माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic) : डेली करेंट अफेयर्स

PLOS One नाम का एक जर्नल है। इसे पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंसेज द्वारा साल 2006 से प्रकाशित किया जा रहा है। यह विज्ञान एवं चिकित्सा से जुड़े विषयों पर गहन रिसर्च प्रकाशित करने का काम करता है। हाल ही में इसने माइक्रोप्लास्टिक से जुड़ा एक महत्वपूर्ण रिसर्च पब्लिश किया है। इसके इस नए रिसर्च के मुताबिक, दुनिया भर के महासागरों में 170 ट्रिलियन प्लास्टिक कण यानी लगभग 2 मिलियन मीट्रिक टन माइक्रोप्लास्टिक तैर रहे हैं। इतना ही नहीं अगर अर्जेंट एक्शन नहीं लिया गया तो 2040 तक यह आंकड़ा बढ़कर 3 गुना हो जाएगा।

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक?

नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ) के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक 0.2 इंच (5 मिलीमीटर) से छोटे प्लास्टिक के कण हैं। देखने में इनका आकार एक तिल के बीज के बराबर हो सकता है। दरअसल प्लास्टिक सूरज, हवा या अन्य कारणों से सूक्ष्म कणों में टूट जाता है, और यही माइक्रो प्लास्टिक बन जाता है।

बड़े सोर्सेज के अलावा क्या यहाँ भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है?

हम रोजमर्रा के जीवन में जिन उत्पादों का उपयोग करते हैं जैसे कि टूथपेस्ट और चेहरे की स्क्रब में उपयोग किए जाने वाले कॉस्मेटिक में भी माइक्रोप्लास्टिक होता है। माइक्रोप्लास्टिक सिंथेटिक कपड़ों से भी आता है। नायलॉन, स्पैन्डेक्स, एसीटेट, पॉलिएस्टर, ऐक्रेलिक, रेयान - यह सब ऐसे कपड़े होते हैं जिनमें माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी होती है। आप जब भी इन कपड़ो को धुलते हैं तो इनमें से कुछ रेशे छूटते हैं। यह रेशे पानी से होकर बह जाते हैं … बाद में नालों के जरिए नदियों में पहुंचते हैं और फिर समुद्र में। इस तरह यह माइक्रोप्लास्टिक्स तमाम अलग-अलग रास्तों से होकर समुद्र में पहुंचते हैं। अनुमान है कि 2050 तक समुद्र में पहुंचे प्लास्टिक का वजन मछलियों के कुल वजन से ज्यादा होगा।

क्या माइक्रोप्लास्टिक कुछ और भी कैरी करते हैं?

माइक्रोप्लास्टिक के ये छोटे कण बैक्टीरिया और सतत कार्बनिक प्रदूषकों (पीओपी) के वाहक के रूप में काम करते हैं। पीओपी जहरीले कार्बनिक यौगिक होते हैं, जो प्लास्टिक की तरह होते हैं, जिन्हें नष्ट होने में सालों लग जाते है। इनमें कीटनाशक और डाइऑक्सिन जैसे केमिकल शामिल हैं, जो उच्च सांद्रता में मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं।

माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवन को कैसे प्रभावित करता है?

दरअसल इन माइक्रोप्लास्टिक्स के 12.5 फीसदी कण मछलियों तक पहुंच जाते हैं जो उन्हें भोजन समझ कर निगल जाती हैं जो उनके लिए जानलेवा साबित होती है। माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव से कछुए और अन्य समुद्री जीव भी जैसे कि समुद्री पक्षी आदि अनछुए नहीं हैं।

हम तक माइक्रोप्लास्टिक कैसे पहुँच रहे हैं?

समुद्री जीवों के द्वारा माइक्रोप्लास्टिक निगला जा रहा है, उन्हीं जीवों को सी-फूड के रूप में हम इंसानों द्वारा कंज्यूम किया जा रहा है। इतना ही नहीं अगर आप समुद्री भोजन नहीं भी खाते हैं, तो आप अपने पीने के पानी के जरिए माइक्रोप्लास्टिक कंज्यूम कर रहे हैं।

अब तो माइक्रोप्लास्टिक के कण वातावरण की हवा में भी हैं जहां आप सांस लेते हैं। जब कार और ट्रक चलते है तो इनके टायरों से निकलने वाली धूल में इन कणों की मात्रा लगभग 20 ग्राम है, जिसमें प्लास्टिक स्टाइलिन-ब्यूटाडीन होता है। यहां एक विरोधाभास भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (2019 में) ने सुझाव दिया है कि माइक्रोप्लास्टिक (पेय जल से) का मानव स्वास्थ्य पर अभी वर्तमान में कोई खास प्रभाव नहीं है। यानी कुछ वैज्ञानिक इसे विनाशकारी मान रहे हैं तो कुछ वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है।

इंसानों द्वारा माइक्रोप्लास्टिक निगलने के क्या खतरे हैं?

बहरहाल ज्यादातर एक्सपर्ट ऐसा मानते हैं कि इंसानों द्वारा माइक्रोप्लास्टिक निगलने के कई खतरे हैं। इनमें दिल से जुड़ी और प्रजनन से संबंधित परेशानियों के साथ-साथ डायबिटीज़, मोटापा और कैंसर आदि शामिल हैं। इसके अलावा, व्यवहार में परिवर्तन, हाई ब्लड प्रेशर, अंतःस्रावी व्यवधान और तंत्रिका प्रणाली पर भी असर हो सकता है, साथ ही यकृत और गुर्दे को भी नुकसान हो सकता है।

भारत सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं?

भारत सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं जैसे कि सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016 को लागू करना, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) की नीति लागू करना आदि। EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है … इसके तहत जो लोग प्लास्टिक प्रोड्यूस कर रहे हैं उन्हीं के लिए इसके निपटान की जिम्मेदारी तय की जाती है। इसके अलावा अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective) पहल भी चलाई जा रही है। इसके अंतर्गत यूएनईपी-इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया मिलकर प्लास्टिक के कारण होने वाले खतरों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।