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Blog / 29 Sep 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) न्यूनतम समर्थन मूल्य कैसे तय होता है? (Basis of Minimum Support Price : Way of Calculation)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) न्यूनतम समर्थन मूल्य कैसे तय होता है? (Basis of Minimum Support Price : Way of Calculation)



केंद्र सरकार ने वर्ष 2021-22 के रबी सीजन के 6 रबी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है…...गोरतलब है की भारत में रबी फसलें उन कृषि फसलों को कहा जाता है जिन्हे सर्दी में बोया जाता है और बसंत में काट लिया जाता है..रबी की फसलों में गेंहू ,जौ, सरसों अदि की फसलें आती हैं...

गेंहू ,जौ ,चना ,मसूर ,सूरजमुखी ,अलसी और सरसों की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया गया हैं....हालांकि साल 2020 -21 के मुकाबले बढाई गयी कीमतों के मुकाबले ये बढ़ोत्तरी कम मानी जा रही है। गेंहू के न्यूनतम समर्थन मूल्य में महज़ 6 फीसदी की बढ़त की गयी जो पिछले 11 सालों में की गयी सबसे कम बढ़ोत्तरी है।

एम.एस.पी में की गयी वृद्धि इस सिद्धांत पर आधारित है की पूरे भारत में उत्पादन की लागत का डेढ़ गुना एम एस पी होनी चाहिए जैसा की संघीय बजट 2018 -19 में घोषणा की गयी थी...एम एस पी में बढ़ोत्तरी का एलान ऐसे वक़्त पर किया गया है जब पूरे देश के किसान सड़कों पर है।

नए कृषि सुधार से दिक्कतें

किसानों ने हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पारित किये गए तीन विधेयकों पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया इन तीन बिलों में पहला है किसानों से संबंधित कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा प्रदान करना) विधेयक, 2020, दूसरा है कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक और तीसरा है आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 संक्षेप में समझें तो इन
विधेयकों का मकसद कृषि व्यापार में सरकार का दखल ख़त्म करके ऐसे व्यापार क्षेत्रों का गठन करना है जो बिचौलियों से मुक्त हों और जिन पर किसी भी तरह का सरकारी कर न लगे...

किसानो की माने नयी व्यवस्था में निजी कंपनियों को ज़्यादा फायदा मिलेगा क्यंकि कृषि उत्पादों के दाम बाज़ार के ज़रिये तय किये जाएंगे और सरकारी दखल ख़त्म होने से कम्पनिया किसानों को दाम कम करने के लिए मज़बूर करेंगी।

कई ऐसी फसलें जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित खरीद का वज़ूद नहीं है वहाँ किसानों की उपज का दाम लगातार गिरा है। सरकारी दखल के बगैर कई नकदी फसलें जैसे कपास के दामों में भी भारी गिरावट देखने को मिली है।

खेती में लागत दाम बढ़ने के बावजूद किसानों को बाज़ार से अपनी उपज के अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं। किसानों का कहना है की सरकार का दखल ख़त्म होना और बाज़ार का कीमतें निर्धारित करना किसी भी तरह किसानों के हित में नहीं है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य

न्यूनतम समर्थन मूल्य वो मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है। केंद्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP-Commission for Agricultural Costs and Prices) की सिफारिश पर कुछ फसलों के बुवाई सत्र से पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है. इससे किसानों को यह सुनिश्चित किया जाता है कि बाजार में उनकी फसल की कीमतें गिरने के बावजूद सरकार उन्हें तय मूल्य देगी.

इसके जरिए सरकार उनका नुकसान कम करने की कोश‍िश करती है.हालांकि, सभी सरकारें किसानों को इसका लाभ नहीं देतीं. इस वक्त बिहार और मध्य प्रदेश में सबसे बुरा हाल है, जहां किसानों को एमएसपी नहीं मिल पा रहा है. वैसे भी शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि महज 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है. यानी 94 फीसदी किसान मार्केट पर डिपेंड हैं.

एमएसपी तय करने का आधार

कृषि लागत और मूल्य आयोग न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करता है वह कुछ बातों को ध्यान में रखकर दाम तय किया जाता है...जैसे उत्पाद की लागत क्या है, फसल में लगने वाली चीजों के दाम में कितना बदलाव आया है, बाजार में मौजूदा कीमतों का रुख, मांग और आपूर्ति की स्थिति, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्थितियां कैसी है,

फसल लागत नि‍कालने के फार्मूले,

  • ए-2: कि‍सान की ओर से किया गया सभी तरह का भुगतान चाहे वो कैश में हो या कि‍सी वस्‍तु की शक्‍ल में, बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई का खर्च जोड़ा जाता है.
  • ए2+ एफएल: इसमें ए2 के अलावा परि‍वार के सदस्‍यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना भी जोड़ा जाता है.
  • सी-2 (Comprehensive Cost): यह लागत ए2+एफएल के ऊपर होती है. लागत जानने का यह फार्मूला किसानों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इसमें उस जमीन की कीमत (इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर कॉस्‍ट) भी जोड़ी जाती है जिसमें फसल उगाई गई. इसमें जमीन का कि‍राया व जमीन तथा खेतीबाड़ी के काम में लगी स्‍थायी पूंजी पर ब्‍याज को भी शामि‍ल कि‍या जाता है. इसमें कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है.

गोरतलब है की भारत में खाद्यान्नों, दलहानी और तिलहनी फसलों और नकदी फसलों की बुआई के मुख्यतः तीन सीजन होते हैं, खरीफ, रबी और ग्रीष्म...इसमें रबी सीजन सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में कुल कृषि उत्पादन में आधी हिस्सेदारी रबी सीजन की होती है...