(राष्ट्रीय मुद्दे) कॉप13 : प्रवासी प्रजातियों को बचाने की कोशिश (COP13 - An Effort to Save Migratory Species)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): प्रो. सी. के. वार्ष्णेय (पर्यावरण मामलों के जानकार), ध्रुव वर्मा (वेटलैंड इंटरनेशनल)
आगामी 17 फरवरी से गुजरात के गांधीनगर में वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों (सीएमएस) के सरंक्षण के 13 वें कोप शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत आयोजित किया जाता है।
वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों (सीएमएस) कन्वेंशन क्या है
एवं 13 वें कोप शिखर सम्मेलन की विशेषता क्या है?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के आलोक में प्रवासी प्रजातियों की संरक्षण के लिए एक कन्वेंशन के रूप में( सीएमएस) को लागू किया गया। 1979 में जर्मनी के बान में इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर होने के कारण इसे बान कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है। यह कन्वेंशन 1983 से शक्ति में आया। आपको बता दें भारत ने भी 1983 में इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किया। यह कन्वेंशन प्रवासी जीव-जंतु की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सभी हित धारकों को एक मंच पर लाता है। जिस रास्ते से प्रवासी जीव-जंतु गुजरते हैं एवं जिन स्थानों पर ये प्रवास करते हैं वहां पर उनके आवासों के संरक्षण हेतु यह कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज( Conference of the Parties -COP), सीएमएस की सर्वोच्च निकाय है। प्रत्येक तीसरे वर्ष कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज की बैठक का आयोजन किया जाता है। इस बैठक में बजट, नीतियां एवं विद्यमान मुद्दों को संबोधित करने का प्रयास किया जाता है। अब तक कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज की 12 सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है एवं 13 वें सम्मेलन का आयोजन गुजरात के गांधीनगर में किया जा रहा है।
आपको बता दें सीएमएस प्रवासी जीव जंतुओं को आसन्न खतरे के आधार पर दो श्रेणियों में विभाजित करता है।
परिशिष्ट I - लुप्तप्राय प्रवासी प्रजातियां-इसमें उन प्रजातियों के जीवो को शामिल किया जाता है जिन पर विलुप्त होने का खतरा हो।
परिशिष्ट II - समझौतों के द्वारा संरक्षित प्रवासी प्रजातियां: इसमें उन प्रजातियों के जीवो को शामिल किया जाता है जिनके संरक्षण की स्थिति प्रतिकूल है एवं इनके संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौता आवश्यक है।
प्रवासी जीव जंतुओं के बारे में
वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियां भोजन, सूर्य का प्रकाश, तापमान और जलवायु जैसे कारणों से प्रवास करती हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ प्रवासी पक्षियों और स्तनपाई जीवों के प्रवास कई हजार किलोमीटर से भी ज्यादा का हो जाता है। ये जीव प्रवास के दौरान घोसले बनाने, प्रजनन, अनुकूल पर्यावरण तथा भोजन की उपलब्धता जैसी सुविधाओं को ध्यान में रखकर प्रवास करते हैं। हमारे देश में प्रवासी प्रजातियों में साइबेरियन क्रेन, सी टर्टल, डुगोंग्स और रैप्टर, अमूर फाल्कन्स, बार हेडेड गीज, ब्लैक नेकलेस क्रेन, और हंपबैक व्हेल महत्वपूर्ण है।
भारत में प्रवासी प्रजातियां एवं इनके संरक्षण
भारत कई प्रजातियों के प्रवासी वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास है। इन प्रजातियों में मुख्य रूप से बर्फीले प्रदेश वाले चीते, आमुर फाल्कन, बार हेडेड गीज, काले गर्दन वाला सारस, समुद्री कछुआ, डुगोंग्स और हम्पबैक व्हेल आदि का प्राकृतिक आवास है। भारत में वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत प्रवासी जनजातियों का संरक्षण किया जाता है। इसके अलावा भारत ने प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में 1983 में बान कन्वेंशन पर भी हस्ताक्षर किए। भारत अब तक साइबेरियाई सारस के लिए 1998 में, समुद्री कछुओं के लिए 2007 में, डुगोंग्स के लिए 2008 में और रेप्टर्स के संरक्षण के लिए 2016 में सीएमएस के साथ कानूनी रूप से अबाध्यकारी समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर चुका है।आपको बता दें भारतीय उप-महाद्वीप महत्वपूर्ण बर्ड फ्लाईवे, सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे (CAF) नेटवर्क का हिस्सा है। सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे (CAF) नेटवर्क आर्कटिक और हिंद महासागर को कवर करता है। इस फ्लाईवे नेटवर्क में लगभग 279 प्रजातियां शामिल, एवं इसमें कई ऐसी प्रजातियां भी शामिल है जो अंतरराष्ट्रीय रूप से विलुप्त होने के कगार पर है।
13 वें कोप शिखर सम्मेलन बारे में
13 वें कोप शिखर सम्मेलन का आयोजन इस वर्ष गांधीनगर गुजरात में किया जा रहा है। भारत 3 वर्ष के लिए इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा।
इस बार इस सम्मेलन की थीम है ‘प्रवासी प्रजातियां दुनिया को जोड़ती हैं और हम उनका अपने यहां स्वागत करते हैं।‘ प्रतीक चिन्ह में कोलम कला के माध्यम से भारत में आने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षियों जैसे आमूर फाल्कन, हम्पबैक व्हेल और समुद्री कछुओं के साथ प्रमुख को दर्शाया गया है।वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत संकटापन्न प्रजाति में घोषित द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को सम्मेलन का शुभंकर बनाया गया है। सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह दक्षिण भारत की पांरपरिक कला कोलम से प्रेरित है।आपको बता दें दक्षिण राज्यों में रंगोली को कोलम कहा जाता है।
प्रवासी प्रजातियों के सम्मेलन की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल के मुताबिक़ इस सम्मेलन में प्रवासी प्रजातियों के बारे में एक रिपोर्ट पेश की गई जिससे ये पता चला है कि तमाम वैश्विक प्रयासों के बावजूद ज्यादातर प्रवासी जीव-जंतुओं की संख्या लगातार घट रही है । सी एम एस-कोप-13 में इस बात पर सहमति जताई गयी है की प्रवासी प्रजातियों में हर एक प्रजाति के बारे में बेहद संजीदा तरीके से अध्ययन की ज़रुरत है । इसके अलावा प्रवासी प्रजातियों के सामने मौजूद चुनौतियों पर भी समीक्षा पर सहमति जताई गयी । फ्रेंकल ने कहा कि सी एम एस-सीओपी-13 सम्मलेन में प्रवासी प्रजातियों को अवैध रूप से मारे जाने और उनके गैर कानूनी व्यापार को रोकने के लिए भी नई नीति बनाने पर भी सहमति बनी।
क्या है गांधी नगर घोषणा पत्र:
सीएमएस ने पारिस्थितिकीय तंत्रों के आपसी संबंध को बनाए रखने और उन्हें बहाल करने की ज़रुरत पर विशेष बल दिया है – खासकर प्रवासी प्रजातियों और उनके पर्यावास के प्रबंधन में। गांधीनगर घोषणापत्र जिस पर 130 देशों ने अपनी मुहर लगाई है, में प्रवासी प्रजातियों पर मौजूद खतरों और इसके समाधान की तरीकों को वरीयता दी गयी है।
घोषणापत्र में प्रवासी जीव जंतुओं और पारिस्थितिकीय तंत्रों के आपसी रिश्तों को 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता मसौदे में शामिल करने और इसको वरीयता देने की भी बात कही गयी । इस मसौदे के अक्टूबर 2020 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता सम्मेलन में पारित होने की गुंजाईश है।
एशियाई हाथी, तेंदुआ और हुकना या बंगाल फ्लोरिकन को सम्मेलन में परिशिष्ट 1 के अंतर्गत शामिल कर लिया गया । परिशिष्ट 1 में ऐसी प्रजातियों को शामिल किया जाता है जिनके विलुप्त होने का खतरा बना हुआ रहता है। इसके अलावा किसी प्रजाति को अगर परिशिष्ट 1 में डाला जाता है तो सीमा पार उसके संरक्षण के प्रयास आसान हो जाते हैं । इन 3 प्रजातियों के अलावा 7 प्रजातियों को परिशिष्ट 2 के नातर्गत शामिल किया गया है। इनमें शामिल हैं- जगुआर, यूरियाल, लिटिल बस्टर्ड, एंटीपोडियन अल्बाट्रॉस, ओशनिक व्हाइट-टिप शार्क, स्मूथ हैमरहेड शार्क और टोपे शार्क।आपको बता दें की परिशिष्ट 2 के तहत उन प्रजातियों को शामिल किया जाता है जिनके संरक्षण के लिए वैश्विक सहयोग की ज़रुरत है।
इस सम्मेलन में पहली बार प्रवासी प्रजातियों के मौजूदा हालातों पर एक रिपोर्ट को जारी किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक़ सीएमएस संधि में शामिल ज़्यादातर प्रजातियों की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है जिसके पीछे की वजहों को समझने की कोशिश इस रिपोर्ट में की गयी है । इसके अलावा प्रवासी जीव जंतुओं पर मौजूदा खतरों की पहचान और उसको दूर करने की भी बात इस रिपोर्ट में कही गयी है । इस बार इस सम्मेलन की थीम " Migratory species connect the planet and together we welcome them home " थी । गौर तलब है कॉप-13 के मेज़बान देश के रूप में कॉप की अध्यक्षता अगले तीन सालों के लिए भारत के पास रहेगी।
एक सप्ताह के सम्मेलन में संधि के प्रथम परिशिष्ट में 10 और द्वितीय परिशिष्ट में 13 प्रजातियों को शामिल किया गया। प्रवासी प्रजातियों और उनके पर्यावास के संरक्षण के लिए प्रवासी प्रजाति संरक्षण संधि का दूत कार्यक्रम फिर से शुरू किया गया। भारतीय अभिनेता रणदीप हुड्डा को 2023 तक के लिए प्रवासी प्रजाति दूत मनोनीत किया गया।
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक कन्वेंशन के रूप में ( सीएमएस) को लागू किया गया। 1979 में जर्मनी के बान में इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर होने के कारण इसे बान कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है। यह कन्वेंशन 1983 से वज़ूद में आया। भारत ने भी 1983 में इस कन्वेंशन पर दस्तखत किये थे । यह कन्वेंशन प्रवासी जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सभी हित धारकों यानि स्टेक होल्डर्स को एक मंच मुहैय्या कराता है जिस रास्ते से प्रवासी जीव-जंतु गुजरते हैं एवं जिन स्थानों पर ये प्रवास करते हैं वहां पर उनके आवासों के संरक्षण हेतु यह कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानूनी अधिकार प्रदान करता है। इसके अलावा कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के बारे में बताएं तो ये ( Conference of the Parties -COP), सीएमएस का सर्वोच्च निकाय है। प्रत्येक तीसरे वर्ष कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज की बैठक का आयोजन किया जाता है। इस बैठक में बजट, नीतियां एवं अन्य मुद्दों को उजागर करने की कोशिश की जाती है । अब तक कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज के 12 सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है एवं 13 वें सम्मेलन का आयोजन गुजरात के गांधीनगर में किया जा रहा है।
आपको बता दें सीएमएस प्रवासी जीव जंतुओं पर पाए जाने वाले खतरे के मद्देनज़र दो श्रेणियों में बांटता है :
परिशिष्ट I के तहत उन प्रजातियों के जीवो को शामिल किया जाता है जिन पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा हो जबकि परिशिष्ट 2 -के तहत उन प्रजातियों के जीवो को शामिल किया जाता है जिनके संरक्षण की स्थिति प्रतिकूल है एवं इनके संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौता की ज़रुरत है।