(राष्ट्रीय मुद्दे) हमारे जंगल : भारत वन स्थिति रिपोर्ट -2019 (Our Forests - India State of Forest Report 2019)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): डॉ. नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), रोमा मलिक (महासचिव, AIUFWP)
चर्चा में क्यों?
पिछले 30 दिसंबर को, केंद्र सरकार ने वन क्षेत्र की स्थिति रिपोर्ट 2019 जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो सालों में देश के हरित क्षेत्र में 5188 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें वन क्षेत्र और वन क्षेत्र के इतर अन्य पेड़ों से कवर्ड ग्रीन एरिया भी शामिल हैं। हालांकि देश के उत्तर पूर्व इलाके के हरित क्षेत्र में कुछ कमी ज़रूर देखी गई।
रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
मौजूदा रिपोर्ट के मुताबिक देश का कुल वन और वृक्ष आवरण 80.73 मिलियन हेक्टेयर है। जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56 फ़ीसदी है। अगर केवल वनावरण की बात करें तो यह 712249 वर्ग किलोमीटर है जोकि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.67% है।
- साल 2017 के मुकाबले देश में इस बार वन और वृक्ष आवरण का कुल दायरा 5188 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। इसमें वन आच्छादित क्षेत्र का दायरा 3976 वर्ग किलोमीटर और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र का दायरा 1212 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। वन क्षेत्रों में यह बढ़ोतरी खुले और सामान्य रूप से घने और बेहद घने जंगलों में देखी गई है।
- वर्तमान आकलन से पूर्वोत्तर भारत में वनों का दायरा 765 वर्ग किलोमीटर घटने का पता चला है। यह पिछले आकलन की तुलना में 0.45 प्रतिशत कम है। असम और त्रिपुरा को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में वन क्षेत्र घटा है।
- सघन वन क्षेत्रों में विस्तार के मामले में कर्नाटक, आंध्रप्रेदश, और केरल शीर्ष तीन राज्यों में से रहे। कर्नाटक में 1025 वर्ग किलोमीटर, आंध्रप्रदेश में 990 वर्ग किलोमीटर का और केरल में 823 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र का विस्तार हुआ है।
- वन आच्छादित क्षेत्र के मामले में आंध्रप्रदेश पहली पायदान पर रहा। अरुणाचल प्रदेश दूसरे स्थान पर जबकि छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर रहा।
- देश के कुल भौगालिक क्षेत्र के अनुपात में वनआच्छादित क्षेत्र में प्रतिशत के हिसाब से बढ़ोतरी के मामले में मिजोरम (85.41%), अरुणाचल प्रदेश (79.63%), मेघालय (76.33%), मणिपुर (75.46%) और नागालैंड (75.31%) पांच शीर्ष राज्य रहे।
- जैव विविधिता के मामले में कच्छ वनस्पति का पारिस्थितिकी तंत्र अनोखा और समृद्ध है। इससे कई तरह की पारिस्थितिकी लाभ मिलते रहे हैं। ISFR 2019 में कच्छ वनस्पति वाले क्षेत्रों के बारे में अलग से उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक, देश में ऐसे क्षेत्रों का कुल दायरा 4975 वर्ग किलोमीटर है। पिछली रिपोर्ट 2017 के आकलन के मुकाबले इस बार इन क्षेत्रों में 54 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है। कच्छ वनस्पति के मामले में गुजरात (37 वर्ग किलोमीटर) महाराष्ट्र (16 वर्ग किलोमीटर) और ओडिशा (8 वर्ग किलोमीटर) की बढ़ोतरी के साथ देश के तीन शीर्ष राज्य रहे।
- देश की वन संपदा में 2017 की तुलना में 93.38 मिलियन वर्गमीटर की वृद्धि हुई है। देश में बांस उत्पान वाला कुल क्षेत्र 16.00 मिलियन हेक्टेयर है। वर्ष 2017 में जारी आकलन रिपोर्ट की तुलना में इस बार बांस वाले क्षेत्रों में 0.32 मिलियन हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है।
- मौजूदा रिपोर्ट के मुताबिक देश के वन क्षेत्र में कार्बन का स्टॉक 7124.6 मिलियन टन अनुमानित है जो कि पिछली रिपोर्ट के मुकाबले 42.6 मिलियन टन ज्यादा है। कार्बन स्टॉक में सालान स्तर पर 21.3 मिलियन टन की वृद्धि हुई है जो कि 78.2 मिलियन टन कार्बन डाइ आक्साइड के बराबर है।
- वन आच्छादित दलदली क्षेत्र हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं जो पौधों और जीव-जंतुओं की तमाम प्रजातियों के साथ जैव विविधता को समृद्ध बनाते हैं। दलदली क्षेत्रों की इसी ख़ासियत को ध्यान में रखते हुए भारतीय वन सर्वेक्षण ने संरक्षित वन क्षेत्रों में स्थित एक हेक्टेयर से ज्यादा वाले दलदली क्षेत्रों का इस बार राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे कराया। नतीजों में पाया गया कि देश में कुल 62466 दलदली क्षेत्र हैं जो संरक्षित वन क्षेत्रों का 3.8 प्रतिशत है।
- बांस का हरित क्षेत्र 2.06 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 3229 वर्ग किमी हो गया है।
- देश में मैनग्रोव क्षेत्र 54 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया। यह पिछले आकलन की तुलना में 1.1 प्रतिशत अधिक है।
मौजूदा रिपोर्ट की क्या ख़ासियत है?
इंडिया स्टेट आफ फॉरेस्ट रिपोर्ट को सबसे पहले साल 1987 में जारी किया गया था। मौजूदा रिपोर्ट अब तक की 16वीं रिपोर्ट है। रिपोर्ट हर 2 साल पर ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है। भारतीय वन सर्वेक्षण पर्यावरण मंत्रालय के तहत काम करता है।
- इस बार इस रिपोर्ट के आकलन में भारतीय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट रिसोर्स सेट-2 से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग किया गया है। साथ ही, इसमें सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों को भी शामिल किया गया है।
- भारत सरकार के डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण के मुताबिक, भारतीय वन सर्वेक्षण का आकलन काफी हद तक डिजिटल डेटा पर आधारित है, चाहे सेटेलाइट से प्राप्त आंकड़े हो, जिलों के स्तर पर इकट्ठा किये गए आंकड़े हों या फिर क्षेत्रों के माप के आधार पर डेटा की प्रोसेसिंग हो।
- रिपोर्ट में वन आवरण, वृक्ष आवरण, कच्छ वनस्पति वाले, वन क्षेत्रों के अंदर और बाहर बढ़ते वृक्ष क्षेत्र हों या जंगलों में कार्बन स्टॉक की बात हो सभी जानकारियाँ पूरी सटीकता के साथ शामिल की गई हैं।
- रिपोर्ट में पहाड़ी, आदिवासी जिलों और उत्तर पूर्वी क्षेत्रों जैसे इलाकों में वन क्षेत्रों की विशेष विषयगत जानकारी भी अलग से उपलब्ध कराई गई है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए पहली बार आर्थो रेक्टिीफाइट डेटा का इस्तेमाल किया गया है।
- रिपोर्ट को सटीक बनाने के लिए अब तक की सबसे बेहतर आकलन प्रक्रिया को अपनाया गया। वन क्षेत्रों की जानकारी जुटाने के लिए वन क्षेत्रों के वर्गीकरण में 93 फीसदी सटीकता बरती गई है।
- सितंबर 2018 से लेकर जून 2019 के बीच ऐसे लोगों का अलग से सर्वेक्षण कराया गया जो वन क्षेत्रों में रहते है और वन संपदा पर उनका जीवन निर्भर है। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से लिए गए ऐसे आंकड़ो को रिपोर्ट में शामिल किया गया है।
- मौजूदा रिपोर्ट में पिछले 14 सालों में जंगलों में आग लगने की घटनाओं के आधार पर देश के आग संभावित वन क्षेत्रों की विस्तार से जानकारी दी गई है और इससे निबटने के उपायों के बारे में भी बताया गया है।
- वन वासियों के लिए वनों के गैर लकड़ी उत्पाद उनके जीविकोपार्जन के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट में ऐसे पाचं महत्वपूर्ण उत्पादों की पहली बार जानकारी दी गई है।
वनीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास
राष्ट्रीय प्रयास: विकास की अंधी दौड़ में मानव समाज ने जिस तरह से वनों की अंधाधुंध कटाई की है उसे इसका खामियाजा भी भुगतना ही पड़ेगा। इस समस्या से निपटने और वनों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिहाज से सरकार ने कई योजनाएं और नीतियां लागू की हैं, जिनमें ग्रीन इंडिया मिशन, नेशनल ग्रीन हाईवे मिशन, राष्ट्रीय वन नीति 1988 और CAMPA जैसे कार्यक्रम शामिल है। इसके अलावा राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, एकीकृत जल संभरण प्रबंधन कार्यक्रम, राष्ट्रीय बांस मिशन और गांवों के स्तर पर ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट जैसे प्रयास भी किए जा रहे हैं। साथ ही, वनों के संरक्षण के लिहाज से संसद द्वारा कई कानून मसलन वन संरक्षण कानून 1980 भी पारित किए गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रयास: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जंगलों के बेहतरी करण के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं जिनमें यूनाइटेड नेशंस फोरम ऑन फॉरेस्ट, वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट के प्रयास, वन कार्यक्रम भागीदारी सुविधा और फॉरेस्ट इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम जैसे कदम शुमार हैं।
निष्कर्ष
भारत में अपने लिए 33 फ़ीसदी वन आच्छादन का लक्ष्य रखा है। इस लिहाज से मौजूदा आंकड़े बता रहे हैं कि हम अपने लक्ष्य से अभी भी काफी दूर हैं। जंगल न केवल हमारी भौतिक ज़रूरतों के लिहाज से बल्कि पारिस्थितिक और पर्यावरणीय नजरिए से भी काफी अहम होते हैं। ऐसे में, हमें हमारे वानिकी संसाधनों को बचाना होगा और साथ ही उन्हें बढ़ावा भी देना होगा। ताकि हम इंसानों का सतत विकास संभव हो सके।