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Blog / 24 Dec 2018

(राष्ट्रीय मुद्दे) स्वास्थ्य नीतियां और सेहत का हाल (Health Policies and State of Health)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) स्वास्थ्य नीतियां और सेहत का हाल (Health Policies and State of Health)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रोफ़ेसर रितू प्रिया (सेंटर ऑफ़ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ, JNU), ज्योत्स्ना सिंह (स्वास्थ्य सम्बंधित विषयों की सामाजिक कार्यकर्त्ता)

सन्दर्भ:

भारत में आज़ादी के 30 साल बाद पहली बार 1983 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति पेश की गई। इसके बाद साल 2002 में बनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के मुताबिक सरकार ने नेशनल रूरल हेल्थ मिशन और नेशनल अर्बन हेल्थ मिशन जैसे कार्यक्रमों की शुरूआत की, जिसका मक़सद स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूद असमानता को खत्म करने और मानव संसाधन की कमियों को दूर करने जैसे कई लक्ष्य निर्धारित किए गए थे ।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 के क़रीब 15 साल बीत जाने के बाद साल 2017 में तीसरी स्वास्थ्य नीति लाई गई, जिसमें स्वास्थ्य प्रणाली के सभी क्षेत्रों में निवेश, मानव संसाधन विकास,तकनीकी पहुंच को बढ़ावा, और अलग-अलग चिकित्सा प्रणाली को अपनाने की बात कही गई ।

इस नीति में सतत विकास लक्ष्यों के मूलभूत महत्व का भी उल्लेख किया गया जिसमें एक व्यक्ति की उम्र को 2025 तक 67.5 वर्ष से बढ़ाकर कर 70 वर्ष और 2020 तक मातृ मृत्यु दर को पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया। इसके अलावा इस नीति में नॉन कम्युनिकेबल रोगों जैसे हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और सांस सम्बन्धी रोगों से भी निपटने की इच्छा ज़ाहिर की गई।

मौजूदा वक़्त में सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए कुछ महतवपूर्ण कदम भी उठाये हैं, जिनमें स्वास्थ्य गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए National Quality Assurance Programme, अस्पतालों में स्वच्छता और हाइजीन बनाये रखने के लिए कायाकल्प अवार्ड, नैशनल हेल्थ मिशन के तहत दवाओं के दामों में कमी, और पिछड़े जिलों में प्रधानमंत्री नैशनल डायलिसिस सुविधा, के साथ प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की भी शुरुआत की गई है।

पिछले 10 -15 सालों में सरकारों ने स्वास्थ्य पर खर्च किए जाने वाले बजट को बढ़ावा दिया है, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में लगभग 7 - 8 फीसदी की दर से बढ़ोत्तरी हुई है। इसके अलावा स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च को भी 2025 तक कुल सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक करने का लक्ष्य रखा गया है।

हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य और वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना को जोड़ कर बनाई गई आयुष्मान योजना भी सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और सतत विकास लक्ष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है जिसका मकसद ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले लगभग 10 करोड़ परिवारों को स्वास्थ्य कवरेज़ प्रदान करना है, जिस पर करीब 11 हज़ार करोड़ का खर्च आएगा।

हालाँकि साल 2018 में आई मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की रैकिंग में सिर्फ एक पायदान का सुधार आया है जिसमें 189 देशों में भारत की रैंकिंग130वें स्थान पर है। मौजूदा वक़्त में भारत अपनी जीडीपी का लगभग 1 % हिस्सा ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करता है जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों यानी 5 % से काफी कम है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में ज़्यादा निवेश न हो पाने के कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी मात्रा में कमी रहती है, जिससे चलते वहां रहने वाले लोगों को अक्सर ही स्वास्थ्य संकट से जूझना पड़ता है। इसके आलावा देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के कुल खर्च का लगभग 70 फीसदी निजी क्षेत्र से आता है, जोकि गंभीर समस्या है।

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