होम > Daily-mcqs

Daily-mcqs 11 Jan 2021

(Video) डेली करेंट अफेयर्स (Daily Current Affairs) : डिजीज एक्स (Disease X) - 11 January 2021 11 Jan 2021

image
(Video) डेली करेंट अफेयर्स (Daily Current Affairs) : डिजीज एक्स (Disease X) - 11 January 2021


(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 11 January 2021



डिजीज एक्स और जूनोटिक बीमारी मानवीय सभ्यता पर संकट

  • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य मध्य अफ्रीका महाद्वीप में स्थित देश है। पड़ोसी देश कांगो गणराज्य से इसे अलग करने के लिए इस देश को डी आर कांगो या कांगो-किन्शासा के नाम से पुकारा जाता है।
  • कांगो नाम कांगो नदी के नाम पर पड़ा है, जिसे जायर नदी के नाम से भी जाना जाता है। क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से यह अफ्रीका महाद्वीप का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
  • इस देश से विषुवत रेखा गुजरती है, जिसके कारण यहां विषुवत रेखीय जलवायु पाई जाती है। इस जलवायु में अधिक तापमान, अधिक वर्षा के कारण सघन वस्पतियों का विकास होता है और पौधों के साथ-साथ जंतुओं की भी विविध प्रजातियों पाई जाती हैं।
  • इस जलवायु में हमेशा उच्च तापमान एवं उच्च आर्द्रता के कारण कई प्रकार के कीडों, वायरस, बैक्टीरिया के विकास की संभावना ज्यादा होती है।
  • यहां मानव-पशु संपर्क ज्यादा होने के कारण जूनोटिक बीमारियों की संभावना ज्यादा रहती है। वर्ष 1976 में कांगो की सहायक नदी इबोला के बेसिन में एक घातक वायरस पाया गया था, जिसे इस नदी के नाम पर इबोला वायरस नाम दिया गया था।
  • इबोला में मृत्युदर 70-90 फीसदी होती है, जिससे यह बीमारी फैलने में एक बड़ी आबादी को समाप्त कर सकती है।
  • मनुष्यों में इसका संक्रमित जानवरों जैसे चमगादड़, चिंपैंजी, हिरण आदि के संपर्क में आने से होता है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के रक्त, द्रव, संक्रमित शव को छूने से होता है।
  • इससे संक्रमित होने पर अचानक बुखार, कमजोरी, मांस-पेशियो में दर्द, गले में खराश, उल्टी, डायरिया एवं आंतरिक तथा बाह्य रक्तस्राव होता है, जिससे बहुत जल्दी मृत्यु हो जाती है।
  • इबोला वायरस न सिर्फ घातक है बाल्कि इसके कई स्ट्रेन हैं जिसके कारण इसके फैलने का खतरा भी ज्यादा है। अभी तक 5 स्ट्रेन का पता लगाया जा चुका है।
  • इसके लिए अभी जिसे वैक्सीन का निर्माण किया गया है उसका नाम rVSV-ZEBOV या V920 है जो कि एक स्ट्रेन पर ही पूर्ण कारगर है, न कि सभी स्ट्रेन पर।
  • वर्ष 2014 में पश्चिम अफ्रीका में इसका एक बड़ा आउटब्रेक देखने को मिला था। इसमें लगभग 28000 लोग संक्रमित हुए थे, जिसमें से लगभग 11000 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • इबोला वायरस का पता लगाने में एक महत्वपूर्ण नाम डॉक्टर जीन जैक्स मुएंब तामफम (Jean-Jacques Muyembe Tamfum) का है। इबोला वायरस के अलावा कई बीमरियों के विषय में यह अपनी विशेषज्ञता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।
  • यह इस समय किशांसा में National Institute of Biomedical Reserch (INRB) को संचालित करते हैं। यहां यह जूनोटिक बीमारियों पर गहन रिसर्च करते हैं। और दुनिया को बीमारियों के आउटब्रेक से बचाने में मदद करते हैं।
  • यह इंस्ट्रीट्यूट बीमारियों के आउटब्रेक को रोकने के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी से पता लगाया जा सकता है कि इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकी संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन से भी सपोर्ट मिलता है और इस संस्था के अध्ययनों पर सकारात्मक रूख अपनाया जाता है। इस इंस्टीट्यूट का काम ही यही है कि यदि किसी नई बीमारी या उसके आउटब्रेक के विषय में दुनिया को आगाह करना है।
  • मुएंबे तामफम ने दुनिया को आगाह किया है कि हम एक नई महामारी डिजीज एक्स के मुहाने पर खड़े हैं। डिजीज एक्स (Unexpected) भविष्य में आ सकने वाली महामारी है अर्थात यह अभी हाइपोथेटिकल है लेकिन वायरस के बदलते स्वरूप और जूनोटिक बीमारियों के तेजी से प्रसार के कारण यह जल्द हमारे सामने हो सकती है।
  • मुएंबे तामफम का मानना है कि यह महामारी कोरोना से कई गुना ज्यादा घातक होगी क्योंकि इसका प्रसार कोरोना की तरह होगा और मृत्यु दर इबोला वायरस की तरह। स्वभाविक है इस प्रकार की स्थिति में मानवीय सभ्यता पर ही संकट उत्पन्न हो जायेगा।
  • वैश्विक मुक्त और निर्बाध आवागमन के कारण यह बीमारी तेजी से वैश्विक रूप धारण कर लेगी। दरअसल इस प्रकार की बीमारी के लक्षण कई बार एक से दो हफ्रते बाद दिखाई देते हैं और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और बीमारी का प्रसार कई देशों में हो चुका होता है।
  • हाल ही में यहां एक महिला Haemorrhagic fever से पीडित थी, जिसके अंदर इबोला, कोरोना अन्य कोई वायरस नहीं पाया गया। यह एक नयी बीमारी के लक्षण थे जिसके कारण यह खबरें सामने आईं कि यह डिजीज एक्स का प्रारंभ हो सकता है।
  • यह संस्थान इस पर नजर रखे हुए है और कोई नई बीमारी का पता चलने पर अपडेट करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • जुनोटिक रोग अभी और आएंगे !
  • पशुओं के माध्यम से मनुष्यों में फैलने वाले रोग को जूनोसिस या जूनोटिक रोग कहा जाता है|
  • जूनोटिक संक्रमण मनुष्यों में जानवरों के अलावा बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के माध्यम से फैलता है|
  • मलेरिया, इबोला, HIV- एडस, रेबीज, COVID-19 आदि जूनोटिक संक्रमण के कारण फैलने वाले रोग हैं !
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2018 में 10 रोगों की एक सूची जारी की थी, जो महामारी पैदा कर सकते हैं|इस सूची में जीका, इबोला और सीवियर एक्युट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स कोरोना वायरस जनित) जैसे वायरस के अलावा एक अज्ञात बीमारी ( एक्स डिजीज) का भी जिक्र था|
  • 2011- 2018 के बीच, 172 देशों में 1483 महामारी की घटनाएं सामने आई इसमें से दो तिहाई बीमारियां जूनोटिक थी|
  • मुएंबे तामफम WHO कि उस टीम का हिस्सा थे जिसने 10 उन बीमारियों की सूची बनाई थी जो महामारी में परिवर्तित हो सकती हैं। इस टीम ने अनुमान लगाया था कि डिजीज एक्स जानवरों से उत्पन्न होने वाली एक वायरल डिजीज होगी और ऐसी जगह पर उभरेगी जहां आर्थिक विकास ने लोगों और वन्यजीवों के बीच की दूरी को खत्म कर दिया है|
  • वर्ष 2018 में एक प्रोजेक्ट ( ग्लोबल विरोम प्रोजेक्ट) लांच किया गया था, जिसके तहत अगले 10 वर्षों में उन सभी स्थानों को मिलाकर एक ग्लोबल एटलस विकसित करने की बात की गई है, जहां से प्राकृतिक जूनोटिक वायरस पाए जाने की संभावना है|
  • आज वैज्ञानिकों के पास मनुष्यों को संक्रमित कर सकने वाले सिर्फ 260 वायरस की जानकारी है जो जूनोटिक वायरस की संख्या का महज 0.1% ही है अर्थात हम आज भी लगभग 99.9% संभावित जूनोटिक वायरस में अनभिज्ञ हैं|
  • आज जूनोटिक बीमारी का प्रभाव कितना ज्यादा है और यह कितना बढ़ चुका है यह इससे समझा जा सकता है कि केवल निम्न मध्यम आय वाले देशों में हर साल 10 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु जूनोटिक रोगों के कारण हो जाती है|
  • हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में ना सिर्फ जूनोटिक बीमारियों की प्रकृति एवं प्रभाव पर चर्चा की गई है बल्कि यह भी कहा गया है कि यदि इसे रोकने का प्रयास नहीं किया गया तो COVID-19 जैसी अन्य महामारीयां सकती हैं|

इस रिपोर्ट में हाल के समय में बढ़ते जूनोटिक रोगों के पीछे सात कारण बताए गए हैं-

  1. प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर प्रयोग और इसके वजह से प्रकृति में हस्तक्षेप|
  2. प्राकृतिक क्षेत्र में अति प्रवेश और वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग और दोहन|
  3. हाल के समय में पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग|
  4. गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि|
  5. मात्रा और परिवहन
  6. खाद आपूर्ति श्रंखला में बदलाव
  7. जलवायु परिवर्तन संकट
  • वर्षा वनों में एक बड़ी आबादी अफ्रीका के साथ-साथ विश्व के अन्य भागों में रहती है, जहां मानव पशु संपर्क तेजी से बढ़ रहा है जिससे संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है|
  • इस रिपोर्ट से अलग पर्यावरण जानकारों का मानना है कि जूनोटिक रोगों का तेजी से फैलना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है बल्कि जिस तरह से मनुष्य ने प्रकृति के हर चीज पर अपना अधिकार जमाया है और इस प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है उससे यह होना ही था|
  • पर्यावरण जानकारों का मानना है जब हम दूसरे जीवो के संपर्क में आएंगे तो उनकी बीमारियां भी हम तक आएंगी|
  • इन्हीं तथ्यों को देखते हुए इस रिपोर्ट में 10 ऐसे तरीकों के विषय में बताया गया है जो भविष्य में जूनोटिक संक्रमण को रोकने में सहायक हो सकते हैं|
  • पशु जनित बीमारियों या जूनोटिक संक्रमण पर अध्ययन और खोज को बढ़ाना|
  • पशुजनित बीमारियों की निगरानी और नियामक तरीकों को मजबूत करना|
  • जैव-सुरक्षा/जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देना तथा पशुपालन से संबन्धित बीमारियों का अध्ययन करना !
  • कृषि और वन्य जीव के अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए भू-दृश्य का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना|
  • भूमि उपयोग, सतत विकास योजना आदि के कार्यान्वयन तथा निगरानी के लिए एक बेहतर/प्रभावी दृष्टिकोण का विकास !
  • सभी देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करना|
  • खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए ऐसे वैकल्पिक उपायों को विकसित करना जिससे भू-स्वरूप तथा जैव विविधता को कोई नुकसान ना हो|
  • बीमारियों के संदर्भ में लागत मुनाफा विश्लेषण को बेहतर बनाना|
  • पशु जनित बीमारियों के संदर्भ में जागरूकता बढ़ाने पर बल देना|
  • एक स्वास्थ्य पहल (One Health Initiative) पर बहू विषयक/ अंतरविषयक तरीकों से निवेश पर जोर देना|
  • क्या हम जुनोटिक बीमारियों के संदर्भ में जानवरों से अधिक संवेदनशील है ? इसका उत्तर है कि मनुष्य एवं जानवर की इम्युनिटी में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है लेकिन इंसानों के लिए यह नए होते हैं और जानकारी कम होती है इस कारण यह ज्यादा प्रभावित करते हैं|

तेल की कीमत इतनी ज्यादा क्यों हैं ?

  • तेल की कीमतों में गिरावट के उपरांत भी उपभोक्ताओं को लाभ नहीं प्राप्त होता जबकि मूल्य अधिक होने पर वे ही सर्वाधिक व्यय करते हैं।
  • तेल और गैस क्षेत्र भारत के आठ प्रमुख उद्योगों में से एक है और अर्थव्यवस्था के अन्य सभी महत्वपूर्ण वर्गों के लिए निर्णय लेने को प्रभावित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • भारत की आर्थिक वृद्धि ऊर्जा मांग के साथ निकटता से संबंधित है; इसलिए, तेल और गैस की जरूरत अधिक बढ़ने का अनुमान है, जिससे क्षेत्र निवेश के लिए काफी अनुकूल है।
  • बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने कई नीतियां अपनाई हैं। सरकार ने इस क्षेत्र के कई क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी है, जिसमें प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम उत्पाद और रिफाइनरियां शामिल हैं। आज, यह रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और केयर्न इंडिया की उपस्थिति के अनुसार घरेलू और विदेशी निवेश को आकर्षित करता है।
  • देश में गैस पाइपलाइन का बुनियादी ढांचा फरवरी 2019 की शुरुआत में 16,226 किलोमीटर था।

ईंधन बाजार में क्या होना चाहिए और क्या है : -

  • सिद्धांत रूप में, भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों से जुड़ी हैं। ऑटो ईंधन और अन्य जैसे विमानन टरबाइन ईंधन या एटीएफ के उपभोक्ता-अंत कीमतों का पूर्ण रूप से डिकंट्रोल होना चाहिए। जिसका अर्थ है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, जैसा कि फरवरी से काफी हद तक चलन रहा है, तो खुदरा कीमतों में भी कमी आनी चाहिए, परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है।

कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट से उपभोक्ता लाभान्वित को क्यों नहीं: -

  • कर्तव्यों को बढ़ाने का निर्णय, वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा, तंग राजकोषीय स्थिति को देखते हुए लिया गया था और खुदरा कीमतें अपरिवर्तित थीं। इसलिए, प्रभावी रूप से, केंद्र द्वारा उत्पाद शुल्क बढ़ोतरी को तेल की कीमतों में गिरावट के खिलाफ OMCs द्वारा समायोजित किया जाना था। लेकिन अब, खुदरा कीमतों में उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही है।
  • कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुए वैश्विक लॉकडाउन की वजह से कच्चे तेल के मूल्यों में भारी गिरावट देखी गई थी। अप्रैल-मई 2020 में कच्चे तेल के दाम 20 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गये थे।
  • गिरते मूल्य को नियंत्रित करने के लिए सऊदी अरब और अन्य सहयोगी राष्ट्रों ने उत्पादन कम करने का निर्णय लिया था। फलस्वरूप मूल्यों में गिरावट रूकी थी।
  • अब वैश्विक अर्थव्यवस्थायें पुनः खल रही हैं जिससे तेल की मांग बढ़ी है और कच्चे तेल का मूल्य प्रति बैरल 53 से 54 डॉलर प्रति बैरल हो गया हैं। कच्चे तेल का यह वैश्विक मूल्य बहुत ज्यादा नही है। लेकिन भारत में तेल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गई हैं। भारत के कई महानगरों में पेट्रोल की कीमत 84 से 90 रुपये के बीच है।
  • उदाहरण- दिल्ली में इस समय पेट्रोल की कीमत लगभग 84 रूपये 20 पैसे है। जबकि इतनी कीमत दिल्ली में वर्ष 2018 में उस समय हुई थी जब वैश्विक तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल थी। जबकि इस समय यह मात्र 53 से 54 डॉलर है।

मूल्य वृद्धि का कारण-

  • केंद्र एवं राज्य सरकारों ने पेट्रोल एवं डीजल पर शुल्क बढ़ा दिया है। जिससे Covid-19 की चुनौतियों का सामना किया जा सके और सरकारी राजस्व प्राप्त किया जा सके।
  • केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज डयूटी लगाती है जो इस समय पेट्रोल पर प्रति लीटर 32-98 रुपये लगा रही है जो वर्ष 2019 में लगभग 20 रुपये प्रति लीटर था। वहीं डीजल पर यह 31 रुपये 83 पैसे है जो कि 2019 में लगभग 16 रुपये था।
  • इसी तरह राज्यों के द्वारा भी पेट्रोल और डीजल पर वैट लगाया जाता है जो इस समय पेट्रोल पर लगभग 19-20 रुपये है जबकि डीजल पर यह लगभग 11 रुपये है। कुछ राज्यों में डीजल पर लगभग 19-20 रुपये वेंट लगाया जाता है जिसके कारण इन राज्यों में डीजल का मूल्य भी ज्यादा है।
  • इसके अलावा पेट्रोल/डीजल की बिक्री पर डीलर भी कमीशन लेते हैं, जो पेट्रोल पर इस समय लगभग 3 रुपये 60 पैसे व डीजल पर 2 रुपये 50 पैसे है।
  • इस तरह वर्तमान में कुल मूल्य का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा टैक्स का है, जिसके कारण कच्चे तेल का मूल्य कम होने पर भी भारत में इसका मूल्य ज्यादा बना हुआ है।

किसी भी प्रश्न के लिए हमसे संपर्क करें