UNFPA की 'द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2023' (UNEPA "State of World Population Report, 2023") : डेली करेंट अफेयर्स

UNFPA की 'द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 1.4286 बिलियन है। जबकि चीन की 1.4257 बिलियन है, जो 2.9 मिलियन का अंतर है। यानी भारत की आबादी अब दुनिया में सबसे ज्यादा हो गई है। चीन को भारत ने पीछे छोड़कर यह मुकाम हासिल किया है। UN की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल में भारत की जनसंख्या 1.56 फीसदी बढ़ी है।

क्या है जनसंख्या?

जीव विज्ञान में, विशेष प्रजाति के अंत: जीव प्रजनन के संग्रह को जनसंख्या कहते हैं। समाजशास्त्र में जनसंख्या को 'मनुष्यों के संग्रह' के तौर पर परिभाषित किया गया है। किसी क्षेत्र में, समय की किसी निश्चित अवधि के दौरान वहां बसे हुए लोगों की संख्या में बदलाव होता रहता है। इसे ही जनसंख्या वृद्धि यानी जनसंख्या परिवर्तन कहा जाता है, ये धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी।

क्या कहते हैं आंकड़े?

भारत में आबादी बढ़ने के तीन बड़े कारण बताये जा रहे हैं। पहला- शिशु मृत्यु दर में गिरावट यानी एक साल से कम उम्र के बच्चों की मौत घट रही है। दूसरा- नवजात मृत्यु दर में कमी यानी 28 दिन की उम्र तक के बच्चों की मौत में कमी आ रही है और तीसरा - अंडर-5 मोर्टेलिटी रेट कम होना यानी पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों की संख्या घट रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के हेल्थ मैनेजमेंट इन्फोर्मेशन सिस्टम (HMIS) की 2021-22 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में शिशु मृत्यु दर, नवजात मृत्यु दर और अंडर-5 मोर्टेलिटी रेट में गिरावट आ रही है।

जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव क्या हैं?

जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, परिवार नियोजन की कमी, बाल विवाह और अशिक्षा जैसे कारकों को भारत में जनसंख्या वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार माना जा रहा है। इसके अलावा तमाम धार्मिक कारण, रूढ़िवादिता, गरीबी और अवैध प्रवासन के चलते भी जनसंख्या वृद्धि हुई है।

जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति निम्न आय और ग़रीबी जैसी दिक्कतें उभरकर सामने आयीं हैं। साथ ही बचत और पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक खर्च, अपराध, पलायन और शहरी समस्याओं में वृद्धि जैसी दूसरी समस्याएं भी पैदा हुई हैं। ग़ौरतलब है कि जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आने से पर्यावरण को तेजी से पहुंच रहे नुकसान को कम करने में भी सहायता मिल सकती है।

जनसंख्या नियंत्रण के लिए भारत द्वारा क्या कदम उठाये गए हैं?

रोचक तथ्य ये है कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने सबसे पहले 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाया था। साल 1976 में देश की पहली जनसंख्या नीति की घोषणा की गई, बाद में 1981 में इस जनसंख्या नीति में कुछ संशोधन भी किए गए। इसके बाद फरवरी 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 की घोषणा की। इस जनसंख्या नीति का प्रमुख मक़सद प्रजनन तथा शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बेहतर सेवातंत्र की स्थापना तथा गर्भ निरोधकों और स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे की ज़रूरतें पूरी करना है। इसका दीर्घकालीन लक्ष्य जनसंख्या में साल 2045 तक स्थायित्व प्राप्त करना है।

मई 2000 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया। आयोग राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा करने और इससे जुड़े कार्यक्रमों की योजना बनाने का काम करता है। इस आयोग के अंतर्गत, एक राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरता कोष की भी स्थापना की गई। बाद में इस कोष को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया गया।

ग़ौरतलब है कि आबादी पर काबू पाने के लिहाज़ से देश में साल 1996 से काहिरा मॉडल लागू है जिसके तहत आबादी को घटाने के लिए आम जनता पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाता है, बल्कि शिक्षा के ज़रिए उनमें छोटे परिवार के प्रति एहसास जगाया जाता है। जनसंख्या वृद्धि से निपटने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम, गर्भ निरोधक दवाइयों तक बेहतर पहुँच और परिवार नियोजन सेवाओं के लिए कुशल कर्मियों की बढ़ोत्तरी जैसे क़दम सरकार द्वारा उठाये जा रहे हैं। जनसंख्या नीतियों और तमाम दूसरे उपायों के कारण प्रजनन दर में कमी तो आयी है लेकिन ये अभी भी दूसरे देशों के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा है।

क्या जनसंख्या वृद्धि हमेशा खराब ही होती है?

ध्यान दीजियेगा कि अगर जनसंख्या वृद्धि को एक अलग नजरिए से देखा जाए तो ये भारत जैसे देशों के लिए बहुत ही कारगर भी साबित हो सकती है। जनसांख्यिकीय लाभांश, मानव संसाधन में बढ़ोत्तरी, शक्तिशाली सेना और एक बड़े बाज़ार को जनसंख्या वृद्धि के फायदे के रूप में देखा जाता है। इसका ये मतलब नहीं कि जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि को सही ठहराया जाय, लेकिन जो जनसंख्या है उसका प्रोडक्टिव इंगेजमेंट होना ज़रूरी होता है। इसमें सबसे अहम् भूमिका सरकार की होती है, लेकिन आम जनता के कन्धों पर भी ये जिम्मेदारी होती है।