(राष्ट्रीय मुद्दे) वायु प्रदूषण : नीतियाँ और हक़ीक़त (Air Pollution: Policies and Reality)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): डॉ. बी. सेनगुप्ता (पूर्व सदस्य सचिव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड), जयाश्री नंदी (पर्यावरण पत्रकार)
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम यानी NCAP को लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया है। इस समिति का मक़सद 2024 तक कम से कम 102 शहरों में 20% -30% से पार्टिकुलेट मैटर यानी PM प्रदूषण को कम करना है।
समिति की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव करेंगे। इस समिति का मुख्यालय नई दिल्ली में होगा।
क्या है वायु प्रदूषण?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें वातावरण में इंसान और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं।
आंकड़े क्या कहते हैं?
पिछले महीने अप्रैल में, अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट द्वारा 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2019' जारी किया। इस रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2017 में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से 12 लाख भारतीयों की मौत हो गई।
- भारत में वायु प्रदूषण अब सभी स्वास्थ्य जोखिमों में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है जो धूम्रपान के ठीक ऊपर है।
- इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत और चीन में दुनिया भर में वायु प्रदूषण से होने वाली 50 लाख मौतों का 50% मौजूद है।
- डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं।
- एशिया में वायु प्रदूषण के होने वाली अकाल मौतों के मामले में भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल है।
- भारत में करीब 66 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर हैं जहां हवा में प्रदूषण की मात्रा राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।
क्या है राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)?
NCAP समयबद्ध तरीके से लागू किया जाने वाला एक पाँच वर्षीय कार्यक्रम है। जिसका मुख्य मक़सद वायु प्रदूषण को रोकना है। इस प्रोग्राम में प्रदूषण रोक-थाम से जुड़े केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और दूसरे अन्य हितधारकों को शामिल किया जायेगा। और इसके ज़रिए प्रदूषण और संस्थानों के बीच आपसी समन्वय के सभी स्रोतों पर ध्यान दिया जाएगा।
- इस कार्यक्रम में 102 प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
- इसके तहत 2017 को आधार वर्ष मानते हुए वायु में मौज़ूद PM 2.5 और PM10 पार्टिकल्स को 20 से 30 फीसदी तक कम करने का ‘अनुमानित राष्ट्रीय लक्ष्य’ रखा गया है।
- इस प्रोग्राम के तहत राज्यों को आर्थिक मदद भी दी जानी है, ताकि वे वायु प्रदूषण को रोकने के लिए बेहतर तरीके से काम कर सकें।
- इसमें हर शहर को प्रदूषण रोकने के लिए अपना अलग-अलग एक्शन प्लान बनाना होगा, क्योंकि हर शहर में प्रदूषण के स्रोत अलग-अलग हैं।
- इसके अलावा NCAP में और भी कई चीज़ें शामिल हैं मसलन दोपहिया वाहनों के क्षेत्र में ई-मोबिलिटी की राज्य-स्तरीय योजनाएँ, चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना, बीएस-VI स्टैण्डर्ड को कड़ाई से लागू करना, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना और प्रदूषणकारी उद्योगों के लिये थर्ड पार्टी ऑडिट को अपनाना।
पार्टिकुलेट मैटर है सबसे बड़ी चुनौती
दरअसल भारत में PM 2.5 यानी पार्टिकुलेट मैटर का बढ़ता स्तर वायु प्रदूषण के लिहाज से सबसे गंभीर समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक PM 2. 5 की सुरक्षित सीमा – 40 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब निर्धारित की गयी है, जबकि देश की राजधानी दिल्ली में ये स्तर अक्सर ही 200 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब के करीब बना रहता है।
- पार्टिकुलेट मैटर को अभिकणीय पदार्थ के नाम से जाना जाता है। ये हमारे वायुमंडल में उपस्थित बहुत छोटे कण होते हैं जिनकी मौजूदगी ठोस या तरल अवस्था में हो सकती है।
- पार्टिकुलेट मैटर वायुमंडल में निष्क्रिय अवस्था में होते हैं, जोकि अतिसूक्ष्म होने के कारण साँसों के ज़रिये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और कई जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं।
पर्यावरण से जुड़े संवैधानिक प्रावधान
संविधान का अनुच्छेद -21 हमें स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार प्रदान करता है और अनुच्छेद 48ए में पर्यावरण के संरक्षण, सुधार और जंगलों और वन्य जीवों की सुरक्षा की बात गई है।
- इसके अलावा अनुच्छेद 51ए(जी) के तहत भारतीय नागरिकों का ये कर्तव्य है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें।
- सतत विकास लक्ष्यों यानी SDG के तहत पर्यावरणीय खतरों को कम करने के लिये कुछ लक्ष्य तय किये गए हैं। ग़ौरतलब है कि जून 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के निर्णयों को लागू करने के लिये भारत सरकार ने एक अधिनियम बनाया था।
- दरअसल अनुच्छेद 253 में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को प्रभावी बनाने के लिये क़ानून बनाने की बात की गई है। और इसी के तहत सरकार ने नया क़ानून बनाया और इसका नाम रखा वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक सांविधिक संगठन है। इसका गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत सितंबर, 1974 में किया गया था। इसके अलावा CPCB को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत भी कुछ शक्तियां और कार्य दिए गए हैं।
CPCB वायु गुणवत्ता में सुधार और वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन से संबंधित किसी भी मामले पर केंद्र सरकार को सलाह देने का काम करता है। साथ ही ये वायु प्रदूषण से जुड़े तकनीकी और सांख्यिकीय आंकड़ों को भी इकट्ठा करने और प्रकाशित करने का काम करता है। और यह हवा की गुणवत्ता के लिए मानकों को भी निर्धारित करता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों को पूरे देश में लागू किया जाता है। और इसके तहत 12 प्रकार के वायु प्रदूषकों की पहचान की गई है। इनमें सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, PM 10, PM 2.5, ओजोन, लेड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, बेंजीन, बेंजो पायरीन, आर्सेनिक और निकल शामिल हैं।
वायु प्रदूषण रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए क़दम
- वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत दिशा-निर्देश जारी करना
- परिवेशी वायु गुणवत्ता के आकलन के लिये निगरानी नेटवर्क की स्थापना करना
- CNG और LPG जैसे स्वच्छ गैसीय ईंधन को बढ़ावा देना
- पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा बढ़ाना
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी AQI की शुरुआत: वायु गुणवत्ता की माप आठ प्रदूषकों पर आधारित है जिसमें PM10, PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया और लेड शामिल हैं।
- 1 अप्रैल, 2020 तक वाहनों को BS-IV से BS-VI मानकों में बदलना होगा
- बायोमास जलाने पर बैन
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना
- सभी इंजन चालित वाहनों के लिये प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी
- “ग्रीन गुड डीड्स” अभियान के द्वारा पर्यावरण संरक्षण को मजबूत करने के लिए व्यक्तियों या संगठनों द्वारा किए गए छोटे सकारात्मक कार्यों को आगे बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत की प्रदूषण समस्या जितना हम देख रहे हैं उससे कहीं ज़्यादा बड़ी है। हमें वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उद्योगों, परिवहन और बिजली संयंत्रों जैसे प्रमुख स्रोतों से उत्सर्जन कम करना होगा और इसके लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।