इजरायल-तुर्की ने फिर से क्यों बनाये कूटनीतिक संबंध? : डेली करेंट अफेयर्स

इजरायल और तुर्की ने साल 2018 में अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए थे। वजह थी इजरायली सेना के द्वारा 60 फिलिस्तीनियों की हत्या।

तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी दूतावास को यरुशलम स्थानांतरित किया था तो तुर्की ने इसके विरोध में इजरायल से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था।

इजरायल ने भी अंकारा से अपने राजदूत को वापस बुलाकर जवाबी कार्रवाई की थी। दोनों देशों ने अब तक अपने राजदूतों की फिर से नियुक्ति नहीं की है।

अब दोनों देशों ने फिर से 4 साल बाद अपने अपने राजदूतों को नियुक्त करने का निर्णय करते हुए अपने डिप्लोमेटिक रिलेशंस को पुनर्बहाल करने का निर्णय किया है।

Full Diplomatic Ties को Restore करते हुए दोनों देश एक दूसरे के यहां Consul Generals की भी नियुक्ति करेंगे। इससे दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने में मदद मिलेगी।

इसके साथ ही तुर्की ने साफ किया है कि वह फिलिस्तीन के हितों के लिए अपने दृष्टिकोण में बदलाव नहीं करेगा।

तुर्की ने हाल के समय में इजिप्ट, संयुक्त अरब अमीरात , सऊदी अरब और इजरायल से अपने संबंधों में सुधार करने की कोशिश की है और इसमें उसे सऊदी अरब और यूएई के संदर्भ में सफलता भी मिली है ।

ऐसा माना जा रहा है कि इजराइली और तुर्की के बीच संबंधों में सुधार से अब्राहम एकॉर्ड जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों को मजबूती मिलेगी ।

अब्राहम एकॉर्ड के जरिए इजराइल, बहरीन संयुक्त अरब अमीरात और मोरक्को के बीच संबंध सामान्य हो गए। इजरायल और तुर्की के बीच कूटनीतिक संबंधों की बहाली के साथ इस क्षेत्र की सुरक्षा मजबूत होगी, आर्थिक व्यापारिक सांस्कृतिक संबंधों को दिशा देने में मदद मिलेगी।

वहीं दूसरी तरफ इजरायल द्वारा तुर्की से मुख्य मांग यह की गई है कि तुर्की अपने देश में आतंकी संगठन हमास की गतिविधियों को रोकने में बड़ी कार्यवाही करें और हमास के उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करें जो इजराइली लोगों के ऊपर हमले करते हैं।

इजराइल और तुर्की सीरिया पर हमले के मामले में साथ खड़े रहते हैं और इस मुद्दे पर अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहते हैं क्योंकि सीरिया में ईरान की उपस्थिति को दोनों वहां स्थिरता के लिए एक खतरा मानते हैं ।

इजराइल और तुर्की दोनों ही सीरिया में एक्टिव हैं और रूसी मिलिट्री प्रजेंस से भी निपटना चाहते हैं।

वही बात करें भारत की तो भारत इजरायल स्ट्रैटेजिक पार्टनर हैं और इजरायल भारत का प्रमुख डिफेंस पार्टनर भी है और उसे हर स्तर पर मदद प्रदान करता है।

वहीं भारत के खिलाफ तुर्की का रूख़ किसी से छुपा नहीं है। तुर्की भारत विरोध की राजनीति करता रहा है, खासकर ऑर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कोऑपरेशन और अन्य फोरमों पर कश्मीर मुद्दा और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का मुद्दा उठाता रहा है।

तुर्की इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ भी देता रहा है इजराइल और तुर्की के मजबूत संबंध भारत और दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप में क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकते हैं लेकिन इसके लिए भारत और इजरायल को उच्च स्तरीय कूटनीति करनी होगी।