(राष्ट्रीय मुद्दे) आजादी के बाद भारत (India After Independence)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): प्रो. सुधीर चंद्र (इतिहास के प्रोफ़ेसर), प्रो. सौरभ वाजपेयी (दिल्ली विश्वविद्यालय)
सन्दर्भ:
15 अगस्त 1947 को जब भारत गुलामी की बेंड़ियों से आज़ाद हुआ तो उस वक़्त देश कई चुनौतियों का सामना कर रहा था। जिनमें भारत-पाकिस्तान के बीच सम्पत्तियों का बंटवारा, शरणार्थी संकट और कश्मीर समस्या जैसे मुद्दे शामिल थे। इसके अलावा भारतीय लोकतन्त्र की मज़बूती और एकीकरण, भाषाई पुनर्गठन तथा ज़्यादा ग़रीबी और अशिक्षा जैसे हालात भी शामिल थे।
भारत को आज़ादी मिलने के बाद भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाना एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। शुरुआत में राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक सुविधा के मद्देनज़र भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बात नकार दी गई। लेकिन बाद में भारी विरोध के बाद सरकार ने भाषायी आधार पर राज्यों को पुनर्गठित करने की बात मान ली जिसके बाद आंध्र प्रदेश भाषायी आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य बना।
भारत के संविधान में ऐसे कानून शामिल किये गए जिसके तरह ही देश के अन्य सामान्य क़ानून तैयार किए जाने थे। जिसके ज़रिए जनतांत्रिक और संसदीय सरकार की रूपरेखा पेश की गई। साल 1952 में जब पहला आम चुनाव हुआ तो उस वक़्त 14 राष्ट्रीय और लगभग 50 राज्य स्तर के दल शमिल थे । 1952 से लेकर 1967 तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन बाद में क्षेत्रीय पार्टियों के आने और विभाजन के दौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को पीछे धकेल दिया।
1973 तक आते आते भारत में मन्दी, बेरोजगारी, मंहगाई और भुखमरी जैसी समस्याओं ने लोगों की कमर तोड़ दी थी। जिसके बाद सम्पूर्ण क्रांति के नारे के साथ आए जननायक जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस हटाओ की मुहिम छेड़ दी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जेपी आन्दोलन से निपटने के लिए आतंरिक अशांति का हवाला देते हुए देश में आपातकाल लगा दिया। भारतीय इतिहास में आपातकाल का वो दौर बहुत शर्मनाक था, जिसने भारतीय लोकतंत्र के भविष्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। ये आपातकाल का ही नतीजा था कि 1977 के आम चुनाओं में कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई और आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी ग़ैर कोंग्रेसी सरकार का गठन हुआ। 1980 के दशक में जब कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से सत्ता में आई तो उस दौरान कश्मीर असम व पंजाब में अलगाववादी आंदोलन जोर पकड़ रहा था। जिसके बाद पंजाब का अलगाववाद ही श्रीमती गांधी की मौत का कारण भी बना।
राजीव गांधी के कार्यकाल में भी शाह बानों केस, बोफोर्स कांड, श्रीलंका मुद्दा, और सिक्ख विरोधी दंगे जैसे मुद्दे काफी विवादित रहे। 90 के दशक में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने की घटना ने भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहस को गरमा दिया था । जिसके बाद क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ और गठबंधन को भी बढ़ावा मिला। इसके अलावा 2000 से लेकर 2010 के बीच अन्ना आन्दोलन ने भारत में बढ़ते भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कड़ी लड़ाई लड़ी।
आज़ादी के बाद सरकार ने ज़मींदारी प्रथा की समाप्ति, काश्तकारी सुधार, भूमि हदबन्दी और हरित क्रांति जैसे कई कदम उठाए हैं, जिससे भूमि सुधार और कृषि सुधार के उद्द्येश्यों को हांसिल किया जा सके। महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के मुद्दे पर भी आज़ादी के बाद काफी प्रयास हुए। इसके अलावा सरकार द्वारा किए गए अन्य प्रयासों में मुख्य रूप से समानता का अधिकार, हिन्दू विवाह अधिनियम और दहेज़ निषेध अधिनियम जैसे कई और भी क़ानूनों को लाया गया।