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Brain-booster / 14 Jan 2021

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: विधानसभा सत्र के आह्वान में राज्यपाल की भूमिका (Governor’s Role in Calling an Assembly Session)

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यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): विधानसभा सत्र के आह्वान में राज्यपाल की भूमिका (Governor’s Role in Calling an Assembly Session)

विधानसभा सत्र के आह्वान में राज्यपाल की भूमिका (Governor’s Role in Calling an Assembly Session)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने केरल सरकार की ओर से बुलाए गए राज्य विधानसभा के विशेष सत्र को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। दरअसल, राज्य सरकार केंद्र के 3 नए कृषि कानूनों पर चर्चा करने के लिए विशेष सत्र आयोजित करना चाहती थी।

राज्य के विधान-मण्डल के सत्र, सत्रवसान और विघटन में राज्यपाल की भूमिका

  • अनुच्छेद 174 के अनुसार राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा किन्तु उसके एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अन्तर नहीं होगा।
  • अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर कार्य करना आवश्यक है। इस प्रकार जब राज्यपाल अनुच्छेद 174 के तहत सदन को आहूत करता है तो यह उसकी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि राज्य की मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर किया जाता है।
  • संवैधानिक व्यवस्था के तहत कैबिनेट का सलाह और सिफारिश मानने के लिए राज्यपाल बाध्य हैं। अगर कैबिनेट ने विधानसभा का सेशन बुलाने की सलाह दी है तो राज्यपाल को उसके मुताबिक निर्णय करना होगा।

अपवाद

  • साधारण स्थिति में मंत्रीपरिषद का फैसला मानने के लिए राज्यपाल बाध्य हैं लेकिन जब राज्यपाल को ऐसा प्रतीत हो कि मुख्यमंत्री सदन का समर्थन खो चुके हैं और उनके पर्याप्त संख्याबल पर आशंका है तो राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदन को आहूत करने का निर्णय ले सकता है। हालांकि राज्यपाल द्वारा अपनी विवेकाधीन शत्तिफ़यों के तहत लिये गए निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

राज्यपाल की भूमिका में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • वर्ष 2016 में अरुणाचल प्रदेश में राज्यपाल के निर्णय द्वारा उत्पन्न संवैधानिक संकट की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा की गयी। नबम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर केस के फैसले में अनुच्छेद 174 की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि विधान सभा का सत्र बुलाने, स्थगित करने और भंग करने के अधिकार का इस्तेमाल राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर करेंगे।
  • इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि राज्यपाल के पास यह मानने का कारण है कि मंत्रिपरिषद विश्वास खो चुका है तो वह मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने को कह सकते हैं।

सरकारिया आयोग की सिफारिशें

  • केन्द्र सरकार द्वारा जून 1983 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर- एस- सरकारिया की अध्यक्षता में सरकारिया आयोग का गठन किया गया था। सरकारिया आयोग की सिफारिशों के अनुसार राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व विधानसभा का गठन, विधानसभा सत्र आहूत करना, कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर होने पर विधानसभा भंग करने की सिफारिश करना तथा विधायकों, मंत्रियों व मुख्यमंत्री को शपथ दिलाना है।
  • इसके अतिरिक्त जब तक एक राज्य की मंत्रिमंडल को विधानसभा में पर्याप्त बहुमत प्राप्त है, तब तक मंत्रिमंडल द्वारा दी जाने वाली सलाह को मानना (जब तक स्पष्ट तौर पर असंवैधानिक न हो) राज्यपाल के लिये बाध्यकारी होगा। हालांकि ऐसी सलाह स्पष्ट तौर पर असंवैधानिक नहीं होनी चाहिए।

निष्कर्ष

  • चूंकि राज्यपाल की शत्तिफ़यां सदन को बुलाने के संबंध में सीमित हैं, इसलिए सत्र को बुलाने के अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता है। इसके अतिरिक्त यदि राज्यपाल सदन को आहूत करने से फिर भी इनकार कर देते हैं तो उनके इस निर्णय को अदालत में भी चुनौती दी जा सकती है।

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