ट्रेकोमा (Trachoma) : डेली करेंट अफेयर्स

आंखें शरीर की बेहद ही नाजुक अंग होती हैं। इनके साथ हुई जरा सी लापरवाही से रोशनी भी जा सकती है। इसीलिए आंखों की साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। शरीर के सभी अंगों की साफ-सफाई के साथ ही आंखों की सफाई और सही देखभाल भी जरूरी है। जी हां, आंखों की साफ-सफाई की अनदेखी के कारण ही लोग ट्रेकोमा जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं। आज अचानक ट्रेकोमा की चर्चा करने के पीछे का कारण यह है कि हाल ही में, बेनिन और माली ने अपने यहां ट्रेकोमा को पूरी तरह से खत्म करने में सफलता हासिल कर ली है। इसका मतलब यह हुआ कि यह दोनों देश ट्रेकोमा मुक्त घोषित हो गए हैं।

टेक्रोमा (Trachoma) एक संक्रमण है जो आंखों को प्रभावित करती है। इसे रोहे रोग भी कहा जाता है। साफ-सफाई का ध्यान नहीं देने से एक तरह का बैक्टीरिया जिसे क्लैमाइडिया ट्रेकोमैटिस बैक्टीरिया कहते हैं का संक्रमण आंखों में हो जाता है। संक्रमित व्यक्ति की आंखों और नाक से संक्रमणकारी स्राव होने यानी Fluid और उसके संपर्क में आने से यह बीमारी होती है। इस बैक्टीरियम से संक्रमित लोगों की आंखों और नाक के संपर्क में आने वाली मक्खियां भी इसे फैलाती हैं। इसमें ट्रेकोमा से पीड़ित व्यक्ति से हाथ मिलाने और कपड़े का आदान-प्रदान करने से यह बैक्टीरिया दूसरे इंसान तक पहुंचते हैं। गंदे वातावरण में रहने वाले लोग इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आते हैं। साफ पानी का अभाव, शौचालयों की समुचित व्यवस्था न होना और खुद की सफाई न रखने से यह गंभीर बीमारी फैलती है। ज्यादातर यह बीमारी नवजात बच्चों और उनके साथ संपर्क में रहने वाली मांओं को होती है।

ट्रेकोमा के लक्षणों की बात करें तो इसके बैक्टीरिया आंखों की ऊपरी पलक की अंदरूनी सतह और कार्निया को प्रभावित करते हैं। इस बीमारी में आंखों की ऊपरी पलक में घाव होने लगता है और फिर पलक अंदर की तरफ मुड़ जाती है। जिससे भयंकर दर्द होता है और पलक रगड़ने से कार्निया को नुकसान होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़े के मुताबिक दुनियाभर में करीब 14 करोड़ लोग ट्रेकोमा से पीड़ित हैं और उनमें अंधेपन के संभावना बनी हुई है। हालांकि भारत में ट्रेकोमा के शिकार लोगों का प्रतिशत 0.7 से भी कम है। 2017 में भारत को ट्रैकोमा मुक्त घोषित कर दिया गया था, लेकिन फिर भी इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

इस गंभीर बीमारी को खत्म करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने सेफ (SAFE) नाम से एक मुहिम शुरु किया है। जिसका मतलब है S - सर्जिकल देखभाल, A - एंटीबायोटिक्स का उपयोग, F - चेहरे (face) की सफाई और E यानी साफ-सुथरा वातावरण (clean environment)। सर्जरी की प्रक्रिया का इस्तेमाल पलक की विकृति को ठीक करने के लिए किया जाता है और वृद्ध लोगों में खराब हुई पलकों को पलटाया जाता है। इसके अलावा, एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल की प्रक्रिया में रोगी की आंखों में संक्रमण की गंभीरता के हिसाब से एजिथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक की सिंगल डोज दी जाती है और इसे कम से कम तीन साल तक दिया जाता है। जिस मरीज को यह बीमारी होती है, उसके आसपास के लोगों को भी एंटीबायोटिक की डोज दी जाती है।