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Blog / 25 Mar 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) 23 मार्च - शहीद दिवस (March 23 - Martyr's Day)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) 23 मार्च - शहीद दिवस (March 23 - Martyr's Day)



भारत में शहीद दिवस हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है । इसी दिन बर्तानिया हुकूमत ने भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी के फंदे पर लटका दिया था । भगत सिंह को भारत की आज़ादी के बेख़ौफ़ और बहादुर क्रांतिकारी के तौर पर जाना जाता है । भगत सिंह को महज़ 23 साल की उम्र में ही फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था । इसके अलावा सुखदेव की उम्र फांसी के वक़्त 23 साल और राजगुरु की उम्र महज़ 22 साल की थी।

आज के DNS में हम जानेंगे हिन्दुस्तान के इन सपूतों की शहादत के बारे में और साथ ही ज़िक्र करेंगे हिंदुस्तान की आज़ादी में क्रांतिकारी आंदोलन की अहमियत का

Coronavirus के संक्रमण के चलते पूरे देश में लॉकडाउन के हालात हैं जिसकी वजह से हर जगह सन्नाटा पसर हुआ है । किसी सार्वजनिक आयोजन का नामोनिशान नहीं है लेकिन लोगों के ज़ेहन में आज भी 23 मार्च 1931 की तारीख आज भी ताज़ा है । ये वही तारीख है जिस रोज़ भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था । अँगरेज़ सरकार ने इन शहीदों की देशभक्ति को उस वक़्त देश द्रोह कहा था । हालांकि भारत की आज़ादी के बाद इस दिन को हर साल शहीद दिवस के तौर पर मनाया जाता है । हज़ारों लोग सोशल मीडिया के ज़रिये इन वीरों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन शहीदों का ट्वीट कर नमन किया है।

ऐसा माना जाता है कि इन तीनों की फांसी के लिए 24 मार्च की सुबह का वक़्त तय किया गया था लेकिन किसी बड़े जनाक्रोश के दर की वजह से अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च की रात को ही इन क्रांतिकारियों को फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया । इसके बाद इन तीनों शहीदों के शवों को भी रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे जला दिया गया था।

भगत सिंह 27 सितम्बर 1907 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत में लायलपुर में किशन सिंह के घर जन्मे थे । भगत सिंह का नाता उस परिवार से था जिसका आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय योगदान रहा था । भगत सिंह के कुछ पूर्वज महाराज रणजीत सिंह की फौज में भी सिपाही रह चुके थे । ऐसा कहा जाता है की साल 1922 तक भगत सिंह गांधी जी के अहिंसा के रास्ते पर चल रहे थे। भगत सिंह ने असहयोग आंदोलन में ब्रिटिश सरकार की स्कूल की किताबें भी जला दीं थी और लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया था।

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड और 1921 में ननकाना साहिब में अकालियों पर हुए हमले ने उन्हें झकझोर दिया था । 1922 में चौरी चौरा काण्ड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया ।इससे भगत सिंह का अहिंसा से भरोसा उठ गया और उन्होंने गांधी वादी नज़रिये से किनारा कर लिया ।इसके बाद भगत सिंह ने खुद को क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ लिया और आज़ादी पाने के लिए हिंसा को सही ठहराया।

मार्च 1926 में भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा नाम के एक संगठन की नींव रखी। इस संगठन का मकसद अंग्रेज़ी राज से भारत की आज़ादी था । 1927 में भगत सिंह को क्रांतिकारी गतिविधियों केचलते गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर 1926 में हुए लाहौर बम काण्ड में शामिल होने का आरोप लगाया गया । जेल में कुछ हफ्ते बिताने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया ।इसके बाद उन्होंने अमृतसर के कई अखबारों में विद्रोही या रणजीत के नाम से काम किया।

सन 1928 में नै दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला में भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद , सुखदेव थापर और जोगेश चंद्र चटर्जी के साथ मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना की । इस संस्था को पहले हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के नाम से जाना जाता था जिसके लिखित संविधान और रेवोलुशनरी नाम के दस्तावेज़ को 1925 के काकोरी काण्ड में बतौर सबूत पेश किया गया था।

अक्टूबर 1928 ब्रिटिश सरकार के बनाये गए साइमन कमीशन का विरोध चल रहा था ।इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे थे मशहूर स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय । पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट के आदेश पर इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज का आदेश दिया गया ।इस लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आयी जिसकी वजह से 17 नवंबर को लाला लाजपत राय की मौत हो गयी । लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने सुखदेव राजगुरु और चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर स्कॉट को मारने की योजना बनाये लेकिन गलती से स्कॉट के सहयोगी सॉन्डर्स की हत्या हो गयी।

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंका । ये बम असेंबली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में फेंका गया था।

भगत सिंह ने ये योजना फ्रांस के क्रांतिकारी अगस्त वैलंट से प्रभावित होकर बनायी थी जिन्होंने साल 1893 में इसी तरह चैम्बर ऑफ़ डेप्युटिस पर बम फेंका था । हालांकि इस बम का मकसद सिर्फ ब्रिटिश सरकार को डराना था फिर भी इस हमले में कुछ लोग घायल हो गए । बम फेकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में पर्चे फेंके और इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाए ।ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि ब्रिटिश सरकार उन्हें हिरासत में ले सके।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर मुकद्दमा चला और दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाये गयी । कुछ दिन बाद पुलिस सुपरिटेंडेंट की हत्या का मामला फिर खुला और भगत सिंह को दिल्ली जेल से मियांवाली भेज दिया गया । यहाँ भगत सिंह ने अपनी बाकी साथियों के साथ जेल में असमानता और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठायी और बेहतर खाना , किताबें और अखबार की मांग की और भूख हड़ताल पर बैठ गए ।इन मांगों के पीछे भगत सिंह की दलील थी की वे राजनीतिक क़ैदी हैं न की अपराधी । ये भूख हड़ताल धीरे धीरे पूरे देश में मशहूर हुई और जवाहर लाल नेहरू इन क्रांतिकारियों से मिलने जेल गए । 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गयी।

आज के दौर में जब हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ी राज ख़त्म हो गया है तब भी भगत सिंह के विचार लोगों के ज़ेहन में ज़िंदा हैं । भगत सिंह का कहना था की भारत की आज़ादी सिर्फ अंग्रेज़ों से ही नहीं होनी चाहिए बल्कि असमानता अन्याय भ्रष्टाचार और शोषण से भी भारत आज़ाद होगा तभी सही मायने में भारत को आज़ादी हासिल होगी । आज के दिन हम सभी नौजवानों को भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत से सबक लेना चाहिए और ये कसम खानी चाहिए की भारत को इन सभी ज़ंजीरों से आज़ादी दिलाएंगे तभी सही मायनों में इंक़लाब आएगा।