हक्की पिक्की आदिवासी समुदाय (Hakki Pikki Tribal Community) : डेली करेंट अफेयर्स

साल 2019 के सैन्य तख्तापलट के बाद सूडान में उमर अल-बशीर की सरकार का पतन हो गया। इसके बाद में देश में सशस्त्र गुटों के दो ग्रुप सक्रिय हो गए। इन दोनों ग्रुप में एक है RSF यानी ‘रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स' जिसका प्रमुख मोहम्मद हमदान दगालो है। इसे ही हेमेदती के नाम से भी जाना जाता है और दूसरा ग्रुप सूडान की सेना का है जिसका सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान है। इन दोनों ग्रुप में देश की सोने की खदान के कब्जे और सत्ता स्थापित करने को लेकर संघर्ष जारी है। इस गृहयुद्ध में पिछले कुछ दिनों में 300 से अधिक मौते हुई हैं जबकि ढाई हजार के ऊपर लोग घायल है। इस गृह युद्ध का सबसे ज्यादा प्रभाव राजधानी खार्तूम और नील नदी के समीप बेस आमडुरमैन शहर पर है। खार्तूम में हो रही इस भारी हिंसा में भारत के एक आदिवासी समुदाय की भी चीखें दबी हुई हैं। इनके पास पिछले कुछ दिनों से खाने तक का ठिकाना नहीं है। दरअसल ये लोग वहां के संघर्षों के बीच फंसे हुए हैं। अभी सरकार ने हाल ही में इन्हें बचाने के लिया प्रयास जारी कर दिया है।

बता दें कि कर्नाटक के हक्की पिक्की आदिवासी समुदाय के 181 से अधिक लोग सूडान की हिंसा में फंसे हुए हैं। असल हक्की पिक्की एक कन्नड़ शब्द है जिसका मतलब है पक्षी पकड़ने वाले लोग। यह जनजाति भारत के दक्षिण और पश्चिम राज्यों में रहती है। इनका निवास स्थान मुख्यतः वन क्षेत्रों के पास होता है। यह एक Semi-nomadic tribe यानी अर्ध-खानाबदोश जनजाति हैं, जो पारंपरिक रूप से पक्षी पकड़ने और शिकार करने वाले लोग हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक कर्नाटक में हक्की पिक्की की आबादी 11,892 है। ये ज्यादातर दावणगेरे, मैसूरु, कोलार, हासन और शिवमोग्गा जैसे जिलों में से रहते हैं। उत्तरी कर्नाटक और महाराष्ट्र में इन्हे मेल-शिकारी के भी नाम से जाना जाता है। विशेषज्ञों बताते हैं कि हक्की पिक्की चार कुलों- गुजरातिया, पंवार, कालीवाला और मेवाड़ में बंटे हुए हैं। पुराने दिनों में इन कुलों के बीच एक hierarchy मेन्टेन थी। जिसमें सबसे ऊपर गुजरातिया और सबसे नीचे मेवाड़ थे और यह समुदाय आजीविका की तलाश करते हुए समूहों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। यह जनजाति क्रॉस-कजिन विवाह को प्राथमिकता देती है। हक्की पिक्की मातृ सत्तात्मक समाज है और इसमें बहुविवाह की प्रथा नहीं पायी जाती है।

अब चूँकि यह खानाबदोश जाति है इसलिए यह साल में नौ महीने खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे और सिर्फ तीन महीने के लिए अपने स्थायी बसेरों में लौट आते थे। इन 9 महीनों के दौरान पुरुष शिकार का काम करते थे जबकि महिलाएं गांवों में भीख मांगती थीं, लेकिन इनकी मुश्किलें तब बढ़ गयी जब वन्यजीव संरक्षण कानून सख्त हो गए। हक्की पिक्की जनजाति के बीच शिक्षा का स्तर भी कम है। इसको इस तरह से समझिये कि पक्षीराजपुरा की 2,000 की आबादी में, केवल आठ लोग ग्रेजुएट हैं और मात्र एक व्यक्ति पुलिस कांस्टेबल के रूप में काम करता है। जिसके चलते इन लोगो ने स्थानीय मंदिर और मेलों में मसाले, हर्बल तेल और प्लास्टिक के फूल बेचना शुरू कर दिया।

इसी समय इनके जड़ी-बूटियों के तेल का कारोबार ठीक ठाक चल पड़ा और अब इन सामानों जैसे हिबिस्कस पाउडर, तेल, आंवला, आयुर्वेदिक पौधे को बेचने के लिए जनजाति के लोग दुनिया भर में कई जगहों पर जाते हैं। अफ्रीकी महाद्वीप में आयुर्वेदिक उत्पादों की भारी मांग पता चलने पर उन्हें बेचने के लिए कर्नाटक के हक्की पिक्की पिछले 20 वर्षों से अफ्रीकी देशों की यात्रा कर रहे हैं। सूचनाएँ यह भी हैं कि "अफ्रीकी महाद्वीप में इनके उत्पादों की मांग इतनी ज्यादा है कि निवेश को 3 से 6 महीने के भीतर इसे दोगुना या तिगुना किया जा सकता है। अपनी इसी आजीविका के चक्कर में ये लोग आज सूडान में फंसे हुए हैं।