फुटपाथ पर सुरक्षित चलने का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य : डेली करेंट अफेयर्स

पैदल चलना प्राचीन समाज से लेकर आधुनिक समाज तक सबसे बेहतर Exercise माना जाता रहा है। विकास की गति थोड़ी तेज हुई तो साइकिल हमारे व्यायाम का बड़ा हिस्सा बन गयी। ये दोनों तरीके लोगो को न केवल स्वस्थ्य रखते हैं बल्कि दैनिक जीवन में किसी जगह पहुंचने के लिए सबसे सस्ते साधन भी होते हैं। खैर विकास की गति साइकिल से आगे बढ़ कर जब मोटर गाड़ियों तक पहुंची तो इन पैदल और साइकिल से चलने वाले लोगो की सुरक्षा दांव पर लग गयी।

अभी हालात यह है कि इन्हे सड़क पर गाड़ियों से बच बचा कर चलना पड़ता है। योजनाएं, सरकारी प्रयास, एक्सीडेंट के सभी आंकड़े व्यर्थ हो गए पर इन्हे सड़क पर सुरक्षित चलने का अधिकार नहीं मिल पाया। कंही फुटपाथ नहीं बने तो कंही बने हुए फुटपाथों पर अतिचारियों ने कब्ज़ा कर रखा है और अभी तक ढाक के तीन पात वाली ही स्थिति बनी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल राज्यों को एक अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि पैदल और साइकिल से चलने वालों को एक अलग, निर्बाध और सुरक्षित यात्री लेन और साइकिल ट्रैक प्रदान किया जाना चाहिए।

इस आदेश को गंभीरता से लेने वाला पंजाब देश में पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने लोगों को सड़कों पर सुरक्षित चलने का अधिकार देने के आदेश जारी किए। दरअसल पंजाब में लोगों को सड़कों पर सुरक्षित चलने का अधिकार देने के लिए प्रदेश सरकार ने आदेश जारी कर दिए हैं। यह आदेश जारी करके पंजाब राइट टू वाक के अधिकार के लिए कार्रवाई को अमल में लाने वाला देश का पहला राज्य है।

दरअसल पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों की मौतों में लगातार वृद्धि के चलते पंजाब ने NHAI सहित सभी सड़क कंट्रक्शन एजेंसियों को फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने के लिए पत्र प्रेषित किये हैं। जिसके मुताबिक आगे के सभी सड़क कंस्ट्रक्शन में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाना अनिवार्य होगा। इसी के मद्देनजर पंजाब के मुख्य सचिव वीके जंजुआ ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी किये राइट टू वॉक के आदेशों को लागू करवाने के लिए ट्रैफिक सलाहकार असीजा को कार्रवाई अमल में लाने के लिए कहा है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में पैदल और साइकिल पर चलने वाले 10 से ज्यादा लोग हर महीने सड़क हादसों का शिकार होते हैं। इसे ख़त्म करने के लिए पंजाब के जिन जिलों में फुटपाथों पर कब्जा है वहां से स्थानीय प्रशासन इन कब्जो को हटाएगा। प्रशासनिक कार्यवाहियों के अलावा राइट टू वाक के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।

इस पहल के इतिहास और इनकी जरुरत को समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं -

  • भारत में सड़कों पर चलने वाली आबादी का 28% हिस्सा पैदल यात्रियों का होता है।
  • केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा किया गया सर्वे बताता है कि अगर 10 लोग सड़क पर पैदल चलने वाले हैं तो उनमें से 9 लोग सड़क पार करते हुए सेफ महसूस नहीं करते हैं।
  • Law Commission की Report “Legal Reforms to Combat Road Accidents” बताती है कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली कुल मृत्यु का 53% आंकड़ा पैदल चलने वाले लोगो का होता है।
  • केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा सड़क दुर्घटनाओं पर जारी 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सड़कों पर प्रतिदिन 62 पैदल यात्री मारे जाते हैं। यानी 2014 तक, जो आँकड़ा केवल 32 लोगो का था। केवल चार सालो में 84% की वृद्धि दर्ज की गयी।

इन आंकड़ों के बावजूद भारत में, पैदल चलने वालों लोगो के अधिकारों को लागू करने के लिए केंद्रीय स्तर का कानून या नीति अभी तक उपलब्ध नहीं है। हालांकि इनकी सुरक्षा के लिए कुछ प्रावधान भारतीय दंड संहिता यानी IPC और Motor Vehicles Act के तहत किये गए हैं, लेकिन इनके अधिकारों को लेकर पुख्ता इंतजाम की देश में अभी भी कमी है। केवल Road Regulation 1989 के नियमों में पैदल चलने वाले लोगो के अधिकारों को सेफ्टी मानक के तौर पर रखा गया है। जिसमें रूल संख्या 8 कहता है कि पैदल यात्री के लिए बनायी गयी क्रॉसिंग के पास आने पर ड्राइवर की ड्यूटी है कि वह गाड़ी की स्पीड कम कर लेगा। नियम 11 कहता है कि फुटपाथ या साइकिल लेन पर ड्राइव नहीं की जा सकती है और नियम 15 कहता है कि फ़ुटपाथ या पैदल यात्री लेन पर कोई पार्किंग नहीं की जाएगी।

हालांकि राइट टू वाक को लेकर कई राज्यों के हाई कोर्ट के जजमेंट भी आ चुके हैं लेकिन कंक्रीट इंतजाम अभी तक राज्य सरकारों द्वारा धरातल पर उतारे नहीं गए हैं। इसलिए पंजाब द्वारा राइट टू वाक के इंतजाम को काफी सराहा जा रहा है और इसे अन्य राज्यों के लिए सीख माना जा रहा है।