मणिपुर संकट (Manipur Crisis) : डेली करेंट अफेयर्स

मणिपुर में आदिवासियों और मेइती समुदाय के हिंसक हो जाने के बाद प्रशासन ने देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया है। हालात को कण्ट्रोल करने के लिए असम राइफ़ल्स और सेना की 55 टुकड़ियां भी तैनात कर दी गयी है। राज्य के ज्यादातर क्षेत्र में कर्फ़्यू लगा दिया गया है। सुरक्षा बलों ने अभी तक 9,000 लोगों को हिंसा प्रभावित इलाकों से बचा कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। व्यापक हिंसा के मद्देनजर राज्य में 5 दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गयी है। सैनिक हवाई सर्वेक्षण के जरिये स्थिति की निगरानी कर रहे हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने राज्य सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि हिंसा प्रभावित इलाके में पढ़ रहे मेघालय के छात्रों को वहां से निकाला जाए। राज्य सरकार के मुताबिक अभी यह बताना संभव नहीं है कि इस हिंसा में कितने लोगों की जान गई है और कितने लोग घायल हुए हैं।

दरअसल मणिपुर - असम, नागालैंड, मिजोरम और म्यांमार से घिरा हुआ है। इसके चारो तरफ पहाड़ियां हैं और बीच में एक गोलाकार उपजाऊ घाटी है, जिसे इंफ़ाल वैली के नाम से जाना जाता है। इसी वैली में ज्यादातर मैतेई समुदाय रहता है। मैतेई एक ग़ैर-जनजातीय समुदाय है। इस समुदाय का बड़ा हिस्सा हिन्दू है, जबकि बाक़ी मुस्लिम हैं। जहाँ मणिपुर के 10 प्रतिशत जमीन पर मैतेई समुदाय का दबदबा है, वहीं यहाँ की आबादी में इसकी हिस्सेदारी 64 प्रतिशत से भी ज़्यादा है। बचा 90 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पहाड़ी है जिसमें प्रदेश की लगभग 35 फ़ीसदी ऐसी जनता रहती है जिसे जनजातियों की मान्यता प्राप्त है।

यह जनजातियां 33 समुदायों में बंटी हुई है और इन्हें नगा और कुकी जनजाति के नाम से जाना जाता है। जो ज्यादातर ईसाई धर्म को मानने वाले लोग हैं। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से जबकि नगा और कुकी जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा में पहुंच पाते हैं।

इस राज्य की अनुसूचित जनजाति मांग समिति साल 2013 से मेइती को एसटी सूची में शामिल करने की मांग कर रही थी। इसी मांग का आदिवासी समूह लगातार विरोध कर रहे थे। इस 2013 की मांग में टर्निंग पॉइंट तब आ गया जब बीते दिनों में मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश देते हुए कहा कि चार सप्ताह के भीतर एसटी सूची में मेइती को शामिल करने के लिए जरुरी डाक्यूमेंट्स जमा कर दिए जाएँ। इसके बाद से राज्य में फिर से विद्रोह जग गया।

मैतेई समुदाय की ओर से अपनी मांगों के तर्क में कहा जा रहा है कि 1949 में जब मणिपुर का भारत में विलय हुआ तो उससे पहले मैतेई को जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। दलील में यह भी कहा जा रहा है कि मैतेई को जनजाति का दर्जा मिलने से उनके पूर्वजों की ज़मीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा हो सकेगी।

जबकि मौजूदा आदिवासी समूहों का कहना है कि मैतेई का मणिपुर में न केवल जनसांख्यिकीय बल्कि राजनीतिक और शैक्षिक दबदबा भी कायम है। तो अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो दूसरे ग्रुप के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे, पहाड़ों पर भी जमीन कम हो जाएगी और दूसरे लोग हाशिए पर चले जाएंगे। यही नहीं मैतेई समुदाय की भाषा भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और इसके कई ग्रुप को अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस का लाभ भी मिल रहा है। जिसके बाद इन्हें जनजाति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए।

इसी मुद्दे को लेकर 2 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। इसी को आगे बढ़ाते हुए 3 मई को कई पहाड़ी जिलों में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया, जिससे झड़प और हिंसा भड़क गई। लगातार जारी यह हिंसा राज्य में अशांति का बड़ा कारण बन रही है।

खबर यह भी है कि ड्रग्स के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने के कारण कुछ जनजाति समूह मणिपुर के मुख्यमंत्री नोंगथोंबन बीरेन सिंह को सत्ता से हटाना चाहते हैं। दरअसल बीरेन सिंह की सरकार सरकारी ज़मीन पर अफ़ीम की खेती करने पर रोक लगा रही है। जिसके चलते ऐसे लोग जो तथाकथित म्यांमार के अवैध प्रवासी हैं और मणिपुर के कुकी-ज़ोमी जनजाति से ताल्लुक रखते हैं वह प्रभावित हो रहें हैं। इसलिए भी राज्य में हिंसा प्रदर्शन किया जा रहा है। इसका पहला विरोध प्रदर्शन 10 मार्च को तब हुआ था जब कुकी गाँव से अवैध प्रवासियों को निकाला गया था।

इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने मणिपुर में अनुच्छेद 355 लागू कर दिया है। बता दें कि संविधान के मुताबिक किसी भी राज्य में शांति और क़ानून व्यवस्था बनाए रखना उस राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन अगर राज्य पर कोई बाहरी आक्रमण या गंभीर किस्म की आंतरिक हिंसा और अशांति हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों में अनुच्छेद 355 के मुताबिक केंद्र सरकार दखल दे सकती है। इसके तहत केंद्र सरकार राज्य की पुलिस व्यवस्था, सेना की तैनाती और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठने का अधिकार रखती है। अनुच्छेद 355 लगाने के बाद राज्य की सुरक्षा और वहां संविधान लागू कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो जाती है।