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Blog / 01 Feb 2019

(Daily News Scan - DNS) महात्मा गांधी : मूल्य और विचारधारा (Gandhi : Values and Thought)

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(Daily News Scan - DNS) महात्मा गांधी : मूल्य और विचारधारा (Gandhi : Values and Thought)


मुख्य बिंदु:

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 71वीं पुण्यतिथि पर समूचा राष्ट्र उन्हें याद कर रहा है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके महात्मा गाँधी को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है। इस मौके पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज दाण्डी का दौरा भी किया। प्रधानमंत्री ने दाण्डी में, बापू की पुण्य तिथि पर राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक राष्ट्र को समर्पित किया। स्मारक में महात्मा गाँधी और ऐतिहासिक दाण्डी नमक यात्र के दौरान उनके साथ शामिल 80 सत्याग्रहियों की मूर्तियाँ हैं। स्मारक में, 1930 की नमक यात्रा की विभिन्न घटनाओं और कहानियों को चित्रित करने वाले 24 भित्तिचित्र भी हैं।

30 जनवरी, 1948 को महात्मा गाँधी को उस वक्त गोली मार दी गई, जब वो पूजा करने के लिए जा रहे थे। लेकिन इस घटना में गाँधी का सिर्फ शरीर मरा था और उनकी सोच हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गई। मोहन दास करमचन्द गाँधी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबन्दर जिले में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ। गाँधी जी के जीवन पर उनकी माता पुतलीबाई का बहुत प्रभाव था। सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता और धर्म जैसी विरासत उनके माँ की देन थी। साल 1883 में कस्तूरबा माखनजी उनकी जीवन संगिनी बनीं और उसके बाद 1888 में पढ़ाई के लिए वे इंग्लैण्ड चले गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटकर गाँधी जी ने बम्बई में वकालत शुरू किया लेकिन उनकी वकालत चल नहीं पाई। साल 1893 में दक्षिण अफ्रीका में कार्यरत एक भारतीय फर्म के न्यौते पर वे नटाल चले गए। वहां पर चल रहे ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों और भेदभाव ने उन्हें संघर्ष करने के लिए मजबूर कर दिया और वहाँ से उनके जन नेता बनने की यात्र शुरू होती है। 1915 में वे भारत वापस लौट आए और फिर भारतीय राजनीति को मिलती है एक नई दिशा। गाँधीजी ने भारत में अपने सत्य और अहिंसा के हथियार का पहला प्रयोग 1917 में चम्पारण में और 1918 में अहमदाबाद और खेड़ा में किया। इस तरह इस स्थानीय मुद्दों को शामिल करने के कारण कांग्रेसी जैसी संस्था का जुड़ाव आम जन से हुआ। 1922 में असहयोग आन्दोलन वापस लेने के बाद गाँधी जी खादी सत्याग्रह, अस्पृश्यता और साम्प्रदायिकता से छुटकारा पाने आदि पर प्रयास प्रारम्भ किया।

साल 1930 में गाँधी जी ने दाण्डी मार्च समेत सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। 1930-1932 में गाँधी जी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ उन्होंने भारत के आज़ादी की जबरदस्त वकालत की। साल 1942 में गाँधी जी द्वारा ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का आह्वान किया गया और इसने अंग्रेजी सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया। स्वतंत्रता आन्दोलन को जन आन्दोलन बनाने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो गाँधी जी ही हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका तो थी ही साथ ही जीवन के प्रति भी उनका नज़रिया काफी बेहतर था। वे ग्राम उद्योग, ग्राम स्वराज और स्वच्छता के बड़े हिमायती थे। वे कहते थे, ‘‘प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले।’’ गाँधी को लेकर लोग अपनी-अपनी नजर से उन्हें देखते हैं। कोई उन्हें राजनेता, कोई विचारक, कोई समाजसेवी, कोई सन्त तो कोई लेखक-पत्रकार मानता है और वे हर स्वरूप में फिट बैठते हैं। गाँधी के जाने के 71 साल बाद आज भी उनके विचार न केवल नीति निर्माण बल्कि जीवन अलग-अलग क्षेत्रों में मार्गदर्शन का काम कर रहे हैं। फिर वो चाहे स्वच्छता हो या अन्त्योदय की धारणा।