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Blog / 20 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) भूकंप: अब आसान होगी भविष्यवाणी (Earthquake Prediction will be Easier?)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) भूकंप: अब आसान होगी भविष्यवाणी (Earthquake Prediction will be Easier?)



भूकंप जिससे आये दिन न जाने कितने लोगों को अपनी जानें गवानी पड़ती है , हज़ारों लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ता है और न जाने दुनिया में कितने देश भूकंप की वजह से आर्थिक संकट का सामना करने को मज़बूर हो जाते हैं। सैकड़ों सालों से कितने ही वैज्ञानिक और शोध कर्ता भूकंप की सटीक भविष्यवाणी करने की जद्दोजहद में लगे हैं लेकिन कोई भी अभी तक इसके सटीक अनुमान लगाने में सफल नहीं हो पाया है। सटीक अनुमान या भविष्यवाणी के अभाव में ज़िन्दगियों को बचाना एक चुनौती से कम नहीं है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 30 सालों में दुनिया के सबसे बड़ी आपदाओं में दो आपदाएं भूकंप थी। इनमे से 2004 में आये भूकंप और सुनामी की वजह से तकरीबन 2 लाख 20 हज़ार लोगों ने अपनी जाने गवाईं थी। इसके अलावा साल 2010 में हैती में आये भूकंप की वजह से तकरीबन 1 लाख 60 हज़ार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

संयुक्त राष्ट्र भूगर्भीय सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरी दुनिया में भूकंप के चलते साल 1990 और 2019 के दरमियान 9 लाख 23 हज़ार लोग मारे गए हैं

एडिनबर्ग स्थित हेरियट वाट विश्वविद्यालय, लिवरपूल विश्वविद्यालय और युट्रेच विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक नए समीकरण का विकास किया है जिसने भूकंप की भविष्यवाणियों पर लोगों का ध्यान फिर से केंद्रित कर दिया है

आम तौर पर भूकंप चट्टानों के बीच दरारों या भ्रंशों की वजह से पैदा होता है। ये दरारें चंद मिलीमीटर से लेकर हज़ारों किलोमीटर की हो सकती हैं

भूकंप के दौरान जब पृथ्वी के दो बड़े टुकड़े या हिस्से एक दुसरे के ऊपर सरकते हैं तो काफी कमवक़्त में इसकी वजह से भूकम्पीय तरंगे या सिज़्मिक तरंगे पैदा होती हैं। ये भूकम्पीय या सिस्मिक तरंगे जब धरती की सतह पर आती हैं तो इनकी वज़्जह से धरती पर काफी नुक्सान होता है

वैज्ञानिकों ने इन फाल्ट या भ्रंशों को प्रयोगशालाओं में पैदा करके भूकंप के दौरान होने वाली घटनाओं का अध्ययन किया

इस प्रयोग में हालांकि काफी दिक्कतें आयी जिसकी वजह इन भ्रंशों या फाल्ट को पूरे सही तरीके से न विक्सित कर पाना है। इसकी वजह से भूकंप की सटीक भविष्यवाणी संभव नहीं है।

शोधकर्त्ताओं ने अपनी खोज में कुछ नयी बातों का खुलासा किया। शोधकर्ताओं ने दावा किया की कि कुछ ख़ास तरह की चट्टाने भूकंप के दौरान अहम् भूमिका अदा करती हैं। इन चट्टानों को सामूहिक तौर पर फीलोसिलीकेटस (Phyllosilicates) कहा जाता है। फीलोसिलीकेटस आम तौर पर भ्रंशों के पास पाया जाने वाला एक तरह का खनिज होता है।

चट्टानों के बीच पाया जाने वाला घर्षण बल चट्टानों के एक दुसरे के ऊपर फिसलने में बड़ी भूमिका अदा करता है। इस घर्षण बल को वैज्ञानिक गणितीय माध्यम से निकाल सकते हैं

इस प्रयोग के दौरान शोधकर्त्ताओं ने इसी फीलोसिलीकेटस (Phyllosilicates) की घर्षण शक्ति या फ्रिक्शनल स्ट्रेंथ की भविष्यवाणी करने की कोशिश की।

इसके बाद शोधकर्त्ताओं ने कुछ गणितीय समीकरणों को इज़ाद किया जिसमे ये बताया गया कि आर्द्रता और फाॅॅ‍ल्ट अथवा भ्रंश (Fault) की गति की दर जैसी स्थितियों में बदलाव का फीलोसिलीकेटस की घर्षण शक्ति पर क्या असर पड़ता है।

इसके ज़रिये शोधकर्त्ताओं के लिये बुनियादी चीज़ों जैसे- भूकंप आदि में फाॅॅ‍ल्ट अथवा भ्रंश (Fault) की गति को समझना काफी आसान हो गया है।

आम तौर पर भूकंप का मतलब धरती का हिलना या कम्पन होता है । भूकंप की घटना वैसे तो प्राकृतिक घटना है,लेकिन कभी कभी मानवीय कारणों से भी धरती पर भूकंप आते हैं। आम तौर पर भूकंप के दौरान पृथ्वी के भीतर से ऊर्जा निकलती है। इस ऊर्जा की वजह से तरंगे पैदा होती हैं जो हर दिशा में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।

भूपर्पटी या धरती की क्रस्ट की चट्टानों में में कुछ गहरी दरारें पायी जाती हैं। इन दरारों को भ्रंश या फाल्ट कहा जाता है। ज़्यादातर ऊर्जा इन भ्रंश के किनारे से ही पैदा होती है। इन भ्रंश के दोनों ओर चट्टानें एक दुसरे के विपरीत दिशा में गति करती हैं।

चट्टानों के एक दुसरे के ऊपर गुजरने की वजह से घर्षण पैदा होता है जिसकी वजह से धरती के भीतर ऊर्जा पैदा होती है यही ऊर्जा जब धरती के भीतर से बहार की ओर चलती है तो धरती पर भूकंप आता है भू-पर्पटी के नीचे वह स्थान, जहाँ कंपन शुरू होता है, उसे भूकंप का उद्गम केंद्र या फोकस कहते है, जबकि उद्गम केंद्र या फोकस के भूसतह पर उसके निकटम स्थानों को अधिकेंद्र या एपीसेंटर कहते हैं।

भूकंप से निकलने वाली तरंगों को भूकम्पीय तरंगे या सीस्मिक तरंगे कहा जाता है इन तरंगों को मापने के लिए वैज्ञानिक सीस्मोमीटर नामक उपकरण का इस्तेमाल करते हैं

वैज्ञानिक सीस्मोमीटर में दर्ज की गई जानकारी के ज़रिये भूकंप के समय, स्थान और तीव्रता के बारे में बताते हैं