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Daily-current-affairs / 23 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 23 September 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 23 September 2020



MSP और स्वामिनाथन आयोग

  • 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ और 1965 में भारत को पाकिस्तान के साथ भी युद्ध लड़ना पड़ा। इस तरह 1960 का दशक भारत के सामने कई प्रकार की प्राकृतिक और मानवीय चुनौतियां लेकर आया था।
  • 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास़्त्री बने, जिन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर जवानों एवं किसानों के मनोबल को ऊँचा करने का प्रयास किया।
  • दरअसल 1962 के युद्ध के बाद जवानों का मनोबल कमजोर हुआ था तो बार-बार पड़ने वाले अकाल ने किसानों के मनोबल को कमजोर किया था ।
  • जय-जवान जय किसान नारे का प्रभाव किसानों पर तो हुआ लेकिन आर्थिक रूप से कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि पैदावार अधिक होने पर उत्पाद के मूल्य कम हो जाते थे। ऐसे में सरकार ने अनाजों की कीमत तय करने का निर्णय लिया, जिससे किसानों को कृषि से लाभ प्राप्त हो सके।
  • प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कृषि मंत्री चिदंबरम सुब्रमण्यम को बुलाया और उनसे इस विषय पर बात की। चिंदंबरम इस बात के लिए तैयार हो गये कि किसानेां को कम से कम इतनी कीमत अवश्य मिलना चाहिए जिससे उन्हें नुकसान/घाटा न हो।
  • प्रधानमंत्री के सचिव एल-के- झा के नेतृत्व में 1 अगस्त, 1964 को एक कमेटी बनाई गई। 24 सितंबर, 1964 को इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी और 13 अक्टूबर, 1964 को प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय कर दिया। लेकिन प्रशासनिक कारणों से यह लागू नहीं हो सका।
  • वर्ष 1966 में गेहूँ के लिए पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषण कर दी गई। इसके बाद से ही हर साल सरकार फसलो के लिए बुआई से पहले MSP घोषित करती है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों की उपज को खरीदने के लिए तैयार रहती है। इससे अधिक उत्पादन होने पर कीमत कम होने का खतरा MSP के फसलों के संदर्भ में कम हो जाता है।
  • MSP की वजह से किसानों को सरकार के रूप में एक निश्चित ग्राहक मिलता है तो साथ ही MSP की घोषणा बुआई से पहले होने के कारण उनके पास यह निर्णय लेने का समय होता है कि वह किस फसल का उत्पादन करें और कितना करें।
  • सरकार MSP पर स्थानीय सरकारी एजेंसियों के माध्यम से अनाज खरीदकर FCI और नेफेड (नेशनल एग्रीकल्चरल कॉपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इण्डिया) के पास उसका भण्डारण करती हैं फिर यहां से यह अनाज PDS के माध्यम से किसानों एवं जरूरतमंदों तथा अनाज की आवश्यकता वाले स्थान तक पहुंचता है।
  • MSP का प्रारंभ एक फसल से किया गया जिनकी संख्या इस समय बढ़कर 24 हो गई है। इसमें सात फसलें अनाज- धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, जई, रागी के साथ ही पांच दालें चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर सात तेल की फसलें एवं चार व्यापारिक फसलों गन्ना, गरी, कपास और जूट शामिल हैं।
  • MSP तय करने का काम कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा किया जाता है। यह अपनी सिफारिश सरकार को भेजती है उसके बाद अंतिम निर्णय आर्थिक मांमलों के मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिया जाता है। इस संस्था का निर्माण जनवरी 1965 में किया गया था, उस समय इसका नाम कृषि मूल्य आयोग था। 1985 में इसका नाम बदलकर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग कर दिया गया। यह कृषि एवं किसान मंत्रलय के अधीन आती है। गन्ने का न्यूनतम मूल्य तय करने के लिए एक अलग आयोग है जिसे गन्ना आयोग के नाम से जाना जाता है।
  • MSP तय करने की प्रक्रिया एक लंबी प्रक्रिया है जिसके लिए आयोग कुछ मानकों के आधार पर आंकड़े इक्ट्ठा करता है।
  • देश के अलग-अलग क्षेत्र में प्रति क्विंटल अनाज को उगाने की लागत
  • देश के अलग-अलग इलाकों में किसी खास फसल की प्रति हेक्टेयर लागत
  • प्रति क्विंटल अनाज उगाने के दौरान होने वाला खर्च और आने वाले अगले एक साल में होने वाला बदलाव
  • खेती के दौरान होने वाला खर्च और आने वाले अगले एक साल में होने वाला बदलाव
  • अनाज की प्रति क्विंटल बाजार में कीमत और आगे एक साल में होने वाला औसत बदलाव
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में उस अनाज की कीमत, आने वाले साल में कीमत में होने वाला बदलाव
  • किसान जो अनाज बेचता है उसकी कीमत और जो चीजें खरीदता है उसकी कीमत
  • एक परिवार पर खपत होने वाला अनाज और एक व्यत्तिफ़ पर खपत होने वाले अनाज की मात्र
  • विश्व के बाजार में उस अनाज की मांग और उसकी उपलब्धता
  • अनाज के भंडारण, उसको एक जगह से दूसरी जगह पर लाने ले जाने का खर्च, लगने वाला टैक्स, बाजार की मंडियों का टैक्स और अन्य फायदा।
  • सरकारी और सार्वजनिक एजेंसियों जैसे एफसीआई और नफेड की स्टोरेज क्षमता।
  • MSP के लिए किसानों की लागत के संदर्भ में भी CACP आकलन करता है। इसके लिए CACP खेती की लागत को तीन भागों में बांटता है। यह हैं- A2, A2+FL और C2.
  • A2 में फसल उत्पादन के लिए किसानों द्वारा किए गये सभी तरह के नकदी खर्च जैसे बीज, खाद, ईंधन और सिंचाई आदि की लागत शामिल होती है।
  • A2+FL में A2 में शामिल खर्चे तो होते ही है, इसमें फसल उत्पादन में किसान परिवार के मेहनताना (मजदूरी) को भी जोड़ा जाता है।
  • C2 में खेती के व्यावसायिक मॉडल को अपनाया जाता हैं इसमें कुल नकद लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रमिक के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है।
  • फरवरी 2018 में केंद्र सरकार की ओर से बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा था कि अब किसानों को उनकी फसल का जो दाम मिलेगा वह उनकी लागत का कम से कम देढ़ गुना ज्यादा होगा। हालांकि अभी तक जो MSP तय होती है उसका आधार A2+FL है।
  • इस MSP से उत्पादन बढ़ा है और कई सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए है। बावजूद किसानी आर्थिक रूप से कम लाभकारी रोजगार और आजीविका का स्रोत बन गया है तो किसानों का पलायन कृषि क्षेत्र से अन्य क्षेत्रें में बढ़ा हैं इन्हीं तथ्यों एवं परिणामों को देखते हुए MSP एवं कृषि क्षेत्र में क्या सुधार किये जा सकते हैं, इसका आकलन करने के एक कमेटी के गठन का विचार किया गया।
  • अनाज की आपूर्ति भरोसेमंद बनाने तथा किसानों की आर्थिक लागत बेहतर करने के मकसद से 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने एम-एस- स्वामिनाधन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया।
  • इस आयोग ने वर्ष 2006 में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें किसानों की दुर्दशा को दूर करने के लिए कई उपाय बताये गये।
  • स्वामिनाथन आयोग ने MSP तय करने के लिए लागत में खाद-बीज आदि पर खर्च, उसकी पूंजी या उधारी पर लगे ब्याज, जमीन का किराया, पारिवारिक श्रम आदि सभी को शामिल करने तथा लगात से 150 प्रतिशत तक MSP रखने की सिफारिश की।
  • नीति आयोग ने कुछ समय पहले इसे अव्यावहारिक बताया था क्योंकि उसका कहना था कि जमीन का किराया अलग- अलग क्षेत्र में अलग होता है, जिससे लागत तय नहीं हो सकती है।
  • इसके अलावा स्वामिनाथन आयोग ने किसानेां को अच्छी गुणवत्ता के बीज कम दाम पर मुहैया कराने, किसानों की मदद के लिए विलेज नॉलेज सेंटर बनाने, महिला किसान के लिए क्रेडिट कार्ड जारी करने, कृषि जोखिम फंड बनाने जैसे अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये थे, जिससे कृषि क्षेत्र का कायाकल्प हो सकता था।
  • स्वामिनाथन आयोग ने कृषि क्षेत्र में आमूल चलू (Radical Changes) परिवर्तन का विचार रखा था, जिसमें लैंड रिफॉर्म के लिए नेशनल लैण्ड यूज अडवाइजरी सर्विस का गठन करने, सिंचाई सुधार के कार्य करने, उत्पादन बढ़ाने, फसल बीमा कराने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेन तथा किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए कदम उठाने की भी बात की गई थी।
  • स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने बड़ी मात्र मे वित्त की आवश्यकता तो होगी ही लेकिन उससे भी बड़ी बात इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति दिखाने की है।
  • कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों किसानों के हित की तो बात करती है लेकिन इसके लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं करती है।
  • MSP से किसानों को प्रोत्साहन मिलता है, उत्पादन बढ़ता है, कीमतों में स्थिरता बनी रहती है, आपूर्ति सुनिश्चित होती है, सामाजिक कल्याण की योजनाएं लागू हो पाती है।
  • हरित क्रांति और उसके बाद भारत ने जो खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्राप्त की है, उसमें सबसे बड़ा योगदान MSP का ही है।
  • सरकार भेले ही MSP के तहत 23/24 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का दावा करती है लेकिन गेहूँ एवं धान के अलावा अन्य फसलों की पूरी खरीद संभव नहीं हो पाती हैं दूसरे शब्दों में अन्य फसलों को उतना महत्व नहीं दिया जाता है।
  • अनाज बेचने से किसानों को अपने खेत के कागजात (खतौनी) दिखाने होते हैं, उसके बाद ही फसल की बिक्री होती है और बिक्री की पर्ची व्यक्ति को जिसके नाम जमीन है उसे दे दी जाती है और कुछ दिन बाद उस व्यक्ति के खाते में पैसा आ जाता है। देश के 94 प्रतिशत किसान दूसरे के खते में खेती करते हैं और फसल उपजाते हैं, जिसके कारण उन्हें यदि फसल बेचना होता है तो बिचौलियों की मदद लेना पड़ता है जिसके कारण 6 प्रतिशत किसानों को ही अधिक फायदा मिला पाता है।
  • वर्ष 2015 में FCI के पुनर्गठन का सुझाव देने के लिए बनी शांताकुमार समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि MSP का फायदा सिर्फ 6 प्रतिशत किसानों को ही मिलता है।
  • MSP पूरे देश के लिए एक होती है लेकिन लागत अलग- अलग राज्यों अलग-अलग होती है।
  • उत्पादन की क्वालिटी और बिचौलियों का दबदबा होता है। कई बार कहा जाता है कि अनाज मेपानी की मात्र ज्यादा है, कई बार कंकड की मात्र ज्यादा बताया जाता है।
  • कई समीक्षकों का मानना है कि MSP से सिर्फ इतना होता है कि किसान की लागत निकल जाये, उससे कोई फायदा नहीं होता है।
  • हाल ही में सरकार ने कृषि संबंधित तीन विधेयकों को संसद से पास करवाया है जिनका विरोध संसद से सड़क तक हो रहा है। इसमें कृषि मण्डी एवं कृषि उत्पाद की बिक्री के संदर्भ में कई तरह के बदलाव किये गये है, जिनका उद्देश्य कृषि उत्पाद की बिक्री के कई विकल्प उपलब्ध करवाना है।
  • इन विधेयकों में यह प्रावधान भी है कि किसान अपने उत्पाद APMC मण्डी से बाहर एवं डायरेक्ट व्यापारियों को बेच सकते है। इसके वजह से कई आलोचकों ने कहा है कि सरकार का उद्देश्य भविष्य में MSP द्वारा खरीद की प्रक्रिया को समाप्त करना है और मुक्त बाजार के तहत व्यापारियों को अपनी कीमत पर खरीदने की छूट देना है। व्यापारी मोलभाव करेंगे, किसानों की आवश्यकता का फायदा उठायेंगे और किसानों का शोषण करेंगे। इस तरह किसानों को MSP से मिलने वाला फायदा रूक जायेगा।
  • प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री ने इसके जवाब में कहा है कि MSP की प्रक्रिया जारी रहेगी और किसानों को अब उत्पाद बेचने के विकल्प ज्यादा होंगे।
  • कृषि मंत्री ने कहा है कि हाल ही में पारित किये गये बिल का संबंध MSP से है ही नहीं, इसलिए MSP जारी रहेगी।
  • कृषि मंत्री का कहना है कि इससे तो और अधिक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और उन्हें अधिक लाभ प्रापत होगा। बाजार में सुधार होगा और किसान अधिक मोलभाव कर सकेंगे।
  • अब किसानों को ट्रेड पर कोई टैक्स भी नहीं देना होगा।
  • वहीं समीक्षकों का कहना है कि लगभग 95 प्रतिशत किसान छोटे और मझोले जोत वाले है ऐसे में इनके पास मोलभाव की क्षमता नहीं होगी और व्यापारी अपने कीमतों पर खरीदारी कर पायेंगे। समीक्षकों का मानना है कि यदि इन विधेयकों को किसान हित में बनाना है तो व्यापारियों के लिए भी एक न्यूनतम कीमत किसानों को देने की बाध्यता लगानी होगी।
  • व्यापारियों के पास जब खीदने की क्षमता होगी तो वह हर क्षेत्र में अलग-अलग दाम पर खरीद करेंगे और उसकी बिक्री अपने हिसाब से कृषि अभाव उत्पन्न कर के करेंगे क्योंकि बहुत से कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम की सूची के बाहर किया गया है।
  • किसानों एवं विपक्ष के विरोध को देखते हुए और MSP पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति ने वर्ष 2020-21 में बेची जाने वाली 6 रबी की फसलों के लिए MSP में बढ़ोत्तरी की घोषण की है।
  • केंद्र सरकार ने कहा है कि MSP में यह वृद्धि स्वामिनाथन आयोग की अनुसंशाओं के अनुरूप है।
  • सरकार इस घोषणा से दो स्पष्टीकरण देने का प्रयास कर रही हैं एक यह कि वह MSP में कोई बदलाव नहीं कर रही, दूसरा कि वह स्वामिनाथन आयोग की सिफारियों को लागू करना चाहती है। हालांकि समीक्षक इसे विरोध रोकने के प्रयास का हिस्सा मान रहे है।
  • गेहूँ के MSP में 50 रुपया प्रति क्विंटल से बढ़ोत्तरी किया गया है, जिससे 1925 रुपये/क्विंटन से बढ़कर 1975 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
  • मसूर की MSP में 300 बढ़ोत्तरी की गई है जो 4800 से बढ़कर 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
  • चना के MSP में 225 रुपये की वृद्धि की गई है जिससे यह बढ़कर 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
  • सरसों के MSP में भी 225 रुपये की वृद्धि की गई है जिससे यह बढ़कर 4650 रुपयें प्रति क्विंटल हो गया है।
  • जौ के MSP में 75 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है जिससे यह 1525 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है।
  • कुसुम के MSP में 112 रुपये की वृद्धि की गई है जिससे यह बढ़कर 5327 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।

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