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Blog / 07 Sep 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 - आतंक पर लगाम की तैयारी (UAPA Amendment Act 2019 : Curbing The Terrorism)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 - आतंक पर लगाम की तैयारी (UAPA Amendment Act 2019 : Curbing The Terrorism)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): सत्य प्रकाश (लीगल एडिटर - द ट्रिब्यून), सजल अवस्थी (सुप्रीम कोर्ट के वकील)

चर्चा में क्यों?

बीते 8 अगस्त को राष्ट्रपति ने ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 पर अपनी मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही अब ये विधेयक क़ानून बन गया है। इस संशोधन के जरिए ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ रोकथाम क़ानून 1967 में बदलाव किया गया है। इसके तहत केंद्र सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसकी संपत्ति ज़ब्त करने का अधिकार है।

इस कानून में हुए बदलाव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है। याचिकाकर्ता सजल अवस्थी का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के खिलाफ है।

क्या है ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ रोकथाम कानून?

UAPA को साल 1967 में 'भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा' के उद्देश्य से पेश किया गया था। इस कानून के तहत किसी भी अलगाववादी गतिविधि को चलाना या समर्थन देना अपराध माना गया है। साथ ही किसी विदेशी ताकत द्वारा भारतीय क्षेत्र को अपना बताना भी अपराध क़रार दिया गया है। यह चौथी बार है जब इस क़ानून में संशोधन किया गया है। इसके पहले साल 2004, 2008 और 2012 में भी इसमें संशोधन किया जा चुका है।

इस बार के संशोधन का मक़सद

इस बार UAPA कानून में संशोधनों का उद्देश्य आतंकी अपराधों की त्वरित जाँच और मुकदमा चलाने की सुविधा प्रदान करना है। इसके अलावा मौजूदा वक्त में किसी भी क़ानून के तहत किसी को व्यक्तिगत आतंकवादी कहने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में जब किसी आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसके सदस्य एक नया संगठन बना लेते हैं। इसलिए आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्ति को भी आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान करना इसके उद्देश्यों में शुमार है। ग़ौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया के कई देशों में संगठन ही नही बल्कि व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जाता है। किसी भी गतिविधि या संगठन को चलाने के लिए पैसे की जरूरत पड़ती है। यह बात आतंकी गतिविधि चलाने के लिए भी उतना ही सच है। ऐसे में, आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने वाले या इसके जरिए कमाई करने वाले को भी आतंकी कहना गलत नहीं होगा। इस बार के संशोधन में इस चुनौती से भी निपटने की व्यवस्था की गई है।

इस बार के संशोधन के अहम बिंदु

नए संशोधनों के मुताबिक UAPA का किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दुरुपयोग नहीं किया जाएगा, लेकिन शहरी माओवादियों समेत भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल लोगों पर सख़्त कार्रवाई की जाएगी। गिरफ्तारी या ज़मानत प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA को कुछ अहम अधिकार दिए गए हैं। जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति आतंकवाद के जरिए धनोपार्जन करता है तो NIA उसकी ऐसी संपत्ति को ज़ब्त कर सकती है।

इस एक्ट के तहत नौ संधियां हैं, जैसे कन्वेंशन फॉर द सप्रेशन ऑफ टेरिरिस्ट बॉम्बिंग्स (1997) और कन्वेंशन अगेंस्ट टेकिंग ऑफ होस्टेजेज़ (1979)। इन संधियों में कुछ गतिविधियां प्रतिबंधित हैं। नए संशोधन के मुताबिक़, इन गतिविधियों को आतंकवादी गतिविधि माना जाएगा। साथ ही इस सूची में एक और संधि को शामिल किया गया है - परमाणु आतंकवाद कन्वेंशन। इस कन्वेंशन का पूरा आधिकारिक नाम ‘परमाणु आतंकवाद के कृत्यों के दमन हेतु अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन, 2005’ है।

अभी तक इस कानून की धारा 43 के मुताबिक़ DSP या समकक्ष पद से नीचे के अधिकारी अपराधों की जाँच नहीं कर सकते थे। लेकिन इसमें संशोधन करके अब इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के अधिकारियों को भी यह अधिकार दे दिया गया है।

इस कानून को लागू करने में क्या दिक्कतें हैं?

इस कानून की धारा 43 में संशोधन करके अब इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के अधिकारियों को भी अपराधों की जांच करने का अधिकार दे दिया गया है। लेकिन डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों की कमी के चलते इस कानून को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में खासा दिक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है। मौजूदा वक्त में NIA में 57 स्वीकृत पदों के मुकाबले 29 DSP और 106 स्वीकृत पदों के मुकाबले 90 इंस्पेक्टर ही हैं।

क्या ख़ामियाँ रह गई इस कानून में?

इस कानून में संशोधन के विरोधियों का कहना है कि यह सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार देता है। जिससे इसका दुरुपयोग हो सकता है। साथ ही लोगों के मूल अधिकारों का हनन भी हो सकता है। क्योंकि किसी को भी केवल सरकार की भावना या संदेह के आधार पर आतंकवादी नहीं कहा जा सकता है।

नए संशोधनों के बाद अब DG NIA को ऐसी संपत्तियों को कब्जे में लेने और उनकी कुर्की करने का अधिकार मिल जाएगा जिनका आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया। अब इसके लिए NIAको राज्य के पुलिस महानिदेशक से मंज़ूरी लेने की जरुरत नहीं होगी। इससे भारत कि परिसंघीय ढांचे की व्यवस्था कमजोर पड़ सकती है।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

बदलते दौर में टेक्नोलॉजी की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता। देश के बाहर बैठकर भी इन तकनीकों के जरिए बड़े बड़े अपराधों को अंजाम दिया जा सकता है। अपराधी अपने अपने तरीके से अपराध को अंजाम देने के लिए इन नई तकनीकों का फायदा बखूबी उठा रहे हैं। ऐसे में, जांच एजेंसियों को तकनीकी दृष्टि से और बेहतर होना होगा। साथ ही इसके लिए अधिकारियों को मॉडर्न प्रशिक्षण की जरूरत होगी।