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Blog / 15 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) फ्रेंड्स ऑफ़ पुलिस (Friends of Police)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) फ्रेंड्स ऑफ़ पुलिस (Friends of Police)



बीते 19 जून को तमिलनाडु के तूतीकोरिन में पुलिस ने दो व्यापारियों - पी जयराज और उनके बेटे जे फेनिक्स को हिरासत में ले लिया था. इन दोनों पर आरोप था कि उन्होंने लॉकडाउन की समय सीमा के बाद भी अपनी दुकान खोल रखी थी. उसके 4 दिन बाद दोनों आरोपियों की पुलिस हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. इसके बाद, वहां के लोगों का आक्रोश भड़क उठा और पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गया. मामले की जांच के दौरान इस घटना में कुछ 'फ्रेंड्स ऑफ पुलिस' (FoP) स्वयंसेवकों की भूमिका भी पाई गई। इस घटना के बाद तमिलनाडु में ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ की सेवाओं को अगली सूचना तक निलंबित कर दिया गया है।

डीएनएस में आज हम ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ के बारे में जानेंगे और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ दूसरे महत्वपूर्ण पक्षों को भी……...

दरअसल तमिलनाडु पुलिस ने दोनों व्यापारियों को इसलिए गिरफ्तार किया था कि उन्होंने COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी दुकानों को निर्धारित समय सीमा से ज्यादा वक्त के लिए खोल रखा था। हिरासत में लेने के बाद पुलिस वालों ने दोनों लोगों को कथित तौर पर बेरहमी से पीटा, जिससे उन दोनों को गंभीर चोटें आई. इसके बाद, उन दोनों व्यापारियों को पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया और थोड़ी देर बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। जब इस मामले की जांच की जाने लगी तो इस दौरान कुछ 'फ्रेंड्स ऑफ पुलिस' स्वयंसेवकों की भूमिका भी सामने आई. बता दें कि 'फ्रेंड्स ऑफ पुलिस' रोजमर्रा के कामों में पुलिस अधिकारियों की मदद करने का काम करते हैं।

फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) की शुरुआत साल 1993 में तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले से हुई थी। यह एक सामुदायिक पुलिसिंग पहल और एक संयुक्त सरकारी संगठन है, जिसका मकसद पुलिस और जनता को करीब लाना है। मौजूदा वक्त में, पूरे तमिलनाडु के सभी पुलिस थानों में करीब 4000 सक्रिय FoP स्वयंसेवी सदस्य हैं। ये सदस्य राज्य के आम लोगों में अपराध जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं. साथ ही, राज्य पुलिस प्रशासन को अपराधों की रोकथाम में सक्षम बनाते हैं। इसके अलावा, FoP स्वयंसेवी सदस्य पुलिस के कामों में निष्पक्षता, पारदर्शिता और तटस्थता लाने का भी प्रयास करते हैं। इस तरह, ये सदस्य पुलिस में जनता के खोए हुए विश्वास को बहाल करने में मदद करते हैं।

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सामुदायिक पुलिसिंग के रूप में ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) का गठन एक बहुत ही अच्छी पहल है। मौजूदा वक्त में, जिस तरह से पुलिस की साख गिर रही है. ऐसे में, आम जनता के बीच पुलिस की छवि सुधारने और राज्य के पुलिस बल को मज़बूत करने के लिए यह पहल काफी उपयोगी साबित हो रही है। पुलिस के इस कदम का इस्तेमाल पुलिस और जनता के बीच नजदीकी बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

हालांकि इससे अलग कुछ दूसरे विशेषज्ञों का मानना है कि ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) स्वयंसेवकों का वह उपयोग नहीं किया जा रहा है, जिस मकसद से इसे बनाया गया था. राज्य के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर पुलिस अधिकारी FOP स्वयंसेवकों को महज एक सहायक के तौर पर देखते हैं। इन इलाकों में, FOP स्वयंसेवक केवल चाय या भोजन खरीदने, गाड़ियों की जाँच में मदद करने, ज़ब्त की गई गाड़ियों को थाने तक ले जाने और स्थानीय लोगों को अवैध रूप से हिरासत में लेने जैसे ही काम करते हैं. इन सदस्यों की मजबूरी है कि वे अपने अधिकारियों के आदेश मानने के लिए बाध्य हैं।

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, पुलिस के कामों में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है। इसकी मदद से एक ऐसी व्यवस्था विकसित की जा सकती है जिसमें, आम नागरिक जनता की सुरक्षा में भागीदारी निभा सकते हैं। सामुदायिक पुलिसिंग से अपराध में कमी लाई जा सकती है और अपराधियों की जड़ तक पहुंचा जा सकता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग, मानव तस्करी और अन्य संदिग्ध गतिविधियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कार्यवाही करना भी अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। गौरतलब है कि भारत के कई दूसरे राज्यों में भी सामुदायिक पुलिस व्यवस्था विकसित करने की कोशिश की गई है मसलन असम में ‘प्रहरी’ (Prahari) और बंगलुरु सिटी पुलिस की ‘स्पंदन’ (Spandana)।

कुल मिलाकर सामुदायिक पुलिसिंग निश्चित तौर पर एक सराहनीय कदम हो सकता है, लेकिन यह तभी कारगर साबित होगा जब इसका असल मकसद पूरा हो.