है। कुल मिलाकर भारतीय निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है।
अब बात अमेरिकी चुनाव आयोग की। यहाँ एक दिलचस्प बात है कि अमेरिका में भारत की तरह चुनाव आयोग जैसी कोई संस्था ही नहीं है। अमेरिका में संघीय, राज्य और स्थानीय-सभी चुनाव सीधे व्यक्तिगत राज्यों की सत्तारूढ़ सरकारों द्वारा आयोजित किए जाते हैं। कई अमेरिकी राज्यों में, चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट पर होती है। इसी के चलते वहां हर राज्य के अपने अलग कानून हैं।
अमेरिका में सभी राज्यों में आबादी के अनुपात में कुल 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट विभाजित किए गए हैं। अमेरिका का पुरालेखपाल (अर्काविस्ट) प्रत्येक प्रांत के गवर्नर को पत्र भेजता है। इसमें इलेक्टोरल कॉलेज के लिए इलेक्टर्स चुनने की प्रक्रिया बताई जाती है। जिस राज्य में जिस दल को ज्यादा वोट मिलते हैं, उस राज्य के समस्त वोट उसी के मान लिए जाते हैं। हालांकि वोटों की गिनती में सभी जगह अलग-अलग समय लगता है।
इस वजह से वास्तविक मतगणना और परिणाम आने में कई बार हफ़्तों लग जाते हैं। इस एपिसोड में मैं अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया के डिटेल में नहीं जाना चाहूंगा क्योंकि इस बारे में हम अपने तमाम कार्यक्रमों में विस्तार से आपको पहले ही बता चुके हैं।
आइये जरा समझ लेते हैं कि आखिर क्यों भारतीय चुनाव आयोग काबिले तारीफ है। जहां भारत में करीब 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी है तो वहीँ अमेरिका में मात्र 33 करोड़ लोग रहते हैं। भारत में एकल मतदाता पहचान पत्र बनाया जाता है, जबकि अमेरिका में हर राज्य के अपने अलग-अलग चुनाव नियम है। इसकी वजह से वहां का कोई एकल वोटर आईडी नहीं बनता है। भारत में, ईवीएम के जरिए चुनाव कराए जाते हैं, जबकि अमेरिका में आज भी पेपर बैलट का इस्तेमाल होता है। इतना बड़ा देश होने के बावजूद भारत का चुनाव परिणाम 1 दिन में घोषित किया जाता है, वहीं अमेरिका के चुनाव नतीजे आने में हफ़्तों लग जाते हैं। ताज्जुब की बात यह है कि इतनी विशालता के बावजूद भारत का चुनाव अभी पिछले साल ही विवादविहीन तरीके से संपन्न हुआ।
जबकि अमेरिका में ऐसी खबरें आ रही हैं कि कुछ राजनेता चुनाव के बाद सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। इन तमाम बिंदुओं पर नजर डालने से पता लगता है कि दुनिया भारतीय निर्वाचन आयोग से काफी कुछ सीख सकती है।
वर्षों से चुनाव आयोग ने लोकतंत्र को मजबूत करने और चुनाव की निष्पक्षता बढ़ाने के लिए कई प्रशंसनीय चुनावी सुधार किए हैं। ये सुधार काफी पर्याप्त और सराहनीय हैं। इसके बावजूद, किसी भी व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) ने अपनी चौथी रिपोर्ट ‘शासन में नैतिकता’ में कहा है कि भारतीय निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति करने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक कॉलेजियम की व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही, न्यायालय ने भी माना है कि अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति निष्पक्ष और राजनीतिक रूप से तटस्थ रही है, परंतु फिर भी विधि में शून्यता को शीघ्र ही भरा जाना चाहिए।